साइकिल, चांद और विज्ञान / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :07 जून 2017
एआर रहमान बमुश्किल दस वर्ष के थे,जब उनके वादक पिता की हत्या कर दी गई। उनके पिता संगीतकार इलिया राजा के लिए काम करते थे। उस घटना के बाद एआर रहमान ने अपना धर्म परिवर्तन किया और इलिया राजा ने उन्हें अपने दल में शामिल किया। स्वाध्याय से रहमान ने पश्चिम की सिम्फनी को आत्मसात करने के प्रयास किए और कहते हैं कि उनके पास लंदन जाने के सुविधा-साधन नहीं थे, इसलिए पश्चिम के संगीत विशेषज्ञ ने चेन्नई आकर उनके ज्ञान का परीक्षण किया और उनके चाइल्ड प्रॉडेजी होने को स्वीकार किया। सामान्य तर्क द्वारा उनकी विलक्षण प्रतिभा का आकलन नहीं कर सकते परंतु महान मोजार्ट भी बचपन में ही संगीत रच लेते थे।
संगीत मनुष्य के भीतर होता है और प्रशिक्षण उसे मांजता व उजागर करने का अवसर देता है। फ्रांस के क्लॉड डेब्यूसी मात्र चौदह की उम्र में अपने से दोगुनी उम्र के लोगों को पियानो बजाना सिखाते थे। कालांतर में क्लाड डेब्यूसी ने महान सिम्फनियां रचीं। उनकी 'क्लेअर द लून (पूनम की रात) प्रशंसित रचना है। इससे प्रेरित मेरा रेडियो नाटक 'तीसरी धुन' इंदौर आकाशवाणी में भरत रत्न भार्गव के निर्देशन में रिकॉर्ड हुआ था। अनेक वर्ष बीबीसी में काम करने के बाद भरत रत्न भार्गव जयपुर में दृष्टिहीन बच्चों से नाटक करवाने में जुटे रहते हैं। उस नाटक के लिए रेडियो पर आवाज के बादशाह नंदलाल शर्मा को जयपुर के केंद्र से इंदौर आमंत्रित किया गया था।
बहरहाल, पारम्परिक शिक्षा से वंचित एआर रहमान ध्वनियों के संसार में जवान हुए और विज्ञापन फिल्मों के लिए संगीत रचने लगे। फिल्मकार मणिरत्नम ने उन्हें अपनी फिल्म 'रोजा' में अवसर दिया और उसके संगीत के लोकप्रिय होते ही रहमान के पास प्रस्तावों का अम्बार लग गया। उसी युग में कंप्यूटर जनित ध्वनियों का इस्तेमाल फिल्म संगीत में होने लगा और उनकी रचनाएं इतनी अलग ध्वनित होती थीं कि संगीत समीक्षक हेमचंद्र पहारे ने उन्हें अस्वीकार कर दिया। कालांतर में उन्होंने रहमान को सराहा। दरअसल शंकर-जयकिशन एवं सचिन देवबर्मन के माधुर्य के अभ्यस्थ लोगों को रहमान ऐसे लगे मानो वे किसी और दुनिया से आए हैं। इस तरह एआर रहमान स्टीवन स्पिलबर्ग की फिल्म 'ईटी' के पात्र लगे। इसी 'ईटी' से प्रेरित राकेश रोशन ने 'कृष शृंखला' बनाई है। यह आश्चर्यजनक है कि इस तरह की फिल्मों में साइकिल सवार पात्र चांद की ओर उड़ता दिखाया जाता है और 'ईटी' के बाद अनेक विज्ञान फंतासी फिल्मों में साइकिल और चांद का शॉट रखा गया है। संभव है कि मानव विकास में चक्र की खोज के बाद अनेक परिवर्तन हुए और चक्र को ही साइकिल से जोड़ा गया है। जब भारत के बाजार में साइकिल आई थी तब अज्ञान की यह हद थी कि पहियों की चेन उतर जाने पर उसे साइकिल विक्रेता के यहां 'मरम्मत' के लिए लोग ले जाते थे। एक दौर में सबसे अधिक साइकिलें पुणे और इंदौर में होती थीं।
आज यूरोप में फ्रांस जैसे देश में कार पार्किंग से कहीं अधिक साइकिल पार्किंग का स्थान है। दरअसल, प्रदूषण के खिलाफ लड़ाई में साइकिल के प्रयोग को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। अत: साइकिल का पुनरागमन विश्व को बचा सकता है। साइकिल चलाना और तैरना सबसे अधिक प्रभावशाली कसरतें हैं। पानी की कमी के कारण साइकिल चलाना ही एकमात्र रास्ता हो सकता है। घर में ही कसरत के लिए एक साइकिल होती है, जिस पर पैडल मार सकते हैं परंतु वह अपने स्टैंड पर ही स्थिर खड़ी रहती है। इसमें उतना आनंद नहीं है, जितना सड़क या मैदान पर साइकिल चलाने में आता है गति सीधे मति से जुड़ी है। एक दौर में साइकिल प्रतिस्पर्धा जीतने वाली शोभा खोटे अभिनय क्षेत्र में आई थीं और ऋषिकेश मुखर्जी की 'अनाड़ी' में वे नूतन की सहेली थीं। बाद में मेहमूद की प्रेमिका की भूमिकाओं में उन्हें बहुत पसंद किया गया।
ज्ञातव्य है कि फिल्मकार विटोरियो डी सिका की 'बायसिकल थीव्स' संसार की महानतम फिल्मों में से एक है। दूसरे विश्वयुद्ध से जन्मे अभावों को विलक्षण संवेदना के साथ इस फिल्म में प्रस्तुत किया गया था। सलमान खान ने साइकिल निर्माण भी शुरू किया है। दशकों से उन्हें साइकिल चलाने का शौक है और कई बार मुंबई से पनवेल वे साइकिल पर गए हैं। फिल्म सितारों को साइकिल की लोकप्रियता बढ़ाने की दिशा में काम करना चाहिए।