साँवली लड़की / शिवजी श्रीवास्तव
माया को बधाई देने वालों का सिलसिला सुबह से जारी है। गली-मोहल्ले वालों के लिये वह यकायक रोल मॉडल बन गई, भाभी उसकी चापलूसी कर रही हैं, भैया सबका मुँह मीठा करा रहे हैं, पापा गर्वपूर्वक कह रहे हैं, "अरे मैं जानता था मेरी माया बिटिया एक दिन।डिप्टी कलक्टर बनेगी।" पड़ोसन चाची कह रही है, "बिटिया हो तो माया जैसी।" चंदा मुस्करा कर, बोली, "देखा दीदी...दुनिया कैसे रंग बदलती है। माया ने स्नेह से उसकी हथेली थाम ली," सही है चंदा, तू न होती तो शायद मेरा सारा जीवन अंधेरों में कटता। "
...सच कह रही थी माया, कभी उसे अपना जीवन एक लंबी काली मावस की रात जैसा लगता था, जिसमें सुख के प्रकाश की कोई किरण नहीं थी...डाँट-फटकार, ताने-बंदिशें...यही था उसके जीवन मे, उसे अपनी क़िस्मत पर हमेशा रोना आता था; कुछ तो अच्छा दिया होता परमात्मा ने...लड़की का जन्म उस पर भी साँवला रंग, ऐसे घर में जन्म जहाँ हमेशा पैसे की किच-किच रहती, माँ की फटकार, पिता कि बन्दिशें भाई-भाभी की वक्र दृष्टि...उसे खुल कर साँस नहीं लेने देती, मोहल्ला ऐसा जहाँ घरों से ज़्यादा लोगों की सोच छोटी थी... उसकी ओर कोई था तो उसकी छोटी बहन चन्दा। बिल्कुल विपरीत थीं दोनों बहनें, माया का रंग दबा हुआ तो चन्दा नाम के अनुरूप उजली-उजली, माया दब्बू और डरपोक तो चन्दा तेज तर्रार और मुँहफट, एकदम बिंदास... किसी की मजाल नहीं जो उससे कुछ कहे...उसके सामने माया को भी कोई कुछ कहे तो लड़ पड़ती थी।
उन दिनों उसके लिये लड़के की तलाश जोरों पर थी। बी.ए. के बाद पढ़ाई बन्द करा दी गई थी...क्या होगा ज़्यादा पढ़ के... कोई डिप्टी कलक्टर तो बन नहीं जाओगी...पढ़ाई में ख़र्च करने से दहेज तो कम हो नहीं जाएगा। हर दस पन्द्रह दिनों बाद उसे देखने वाले आते...उसे नुमाइश की तरह प्रदर्शित किया जाता...फिर लड़के वालों की तरफ़ से इनकार का संदेश आ जाता, पापा बड़बड़ाने लगते ...इन लोगों ने भी मना कर दिया...सब ससुरे हीरोइन-सी गोरी लड़की चाहते हैं...दहेज भी ससुरों को भरपूर चाहिये...अब न तो इतना रुपया ही है कि दहेज से मुँह भर दूँ, और न...इसके आगे माँ नश्तर चुभो देतीं...एक तो भगवान ने रंग रूप नहीं दिया ऊपर से किसी के सामने ऐसे मुँह लटका कर बैठ जाती जैसे फाँसी पर चढ़ाया जा रहा हो...ये नहीं ज़रा मुस्करा के जवाब दे दिया करे, ऐसे में चंदा ही उसके पक्ष में खड़ी होती...
बस भी करिए मम्मी...ये आप लोग रोज-रोज नुमाइश-सी क्यों लगाती हो दीदी की... उसका रंग दबा है तो उसका क्या दोष...अबकी कोई आये तो बताना मैं दीदी को बढ़िया पार्लर ले जाऊँगी... ऐसे सजा कर लाऊँगी कि कोई पहचान न पाए.।पर भाभी बात काट देतीं-"पार्लर सस्ते होते हैं क्या...महीने में चार-छह देखने वाले तो आते ही हैं, आधी तनखाह तो इसी में निकल जायेगी और भई, शादी ब्याह के मसले में झूठ नहीं चलते, जैसा रंग है, वैसा बताओ.।नहीं तो बाद में दिक्कत हो..."
उस रोज़ फिर कोई देखने वाले आ रहे थे, सुबह से घर में भाग दौड़ चल रही है, पापा जैसे उसे सुनाते हुए मम्मी से तेज आवाज़ में कह रहे थे... अबकी बात बन सकती है...जरा माया से कहो ठीक से तैयार हो...और लड़के वाले कुछ पूछें तो मुँह लटका के न बैठ जाये, कायदे से जवाब दे और हाँ, चंदा लड़के वालों के सामने नआये, उसकी सुंदरता के कारण लोग माया को रिजेक्ट कर देते हैं। चंदा दाँत पीस कर रह गई।
लड़के वाले आ गये, आदर सत्कार की प्रक्रिया चली, माया नाश्ते की ट्रे लेकर नजरें झुकाकर पहुँची... धीरे से नज़र उठाकर देखा...दो स्त्रियाँ, एक अधेड़, और एक बच्चा... इतने लोग थे, माया को लगा लड़का शायद नहीं आया, तभी बच्चा बोल पड़ा, ।"पापा... पापा, यही है होने वाली नई मम्मी।" ...एक साथ सैकडों बिच्छुओं ने डंक मारा हो जैसे...उसे पसीना आया, ट्रे हाथ से छूट कर नीचे गिरी, झन्न से कप टूटे...अचानक चन्दा तमतमाई हुई कमरे में आ गई उसकी संकटमोचक बन कर...फट पड़ी सबके सामने ..."पापा क्या मज़ाक है ये...? इतनी भार हो गई है दीदी" ...उसने माया का हाथ पकड़ा और बाहर खींचते हुए बोली, "।चलो बाहर, ये रिश्ता नहीं हो सकता।"
लड़के वाले अपमानित होकर चले गये। घर में कोहराम मच गया, जम कर महाभारत हुआ,
पर चन्दा एकदम दुर्गा रूप में आ गई थी, सबसे मोर्चा लेती हुई माया से बोली, " सुनिये दीदी...
अपनी लड़ाई ख़ुद लड़ना सीखिए... सौभाग्य आता नहीं लाया जाता है, आप भाग्य के भरोसे अपना जीवन मत लुटाइये, अपनी ज़िन्दगी ख़ुद बनाइये...किसी की परवाह मत करिए, अपने को किसी से कम मत समझिये, ज्ञान से बड़ी कोई सुंदरता नहीं होती, आपके पास टेलेंट है उसका उपयोग कीजिये। "
...उस दिन से छोटी बहिन उसकी गुरु बन गई, घर वालों का प्रतिरोध मन्द पड़ गया...माया ने एक प्राइवेट स्कूल में नौकरी कर ली और प्रतियोगी परीक्षाओं में जुट गई, जल्दी ही वह आत्मविश्वास से भरने लगी और घर पर घोषणा कर दी कि वह जब तक अच्छी नौकरी नहीं पा लेती शादी नहीं करेगी। भैया-भाभी के ताने, पापा-मम्मी की डाँट फटकार सबसे अविचलित होकर वह अपने लक्ष्य की ओर बढ़ती रही...और आज उसने पी-सी एस की परीक्षा में सफलता प्राप्त कर ली। एक क्षण में सबके सुर बदल गए थे... -"अरे, आप ऎसी ही बैठी हैं, थोड़ी देर में लोकल मीडिया वाले आ रहे हैंआपका इंटरव्यू लेने" -भाभी ने कमरे में आकर स्वर में मिठास घोलते हुए कहा-"चलिये आपको पार्लर ले चलूँ..."
"क्यो भाभी...?" चंदा ने कटाक्ष किया..."दीदी जैसी हैं वैसी ही सुंदर हैं, मीडिया वाले दीदी के रूप के कारण नहीं उसकी सफलता के कारण आ रहे हैं।" भाभी के चेहरे का रंग उतर गया।
पत्रकारो का जमघट लगा था, प्रश्न चल रहे थे माया के चेहरे पर ग़ज़ब का आत्मविश्वास था, चंदा ने देखा कैमरों के चमकते हुए फ्लैश की रोशनी में माया के चेहरे का साँवला रंग सबसे अधिक उजला लग रहा था। उसके चेहरे पर भी एक मोहक मुस्कान फैल गई।