सहधर्मी / जगदीश कश्यप

Gadya Kosh से
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उसने मेरी ओर कृतज्ञता की दृष्टि से देखा, 'साब, अगर आप न बचाते तो ये भीड़ मुझे पिलपिला बना देती । आप सोचिए, मैं बाल-बच्चों वाला आदमी भला जेब कैसे काट सकता हूँ !'

उसने होंठ पर लगे ख़ून को उँगली से पोंछते हुए कहा— 'आप मेरे साथ एक कप चाय नहीं पिएँगे?'

मैं उसके अनुरोध को टाल न सका ।

चाय के दौरान उसने बताया कि उसकी पत्नी असफलता अत्यंत पतिव्रता है । उसकी तीनों लड़कियां- कुंठा, निराशा, भग्नाशा जवान हो गई हैं और दुर्भाग्य नामक लड़का ग्रेजुएट होने पर भी बेरोज़गार है ।

मुझे आश्चर्य हुआ कि वह हू-ब-हू मेरी ही कहानी सुना रहा था ।