सांता क्लॉज, वहशत-ए-दिल नाशाद ओ नाकारा फिरे / जयप्रकाश चौकसे

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सांता क्लॉज, वहशत-ए-दिल नाशाद ओ नाकारा फिरे
प्रकाशन तिथि : 25 दिसम्बर 2020


इस वर्ष कोरोना के कारण कोई उत्सव उत्साह से नहीं मनाया गया। होली से प्रारंभ कोरोना लहर अगली होली में भस्म हो जाएगी। पश्चिम के तमाम देशों में कोरोना का तांडव जारी है। वॉल्ट डिज्नी ‘इमेजिका’ में एक जगह पूरे वर्ष क्रिसमस की सजावट लगी रहती है। नैराश्य में डूबा कोई भी व्यक्ति इस क्रिसमस स्ट्रीट पर जा सकता है। इस वर्ष सांता क्लॉज उदास होंगे। उनके दिल का हाल शायर मजाज़ की नज्म में जाहिर होता है ‘ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूं ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूं , शहर की रात और मैं नाशाद ओ नाकारा फिरूं , जगमगाती जागती सड़कों पे आवारा फिरूं, ग़ैर की बस्ती है कब तक दर-ब-दर मारा फिरूं...’ यह बहुत लंबी नज्म का छोटा सा हिस्सा है।

एक घटना इस तरह है कि एक बीमार बच्चे के मन में यह भ्रम पैदा होता है कि वह क्रिसमस के पहले मर जाएगा और अगर बच गया तो उसे लंबी आयु प्राप्त होगी। बच्चे का परिवार और डॉक्टर उसे इस भयावह आशंका से मुक्त होने की सलाह देते हैं। बच्चे की मनोदशा के कारण उस पर दवा बेअसर थी। दवा का लाभ होने के लिए दवा पर विश्वास जरूरी है। विश्वास और आस्था से अधिक प्रभावकारी कुछ भी नहीं होता। विश्वास हो तो कठोती में गंगा जल दिखाई देता है। बहरहाल पूरा मोहल्ला आपस में यह तय करता है कि फलां दिन हम सब अपने घरों और सड़क को क्रिसमस की तरह सजाएंगे। यहां तक कि टेलीविजन प्रसारण में पुराने उत्सव की झलक ऐसे प्रस्तुत करेंगे मानो यह वर्तमान का प्रसारण हो। केबल वाला इसमें मदद करेगा। वह इस मोहल्ले को सारे शहर में किए जा रहे प्रसारण से अलग रखेगा। किसी के मन की बात इस मोहल्ले के टेलीविजन पर प्रसारित नहीं होगी। बहरहाल योजना के अनुसार सारा काम किया जाता है। इस प्रायोजित क्रिसमस के बाद बच्चा पूरी तरह शरीर और मानसिक यंत्रणा से मुक्त हो जाता है। संभवत: यह ओ हैनरी की कथा की तरह की घटना लगती है। ज्ञातव्य है कि अमेरिका में पॉयटर नामक व्यक्ति एक बैंक में क्लर्क है। उसकी एक गलती के कारण बैंक से घोटाला हो जाता है। अदालत उसे जेल भेज देती है। जेल का सहृदय अधिकारी उसके प्रति नरमी का व्यवहार करता है। इस अधिकारी का नाम ओ हैनरी था। सजा काटने के बाद पॉयटर छद्म नाम से कहानियां लिखता है जो बहुत लोकप्रिय हो जाती हैं।

हिंदुस्तानी फिल्मों में क्रिश्चियन पात्र होते हैं। ऋषिकेश मुखर्जी की ‘अनाड़ी’ में ललिता पंवार ने क्रिश्चियन मकान मालिक का अभिनय इतना प्रभावोत्पादक किया कि बाबूमोशाय ने मिसेज डीसा के पात्र को केंद्र में रखकर ‘मेम दीदी’ बनाई। ‘जागते रहो’ में गंवई गांव के भोले व्यक्ति को कष्ट दिया जा रहा है। एक पत्थर शीशा तोड़ता है, तो क्रॉस पर लटके ईसा मसीह की तस्वीर नजर आती है। भारतीय क्रिश्चियन समाज का सजीव चित्रण फिल्म ‘जूली’ में हुआ है। अमिताभ बच्चन अभिनीत ‘आखरी रास्ता’ भी प्रभावोत्पादक रही। ‘बूट पॉलिश’ का जान चाचा भी यादगार पात्र है। फिल्म ‘जूली’ में क्रिसमस उत्सव का गीत है, ‘माय हार्ट इज बीटिंग कीप्स ऑन रिपीटिंग आईएम वेटिंग फॉर यू, माय लव एनक्लोजेज...देट टाइम इज फ्लीटिंग टाइम इज फ्लीटिंग टाइम इज फ्लीटिंग।’