सांड की आंख- 'आसमां ऊंचा है मेरा' / जयप्रकाश चौकसे

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सांड की आंख- 'आसमां ऊंचा है मेरा'
प्रकाशन तिथि : 24 अक्तूबर 2019


फिल्मकार तुषार हीरानंदानी की फिल्म 'सांड की आंख' महिला की अपार क्षमता को आदरांजलि की तरह कुशलता से गढ़ी है। यह खेलकूद की पृष्ठभूमि पर बनी मनोरंजक फिल्म है। एक सौ पचास मिनिट तक दर्शक की आंखें परदे पर चस्पा रहती है मानो वह स्वयं ही निशानेबाज है और अर्जुन की तरह मछली की आंख को एकटक देख रहा है। ऐसा आभास होता है मानो फिल्मकार दर्शक के साथ यह खेल खेल रहा है कि देखें पहले किसकी पलक झपकती है। फिल्म का गीत-संगीत भी कर्णप्रिय है और फिल्म की कथा को धार देने वाला गीत 'वीमनिया' कमोबेश उसकी कथा भी है। भारत में आज भी अंग्रेजी कितनी अधिक प्रयोग की जाती है कि निशानेबाजी के बुल्सआई का शाब्दिक अर्थ ही फिल्म का नाम भी है। इस सामाजिक सोद्देश्यता की सार्थक फिल्म में ढहते सामंतवाद और गणतंत्र के मेरूदंड अवाम की बात भी इस तरह प्रस्तुत है कि एक प्रतिस्पर्धा में रियासत के भूतपूर्व महाराज की पत्नी भी प्रतियोगी है और खेल के मैदान पर महारानी के पीछे महाराज चल रहे हैं और गांव क्षेत्र से आई दो महिलाओं को सुखद आश्चर्य होता है कि किसी क्षेत्र में पुरुष महिला के पीछे चल रहा है और वह भी स्वेच्छा से। वे तो जिस दकियानूसी ग्रामीण क्षेत्र से आई हैं उस क्षेत्र में कोई स्त्री पुरुष के आगे नहीं चल सकती।

इस बायोपिक में चंद्रा तोमर और प्रकाशी तोमर की भूमिकाएं तापसी पन्नू और भूमि पेडनेकर ने अभिनीत की है। कूढ़मगज घमंडी परिवार के मुखिया की भूमिका फिल्मकार प्रकाश झा ने अभिनीत की है। प्रकाश झा ने खलनायक की भूमिका विश्वसनीयता से अभिनीत की है। एक प्रतियोगिता में पहले और दूसरे नंबर पर आईं अशिक्षित महिलाएं विक्टरी मंच पर पहले दो पायदान पर खड़ी हैं और एक भूतपूर्व महारानी तीसरे पायदान पर है गोयाकि गुजश्ता सामंतवाद सचमुच में गुजर गया है। एक दृश्य में गंवार और दंभी परिवार का मुखिया उस कोच का घर और खेत जला देता है, जिसने उनके परिवार के लोगों को निशानेबाजी के लिए प्रेरित किया था। ग्रामीण क्षेत्र में खेत-खलिहान में आग लगाना दरअसल समाज के निहत्थे निम्न आयवर्ग के अरमानों की होली की तरह जलाया जाना है। वर्तमान में बैंक अपने कर्ज की वसूली में फसल जब्त कर लेते हैं। यह खेल भी फसल जलाने की तरह है। बहनापा भी फिल्म की भावना का मुख्य रेशा है और एक बहन के निशाना चूक जाने पर दूसरी बहन निशाना लगाती ही नहीं। प्रकाशी और चंद्रा तोमर की अम्बिलिकल कॉर्ड कटकर भी नहीं कटी है। दोनों बहनें अपनी पुत्रियों को भी निशानेबाजी के खेल में जाने के लिए प्रोत्साहित करती हैं। कूपमंडूक मुखिया सख्त खिलाफ है और एक दृश्य में उसकी सदा घूंघट में रहने वाली पत्नी उसकी छाती पर बंदूक रखकर अन्याय को जड़ से उखाड़ने का प्रयास करती है। एक दृश्य में दिखाया गया है कि महिलाओं द्वारा जीते हुए लगभग चार सौ पदकों को दंभी मुखिया लात मारता है और स्वर्ण पदक पर जूता रखता हुआ चला जाता है। दोनों बहनें भारत में होने वाली तमाम प्रतियोगिता जीत लेती हैं तो उनका स्वप्न है कि वे हवाई जहाज या पानी के जहाज में बैठकर विदेशों में आयोजित प्रतियोगिता में हिस्सा लें और वे केवल अनुमान लगाती हैं कि जहाज की सवारी कैसी होगी, समुद्र सतह से हजारों फीट ऊंचाई पर उड़ने का अनुभव कैसा होगा या समुद्र के जल का स्वाद कैसा होता है। उनकी मोड़ियां विदेश में विजय पाकर लौटती है और कहती है कि समुद्र के जल में नमक का स्वाद होता है और मनुष्ट की आंख से बहते अश्रु में भी नमक का स्वाद है। क्या यह संकेत है कि विश्व के सारे समुद्र महिलाओं द्वारा बहाए गए आंसुओं से बने हैं? यह बात भी गौरतलब है कि तापसी पन्नू और भूमि पेडनेकर युवा कलाकार हैं परंतु फिल्म में उन्होंने उम्रदराज पात्रों की भूमिकाएं अभिनीत की हैं। कहां तो महिलाओं को अपनी उम्र कम बताने का चाव होता है और कहां इन साहसी कलाकारों ने उम्रदराज पात्रों की भूमिकाएं इस तरह अभिनीत की हैं मानो वे इन्हीं के लिए जन्मी थीं। ज्ञातव्य है कि नरगिस ने भी मध्य अवस्था में उम्रदराज महिला की भूमिका 'मदर इंडिया' में अभिनीत की ती।

ज्ञातव्य है कि इस फिल्म के गीत राजशेखर ने लिखे हैं, जिन्होंने 'तनु वेड्स मनु' के गीत लिखे थे। सुखद आश्चर्य है कि 86 वर्ष की आशा भोसले ने गीत गाया है, 'आसमां ऊंचा है मेरा तू ही छू लेना, मेरे प्यारे सपने तू ही जी लेना, रात है गहरी पर कट जाएगी, उजली सुबह तेरी खातिर आएगी।' आशा की आवाज कभी बुढ़ाएगी नहीं। उनके चिरयौवन को सलाम।