सांस्कृतिक संपदा की चोरी और तस्करी / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 01 अप्रैल 2021
आणविक शस्त्र के कारण विश्व में शांति बनी हुई है। इस शांति का आधार परस्पर सम्मान और प्रेम नहीं है। सैन्य शक्ति का अहंकार खोखली बात है। अमेरिका और चीन के बीच लंबा भौगोलिक फासला भी है। वे एक-दूसरे पर आक्रमण नहीं कर सकते, परंतु जोर-आजमाइश के लिए अन्य देश को मैदान बना सकते हैं। सारा द्वंद्व बाजार के मैदान पर लड़ा जा रहा है। चीन ने अनेक देशों के उद्योग में अपनी पूंजी लगाई है। भारत में भी पूंजी निवेश किया है। सारा लेन-देन हांगकांग बैंक के माध्यम से हो रहा है। शक्ति और समृद्धि के नशे से चीन को चीन का युवा आक्रोश मुक्त करेगा। चीन में सबको रोजी-रोटी मकान उपलब्ध हैं, परंतु अवाम अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता चाहता है।
भारत की प्राचीन संस्कृति संपदा धरोहर है। हमारा शास्त्रीय संगीत, चित्रकारी, रंगमंच, कला इत्यादि हमारा असली फोर्ट नॉक्स है। एलोरा, अजंता, खजुराहो, कालातीत हैं। संस्कृत में रचे ग्रंथों का जर्मन भाषा में किया गया अनुवाद मूल रचना के साथ न्याय करता है। मैक्स मुलर खजाने में संपदा सुरक्षित है। शाहजहां के पुत्र दारा शिकोह ने कुछ प्राचीन ग्रंथों का अनुवाद फारसी में कराया था। अकबर ने वेदव्यास की महाभारत का अनुवाद करवाया था, जिसकी प्रति जयपुर राजघराने के संग्रहालय में सुरक्षित है। फ्रांस के पीटर ब्रुक ने भारत में समय बिताया। उन्होंने वेदव्यास की महाभारत का नाट्य स्वरूप पेरिस में नदी के तट पर मंचित किया गया। यूरोप की सीन नदी को गंगा के रूप में प्रस्तुत किया गया। नदी किनारे महाभारत नाटक प्रस्तुति कितनी रोमांचक रही होगी। क्या आज हम गंगा के किनारे ऐसा कुछ कर सकते हैं? प्रदूषित पानी और व्यावसायिक हुड़दंग कुछ नहीं होने देगी। शिशिर भादुड़ी ने रामायण प्रेरित ‘सीता’ नामक नाटक विदेश में प्रस्तुत किया था। जब भारत में अंग्रेजों का राज था तब एंडरसन नाटक कंपनी ने संस्कृत में रचे ‘शूद्रक’ और कालिदास के नाटकों के अनुवाद प्रेरित रचनाओं का मंचन किया। अंग्रेज लेखक रिचर्ड बर्टन ने 1885 में वात्सायन के ‘कामसूत्र’ का अंग्रेजी अनुवाद किया। बनारस में गंगा के घाट पर बिस्मिल्लाह खान अलसभोर में शहनाई वादन करते थे। अमेरिका से आए अनेक शिष्यों ने निवेदन किया कि अमेरिका के विश्वविद्यालय परिसर गंगा घाट नुमा निवास स्थान बना देंगे। वहां प्रशिक्षण दें। खान साहब ने कहा कि निवास स्थान बना दोगे परंतु मेरी गंगा, अमेरिका में कैसे प्रवाहित करोगे? गिरीश कर्नाड इसी संपदा के वारिस रहे और उन्होंने अपने व्यक्तिगत योगदान से इसी संस्कृति, संपदा से प्रेरणा लेकर अपनी प्रतिभा को समृद्ध किया।
बंगाल में गुरुदेव टैगोर का शांतिनिकेतन भारत की सांस्कृतिक संपदा का टापू है। बंगाल के हर गांव, शहर, गली और मकान तक सांस्कृतिक संपदा की लहरें पहुंचती हैं। वर्तमान में वैचारिक संकीर्णता इन लहरों को लीलने का प्रयास कर रही है। इसी संपदा से प्रेरित रहे हैं साहित्यकार और फिल्मकार। आर.सी बोराल, सचिन देव बर्मन सलिल चौधरी, मन्ना डे इत्यादि। इन रचनाओं से प्रेरित फिल्में बनीं। कॉरपोरेट में नौकरी करने वाले व्यक्ति के दायित्व अलग हो जाते हैं। वह जाले फैलाता है। ज्ञातव्य है कि अंग्रेजों की ईस्ट इंडिया कंपनी ने कलकत्ता में अपनी यात्रा आरंभ की। प्रशासन के लिए भवन बनाया जिसका नाम रखा राइटर्स भवन। वह भवन आज भी कायम है। हमारे अपने कुछ लोग राइटर्स भवन का विस्तार पूरे बंगाल में करने का प्रयास कर रहे हैं गोयाकि ईस्ट इंडिया कंपनी का देसी संस्करण लाया जा सकता है।
वर्तमान में प्राचीन संपदा की प्रतिलिपियों के निर्यात द्वारा डॉलर कमाया जा सकता है। सांस्कृतिक संपदा जितनी बांटो उतनी बढ़ती है। यह कुछ श्रीकृष्ण द्वारा दिए गए अक्षय पात्र जैसी है। इसकी तस्करी रोकी जानी चाहिए। जर्मनी के मैक्स मूलर भवन में संपदा सुरक्षित है। ज्ञातव्य है कि भगवान शिवजी नंदी की सवारी करते हैं। आज नंदी सुर्खियों में है। याद रखना चाहिए कि शिव जी तांडव करते हुए आनंद स्वरूप में भी आ जाते हैं । परिणाम मई मास में आएगा।