सहारा / गोवर्धन यादव
एक आदमी चौराहे पर अपने ठेले में बैठा भुट्टॆ भून रहा था, भुट्टॆ भूनने के पश्चात वह उसे करीने से जमाता जाता था, उसे अब ग्राहकों का इन्तजार था, पास ही दस-बारह साल का लडका खडा था, जिसे दो दिन से खाना नसीब नहीं हुआ था, भुट्टॊं से उठती ख़ुशबू ने उसकी भूख को दस गुणा बढ़ा दिया था, उसने एक सरपट दौड लगाई और चार-पांच भुट्टॆ उठाकर भाग खडा हुआ, दुकानदार इस अप्रत्याशित घटना से अनभिज्ञ था, जैसे ही उसने उस लडके को भुट्टॆ चुराकर भागते देखा, चिल्लाया_ "चोर-चोर, पकडॊ-पकडॊ," उसकी आवाज़ सुनते ही लोगों ने उसे पकड लिया और उसकी पिटाई करने लगे, तब तक तो दुकानदार भी पास आ चुका था, उसने आगे बढते हुए उसे पिटने से बचाया और उसका हाथ पकडकर अपने ठेले पर ले आया, भुट्टॆ अब भी उस बालक के हाथ में थे, उसने उसे स्टूल पर बैठने का इशारा किया और कहा:-बेटा, चोरी करने के बजाय यदि तू मुझसे मांग लेता तो मैं तुझे भुट्टॆ दे देता, खैर, इसमे तेरी गलती नहीं है, ये पापी पेट, बडॊ-बडॊं से अपराध करवा लेता है, तू तो अभी बच्चा ही है, खा, जितने भुट्टॆ तू खा सकता है, खा ले,
इशारा पाते ही बालक भुट्टॊं पर पिल पडा था, एक के बाद दूसरा, फ़िर तीसरा, इस तरह उसने पांच भुट्टॊं को उदरस्थ कर लिया था, जब वह पेट भर भुट्टॆ खा चुका तो उस आदमी ने बडॆ स्नेह से बच्चे से उसके माता-पिता के बारे में जानना चाहा, बात सुनते ही बालक गमगीन हो उठा था, उसकी आखँ भर आयी थीं, अब वह फ़बक कर रो उठा था, रोते-रोते उसने बतलाया कि बचपन में ही वह अपने माँ और पिता को खो चुका है और अब वह अनाथों की तरह रह रहा है, उस बालक की व्यथा-कथा सुन चुकने के बाद उस आदमी ने सोचा कि वह भी तो इस दुनिया में अकेला ही है, यदि बालक उसके साथ रहने को तैयार होता है, तो वह उसकी परवरिश तो करेगा ही, साथ ही उसकी शेष ज़िन्दगी आराम से कट जाएगी, उसने बालक का मन टटोलते हुए अपनी बात कही, बालक सहर्ष उसके साथ रहने को तैयार हो गया, बालक का साथ पाकर अब वह दूने उत्साह के साथ अपने काम-धंधे में जुट गया था।