साक्षात्कार / अनिरुद्ध प्रसाद विमल

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हाव दिन जैवा दी बहुत दिनोॅ के बाद एैली छेलै। हुनी पूरे समय भगवान शिव रोॅ भक्ति में दियेॅ लागलोॅ छेलै। मंदिरोॅ केॅ धोय-पोछी केॅ स्नान करतें एक प हर बीती जाय। दोसरोॅ पहर खाना बनाय केॅ खाय में, तेसरोॅ पहर थोड़ोॅ आराम करै आरो चौथोॅ पहर में संध्या आरती के तैयारी। देर रात तांय भगवान शिव के आगू में बैठी केॅ ध्यान में लीन होय जाय। देहोॅ के सुध नै रहै। शिव के सान्निध्य में कखनी नीन्द आबी जाय, पते नै चलै। उम्र भी सौ के पार होय रैल्होॅ छेलै।

हमरा बहुते आश्चर्य होलै उनका देखी केॅ कि आय हुनी दोपहर के पैन्हेॅ केना आबी गेलोॅ छै। हम्में हाँसी के बोललियै, "दीदी, आय सुरुज कन्नै उगलोॅ छै। अत्तेॅ सबेरे ...?"

दीदी भी हँसी केॅ ही बोललै, "तोहीं तेॅ कहलोॅ कि आबेॅ बाकी किस्सा हम्में जानै छियै। हम्में खतम करवै। की हो, खतम करल्होॅ, कहिया तांय खतम होतै?"

हम्में दीदी के आगू में हँसतें हुअें बैठी गेलियै, आरो कहलियै, "बिना तोरा खतम होलें कहानी केनां खतम होतै।"

"तोरा हिसाबोॅ सें, जैन्होॅ तोंय हाथोॅ रो रेखा देखी केॅ कहनें छेलोॅ, आभी दस बरस उमर बांकी छै।" कहि केॅ दीदी हँसलै, "की कहियौं, चाहै तेॅ छियै मतुर मरै कहाँ छियै।"

"भगवान करे तोंय नै मरोॅ। तोंय हमरा खानदानोेॅ के सौगात छेकोॅ, एक बहुत बड़ोॅ धरोहर, एक ऐन्होॅ इतिहास जै पर गर्व करलोॅ जावेॅ पारै छोॅ।" हम्में कहलियै।

"तोंय की कहै छोॅ हमरा समझै में नै आवै छौं। औतेॅ लिखलोॅ-पढ़लोॅ तेॅ नहियें न छियौं हम्में, देह आवेॅ थक्की गेल्होॅं। गोड़ोॅ, तरवा में लहरा बिमारी, ठेनां में बात, गठिया, बहुतेॅ पीड़ा होय छौं। कोय करबैया नै, दिन तेॅ केन्होॅ कटी जाय छौं, रात कुहरतें बीतै छौं। असकल्लोॅ भूतोॅ नांकी मंदिरोॅ में पड़लोॅ रहै छियौं। यही दिनोॅ लेली बाल-बच्चा होय छै। आय जौं हमरा कोखी में कोय होतियै तेॅ ।" कहतें-कहतें दीदी आधै में रूकी गेलै।

"छोड़ोॅ यै सब बातोॅ केॅ, हम्में आबी केॅ झूठेॅ के दुख आरो तनाव दैकेॅ तोरा चल्लोॅ जाय छियौं।" दीदी चूप होय गेलै। आरो सोफा पर दोनों गोड़ समेटी के चुकुमुकु बैठतें बोललै, "ई सौ बरस के जिनगी में ढ़ेरी सब चीज देखलौं। बिजली, पानी, सड़क, रेल, बड़का-बड़का कोच, बस, मतुर है सोफा पर बैठतें आधोॅ थकान मिटी जाय छै। तहिया है सब कहाँ।"

हम्में दीदी के बात बदलै के कला पर मुग्ध छेलियै। उनका दुख सें हमरा दुख नैं पहुँचेॅ ये लेली हुनी बात बदली देनें रहै। हम्मूं उनका छेड़ै लेॅ नै चाहलियै। यै सें हुनकोॅ दुख घटै के बजाय बढ़िये जाय छेलै।

हम्में समझी रैल्होॅ छेलियै कि जैवा दी कोय ज़रूरी कामोॅ सें ही एैली छै मतुर कहै लेली भूली गेलोॅ छै। कै दाफी हुनका साथें ऐन्होॅ होलोॅ छै कि दोसरोॅ दिन फेरू सपरी केॅ आरो सौसे रसता वै कामोॅ केॅ रामोॅ के नामोॅ नांकी रटतें एैली छै। यै लेली हम्में कहलियै, "ज़रूरे कोय कामोॅ सें तोंय एैलोॅ छोॅ दीदी। कहै लेॅ भूली गेली छोॅ की?" हमरा याद दिलैतें दीदी के हवासेॅ उड़ी गेलै। धड़फड़ाय केॅ बढ़ियां सें बैठी गेलै, "तोरा ठिंया एैतेॅ सब चीज भूली जाय छियै। कत्तेॅ टैम होलै?"

"साढ़े बारह बजी रैल्होॅ छै।" घड़ी देखी केॅ हम्में बतैलियै।

" अरे, एक बजे रेडियो वाला आवै के टैम देनें छै। हमरा सें सवाल करतै, जवाब हमरा देना छै। पनरह अगस्त झंडा फहरै दिन रेडियो पर बजतै भागलपुरोॅ सें।

देखोॅ न, की न नाम लेलकै? " जैवा दी नाम बोलै में अटकी रैल्होॅ छेलै।

"इनटरभ्यू बोलतें होतौं।" हम्में उनकोॅ आधोॅ बात लोकतें शब्द पूरा करलियै।

"हों, हों यहेॅ बोली रैल्होॅ छेलै। पैन्हेॅ तेॅ भागलपुरेॅ आबै लेॅ कहै छेलै मतुर हम्में जबेॅ कहलियै कि ई देह आवेॅ काहीं जाय लायक नै छौं तबेॅ गामें आबै लेली तैयार होय गेलै।"

"दीदी, हमरा पैन्हेॅ बोलना चाहियोॅ न।"

"तोरे नाम लै रैल्होॅ छेलौं। हुनिये सीनी तोरा घरोॅ पर एक बजे आबै के बात तय करनें छौं। हम्में सोचलियौं कि तोरा सब बात मालूमें होतौं।"

हमरा याद एैलेॅ, भागलपुर आकाशवाणी में निदेशक सें जैवा दी के बारे में चरचा करनें छेलियै। कांग्रेस सरकार द्वारा देलोॅ जाय रैल्होॅ स्वतंत्राता सेनानी पेंशन केॅ ई कहि केॅ ठुकरैवोॅ कि देश सेवा रो कोय मूल्य ने होय छै के अच्छेॅ खासा चरचा होलोॅ छेलै। दीदी केॅ बैठाय केॅ हम्में जल्दी में तैयार हुअेॅ लागलोॅ छेलियै।

गरमी के घामें-घमजोर करै वाला दिन छेलै। संयोगे छेलै कि हाव दिन बिजली लगातार साँझ ताँय रही गेलै। समय पर दीदी के इन्टरभ्यू शुरू होलै। हमरा उम्मीद नै छेलै कि दीदी पूछलोॅ सवालोॅ के अत्तेॅ बढ़ियां जवाब देतैं, हुनी एक-एक सवालोॅ के अत्तेॅ ठोकलोॅ-पीटलोॅ सटीक जवाब देलकै कि ऐलोॅ अधिकारी शुक्ला आरो सिन्हा जी दंग रहि गेलै। औपचारिक जबाबोॅ सें संतुष्ट होयके रिर्काडिंग शुरू होलै।

शुक्लाजी रो सवाल-अत्तेॅ लंबा जीवन जीवी लेल्होॅ आरो आभियो एक्को टा दाँत नै टूटलोॅ छौं दीदी। स्वस्थ छोॅ। ऐकरोॅ राज?

जैवा-शुद्ध शाकाहारी खाना। दातुन छोड़ी केॅ कोय दोसरा चीजोॅ सें कहियो मुँह नै धोलियै। दातुन में नीम, टीटभांट रो बेशी प्रयोग, दाँत में कनकनाहट, सिरसिराहट होला पर सीसम के दातुन। देर तांय स्थिर सें होलै-होलै, बिना बेशी दबाव देनें दाँतोॅ केॅ धोय छियै। पान, सुपारी, कहियो जिहोॅ पर नै धरनें होबै। मुँह के गंदगी दूर करै लेली जमैन आरो सौंफ खाय छियै। खाना में साग, सब्जी, दूध, दही बेशी चाही केॅ खाय छियै। सप्ताह में तीन दिन व्रत राखै छियै। आठो पहर के उपवास, भगवान भोलेनाथ के ध्यान, भक्ति में डूबलोॅ रहै छियै। बाल विधवा छी हम्में, पूर्ण ब्रह्मचर्य। लंबा उमर के यहोॅ कारण हुअे पारै छै। मतुर हम्में मानै छियै सब भगवान के किरपा। १ॉ५ बरस बीती केॅ छठमोॅ शुरू छै। सब ठीक-ठाक छै। "

शुक्ला जी-पन्द्रह अगस्त केॅ तिरंगा झंडा फहरैलोॅ जैतै। देशोॅ के नाम कोय संदेश?

जैवा-"तिरंगा के मान राखेॅ देशोॅ के लोगें। बड्डी कुरबानी के बाद देश आजाद होलोॅ छै। हम्में उ$ दुख आँखी सें देखनें छियै। गोली, लाठी खायकेॅ तड़पी-तड़पी केॅ मरतें जवान-जवान गभरु बुतरु केॅ। मतुर देश के लोगें सब भूली गेलै। पनरह अगस्त आरो छब्बीस जनवरी केॅ भाषनें भर देश आरो शहीद याद रहै छै। जिलेबी खाय केॅ जे सभ्भे जाय छै फेरू देश वहेॅ दिन याद आवै छै। मासटर रहेॅ या बच्चा, नेता रहेॅ या मंत्राी, अफसर सें लैकेॅ चौकीदार तांय सब भूली केॅ निज स्वार्थ में डूबी जाय छै। शहीदोॅ के सपना, ओकरोॅ त्याग, बलिदान केॅ ताखा पर राखी केॅ।"

शुक्ला जी अगला सवाल करलकै, "अंगरेजोॅ के राज खतम होयकेॅ आपनो देश आजाद होलै। आबेॅ अपना लोगेॅ के राज छै। दूनोॅ में अपने की अंतर पावै छोॅ?"

जैवा दी लंबा सांस लेलकै, लागलै दोनों राज के चित्रा उनका आँखी में घूरतें रहेॅ फेरू जवाबोॅ में बोललै, "हमरा नजरोॅ में कोय अंतर नै, खाली मोहर बदललोॅ छै। अंगरेजोॅ बदला में भारत सरकार के मोहर। गाँधी जी एक्के धोती पिन्है आरो ओढ़ै छेलै। कैन्हेॅ, गरीब देश के प्रतिनिधि के रहन-सहन ओकरे अनुकूल होना चाहियोॅ। अफसर, नेता, मंत्राी के सुख-सुविधा अंगरेजे नांकी। हमरा वोटोॅ सें जीती केॅ जाय वाला प्रतिनिधि स्वर्ग के सुख भोगै छै आरो जनता, गरीब, मजूर, किसान, जेकरोॅ संख्या सौ में सत्तर छै केनां जियै छै, हाव बताय के ज़रूरत नै छै, उ$ तोहूँ जानै छोॅ, हम्मू जानै छियै। देश के राजस्व रो आधोॅ से बेशी भाग ऐकरे सीनी के रख-रखाव में खरचा होय जाय छै, जनता लेली बचै छै की? गाँव तेॅ एक बूंद लेली भी तरसी जाय छै। दिल्ली संसद सें चलै वाला विकास राशि, राहत के सामान ब्लौक तांय एैतें-एैतें बखरा होयकेॅ खतम होय जाय छै।"

शुक्ला जी लागले सवाल करलकै, "गाँव के विकास पर तेॅ सरकारें खूब खरचा करी रैल्होॅ छै। पंचायती राज कानून में तेॅ सबटा अधिकारे पंचायत के दै देलोॅ गेलोॅ छै। मुखिया केॅ करोड़ों में विकास कार्य वासतें देलोॅ जाय रैल्होॅ छै। गाँव केॅ तेॅ स्वर्ग होय जाना चाहियो?"

जैवा-सब उपरे-उपर कागजैं पर खतम होय जाय छै। पैन्हैं ब्लौक तक में खतम होय छेलै, आबेॅ मुखिया, पंच, वार्ड सदस्य तक में आबी केॅ खतम होय छै। पंचायती राज में बोटी केॅ कुट्टी करीकेॅ बखरा करैवाला के संख्या बढ़ी गेलै। झगड़ा-फसाद, मार, खून, हत्या बढ़ावै के सिवाय गाँमोॅ में आरो की करलेॅ छै पंचायती राज ने। गाँमोॅ में सब एक समान छेलै। कमाय-खाय छेलै, मेल-मिलापोॅ से सब रहै छेलै, आबेॅ प्रमुख, मुखिया जमींदार नांकी अमीर होय गेलै। जन विकास रो पैसा लूटी केॅ एयरकंडीसन गाड़ी पर घूमेॅ लागलै। उलटे सरकारें उपर के तर्ज पर ऐकरा सबकेॅ वेतन, भत्ता भी दियेॅ लागलै। मुँह बंद करै केॅ ई राजनीति छेकै। सोची-समझी केॅ चललोॅ ई चाल छेकै, हम्मेें लूटै छियै, तहूँ लूटोॅ। एक कामोॅ पर पाँच दाफी पैसा निकासी होय छै। वृद्धा पेंशन सें लैकेॅ मनरेगा तक रोॅ यहेॅ हाल छै। सब रो कमीसन बान्हलोॅ छै। गाँव स्वर्ग की होतै नरक सें भी बदतर होय गेलोॅ छै। गू के ढेर पर बैठलोॅ छै गाँव। मच्छरें चैनोॅ सें बैठी केॅ खाबेॅ नै दै छै। कोय देखै वाला नै, कोय सूनै वाला नै।

शुक्ला जी-निर्मल भारत अभियान में तेॅ शौचालय घरेघर बनाय के योजना छै। प्रचार-प्रसार भी खूब होय रैल्होॅ छै?

जैवा- (हँसतें हुअें) परचारोॅ सें तेॅ शौचालय नै बनी जाय छै। खाली परचारोॅ सें की होतै। गाँव के चारों तरफ, कच्ची रहेॅ या पक्की, सड़कोॅ किनारा में साँझ-भियान जनानी-मरदाना, लाज-शरम त्यागी केॅ पैखाना करतें खुल्ले में मिली जैतों। गाछ-विरिछ नै होय के कारण आड़-पेंच भी नै मिलै छै बेचारा गाँव वाला केॅ।

शुक्ला जी-पर्यावरण विश्व चिन्ता के विषय छेकै। सरकारें पंचायत दुआरा गाछ लगवाय रैल्होॅ छै। ऐकरा सें तेॅ फायदा होतै?

जैवा-गाछ लगतै तबेॅ न फायदा होतै। गाछ लगाय केॅ वार्ड मेम्बर कानोॅ में तेल दैकेॅ सूती जाय छै। गाछ मवेशी, खास करीकेॅ बकरी खाय केॅ खतम करी देलकै। शहरोॅ नांकी सुरक्षा पर खरचा, कड़ा नियम-कानून बिना अपनैलेॅ गाँव में गाछ लगाना कठिन छै। गाँव में शिक्षा खासकरी केॅ समझ के भी कमी छै। ई समझ लाना व्यवस्था के काम छेकै।

शुक्ला जी-शिक्षा लेली तेॅ सरकारें ऐड़ी-चोंटी एक करी रैल्होॅ छै। पैसा पानी नांकी बहैलोॅ जाय रैल्होॅ छै?

जैवा-योग्य शिक्षक बहाल नै होय रैल्होॅ छै। शिक्षकै में राष्ट्रीय भावना नै के बराबर छै तेॅ सोचेॅ पारै छोॅ की उनकोॅ पढ़ैलोॅ विद्यार्थी को रंग होतै। नौकरी प्राप्त करीकेॅ जेनां-तेनां पैसा कमाय केॅ मौज-मस्ती करना ही आयकोॅ लिखलका-पढ़लका के जीवन होय गेलोॅ छै। यै सुख-समृद्धि वासतें ईमान आरो देश तांय बेचै लेॅ तैयार छै लोग। प्राइवेट स्कूलोॅ में बच्चा अटै नै छै आरो सरकारी स्कूलोॅ में पोशाक, साइकिल, छात्रावृति देला पर भी टायठोॅ छै। प्राइवेट स्कूलोॅ के करता-धरता दोहन-शोषण सें करोड़ों में खेलै छै आरो व्यवस्था चूप छै।

शुक्ला जी-स्वास्थ्य, सड़क, पेयजल, सिंचाई के गाँव में कैन्होॅ हालत छै? किसान तेॅ ठीक-ठाक छै न?

जैवा-सब भगवान भरोसे छै। पंचायत प्रतिनिधि आरो ठेकेदारोॅ के चलती छै। केनां की होय छै नै कहेॅ पारौं। सब रो हालत खराब छै। सबसें बेशी किसानों के नीनान छै। मंहगोॅ मजूरी, मंहगोॅ खाद, मंहगो बीज, नहरोॅ में पानी नै, डीजल मशीनोॅ में जलाय केॅ खेती करोॅ आरो उपजैला पर सस्ता बेचोॅ। सुख-सुविधा से दूर बेचारा थूकोॅ से सत्तू सानै छै।

अगला सवाल शुल्ला जी के छेलै-जनप्रतिनिधि के कार्य जनता के सेवा करना छै। यै दायित्व के पूरा करै में हिनी सीनी कहाँ तक सफल होलोॅ छै?

जैवा-जनता के विश्वास पर खरा नै उतरेॅ पारलोॅ छै। एक अंगरेज गोरोॅ चमड़ी वाला गेलै, आजादी के बाद ई दोसरोॅ अंगरेज कारोॅ चमड़ी वाला वही स्थानोॅ पर वही नियत से बैठी केॅ राज करै छै। देश आरो राज्य के सबसें बड़ोॅ पंचायत में बैठलोॅ ई पंच सीनी देशोॅ सें बेशी चिन्ता आपनोॅ सुख, सुविधा आरो समृद्धि लेली करै छै। आपनोॅ वेतन, भत्ता बढ़ावै में सब दल एकमत होय जाय छै, लूटै छै अलगे। की कारण छै कि नेता शब्द सें लोगोॅ के घृणा होय गेलोॅ छै। संसद में हर तेसरोॅ अपराधी छवि के लोग जीती केॅ बैठलोॅ छै। सौ में सत्तर करोड़ोॅ-अरबोॅ के पूंजीपति छेकै, भला यें सीनी गरीब जनता रो सेवा की करतै। कर्त्तव्य बोध के अभाव तेॅ ऐकरा सीनी में होना ही होना छै।

शुक्ला जी-हम्में नै सोचनें छेलियै कि अत्तेॅ सधलोॅ जवाब अपनें सें मिलतै? भक्ति, वैराग सें जुड़लोॅ रूप ही हमरा सीनी दिमागोॅ में छेलै। कहाँ तक लिखलोॅ-पढ़लोॅ छियै अपनें?

जैवा-"स्त्राी शिक्षा के मायना में आय तलक हमरोॅ देश पिछुवैलोॅ छै। अंगरेजोॅ समय में जिला भरी में एक्के टा स्कूल छेलै। लड़की के स्कूल जायकेॅ पढ़वोॅ ईज्जत-मरजादा के खिलाफ मानलोॅ जाय छेलै। भाय आरो बापें दुआरिये पर मास्टर राखी केॅ पढ़ैनें छेलै। हम्में रामायण, महाभारत, गीता, शास्त्रा, पुराण सब पढ़नें छियै। सौसे देश के तीरथ घूमला सें भी दिमाग पाकलोॅ छै। अखबार, रेडियो तेॅ पढ़तैं-सुनतै रहै छियै। स्वतंत्राता आंदोलन सें तेॅ जुड़लोॅ छेवेॅ करलियै। १९७४ के जे.पी. आंदोलन में जार्ज फर्नांडिस, मधुलिमये, कर्पूरी ठाकुर के विचारोॅ के समर्थन करलियै। इमरजेंसी में कर्पूरी जी केॅ पाँच-पाँच दिन तांय छिपाय केॅ राखनें छेलियै। वैसें बेटा, कबीर कहाँ तक पढ़लोॅ छेलै। हमरा देश आरो भगवान रो भक्ति एक समान प्रिय छै।"

जैवा दी के विचार सें अभिभूत होयकेॅ कुछ देर लेली रिर्काडिंग बंद करी देलोॅ गेलै। तब तांय चाय-नाश्ता भी आबी गेलोॅ छेलै। अंदर जायकेॅ दीदी भी चाय-चूं लेलकै। उमर गिरै के साथें दीदी अपना कुछ नियम में ढील देनेें छेलै।

यै बीचोॅ में हम्में दीदी के जिनगी रो कहानी आरो उनकोॅ दिनचर्या के बारे में जबेॅ सुनैलियै तेॅ अचरज से दंग रही गेलै हुनी सीनी। तब तांय दीदी आबी गेली रहै। बिना कोय संकोच के दीदी बोललै, "बेरा लब्बेॅ लागलै। हमरा शिवजी रो सेवा में भी जाना छै।"

शुक्ला जी कहलकै, "दीदी, अपनें अखनी तुरत कहनेॅ छोॅ कि देश आरो भगवान भक्ति दोनों एक बराबर प्रिय छौं। अपनें के ई बातचीत लाखोॅ लोगें सुनतै। अपनें के विचार सें कत्तेॅ लोगोॅ केॅ लाभ मिलतै। अपनें नांकी महान पुण्यात्मा सें मिली केॅ हमरा सब रो जिनगी सुफल होय गेलै।"

दीदी अतनै टा बोललै, "भक्ति, भक्ति छेकै। ईश्वर मानी केॅ देशोॅ के भक्ति करोॅ, देशोॅ केॅ पूजोॅ, दोनूं रो भक्ति, सेवा एक्के साथें होय जैतौं। आपनोॅ मातृभूमि के सेवा ईश्वरे के सेवा छेकै।"

रिर्काडिंग फेरू शुरू होलैं कमरा में पूरे शांति छाय गेलै। शुक्ला जी सवाल करलकै-बामपंथ, नक्सली जेकरा आतंकवाद भी कहेॅ सकै छोॅ देशोॅ के एक बहुत बड़ोॅ समस्या छेकै। ऐकरा सें निपटै लेली की करना चाहियोॅ?

जबाब जैवा केॅ, " हिंसा-हिंसा छेकै। हिंसा के समर्थन कोय भी तरह सें नै करलोॅ जावेॅ सकै छै। हमरा विचार सें ई सब व्यवस्था सें नाराज-निराश भटकलोॅ होलोॅ लोग छेकै। जबेॅ देश के एक वर्ग केॅ हाशिया पर धकेली देलोॅ जाय, ओकरा हिस्सा के पैसा केॅ बीच वाला डकारी केॅ मौज-मस्ती करेॅ, तबेॅ लाचार वै वर्ग केॅ विरोध लेली तैयार हुअेॅ लेॅ ही पड़ै छै। उनकोॅ विरोध रो तरीका भगत सिंह वाला भी हुअेॅ सकै छै आरो गाँधी वाला भी। दोनों तरीका के आपनों-आपनों महत्ता छै। देश के आजादी रो लड़ाय दोन्हु तरीका सें लड़लोॅ गेलै। तखनी भगत सिंह जैसनोॅ लोगोॅ केॅ अंगरेज शासकें आतंकवादी ही कहै छेलै। ब्रिटिश दस्तावेज में आय्यो भी भगत सिंह आरो उनको साथी आतंकवादी के रूप में ही दर्ज छै। आय भी समाज के वै वर्ग केॅ आपनोॅ अधिकार केॅ पावै लेली, सिस्टम केॅ बदलै लेली गाँधी के अहिंसा मार्ग केॅ ही अपनाना चाहियोॅ, मतुर आयकोॅ अधिकार मद में चूर शासक वर्ग यै तरह के चलैलोॅ जाय रैल्होॅ आंदोलन के परवाह करै छै? दिल्ली के जंतर-मंतर, देश के प्रत्येक राज्य के विधान सभा के आगू धरना, अनशन पर बैठलोॅ सालोॅ-साल सें कुछ लोगोेॅ के तंबू में छेद होय गेलोॅ छै, लेकिन उनकोॅ मांग पर ध्यान नै देलोॅ गेलोॅ छै। कल भूख, अभाव सें लाचार होयकेॅ यही सीनी हथियार उठाय लै, तेॅ ओकरा पर आतंकवादी के ठप्पा लागी जैतेॅ। दिल्ली सें गाँव तक, संसद सें पंचायत स्तर तांय, चुनलोॅ गेलोॅ प्रतिनिधि, ठेकेदार आरो दलालें जनता रो गाढ़ोॅ कमाय लूटी केॅ जे धींगामस्ती करी रैल्होॅ छै ओकरा विरोध में जबेॅ जे लोग राष्ट्र भावना सें प्रेरित होयकेॅ उठतै तेॅ ओकरोह यहेेॅ न कहभोॅ।

शुक्ला जी-शहीद महेन्द्र गोप दल के साथें अपनेॅ के की भूमिका छेलै। शहीदोॅ के प्रति सरकारोॅ द्वारा करलोॅ जाय रैल्होॅ कामोॅ सें अपनें संतुष्ट छियै?

जैवा-सही बात ई छै कि सौ में अस्सी लोगोॅ के मौन समर्थन महेन्द्र गोप दल केॅ प्राप्त छेलै। हम्में मन, वचन, कर्म सें हुनका साथ दै छेलियै। हमरोॅ परिवार के यै में बहुत बड़ोॅ भूमिका रहलै। शहीदोॅ लेली सरकारोॅ के काम नै के बराबर छै। उनका परिवारोॅ लेली सरकारें कुछ नै करलकै। काहीं-काहीं शहीदोॅ के स्मारक बनलै। वै में सुरक्षा आरो देखरेख के अभाव में काहीं शहीदोॅ के स्थापित प्रतिमा रो ग़लत असामाजिक लोगोॅ द्वारा हाथ तोड़ी देलोॅ गेलोॅ छै तेॅ काहीं मूड़िये गायब छै। गंदगी, धूरा-पानी से भरलोॅ शहीद स्मारक केॅ कोय देखै वाला नै छै।

शुक्ला जी-अपनें आरो अपने के भाय अधिकलालें स्वतंत्राता सेनानी पेंशन लै सें कैन्हेॅ इंकार करी देलियै?

जैवा-देश सेवा के कोय मूल्य नै होय छै। माय के भूमि रो सेवा के मूल्य लेतैं सेवा के महत्त्व घटी जाय छै। ऐकरा पैसा या पेंशन सें तौलेॅ नै जावेॅ पारै।

शुक्ला जी-पता चललै कि अपनें मंदिर बनवैलेॅ छियै आरो पोखर खुदवाय केॅ बगीचा भी। ई सब करी केॅ कैन्होॅ महसूस करै छियै अपनें?

जैवा-माथोॅ पीटै छी। ई सब करी केॅ पछताय छी। अपना गोड़ोॅ में अपनै सें कुल्हाड़ी मारी लेलेॅ छी, नै निगलतेॅ बनै छै नै उगलतें। भगवान रो सेवा, भक्ति, पूजा में पूरेॅ बाधा। सौसे गाँवों के बकरी, माल-मवेशी बगीचै में। आरो पोखर गूगड़िया होय गेलोॅ छै। उ$ तेॅ मंदिर चारोॅ तरफोॅ सें घेरलोॅ छै नै तेॅ मंदिरोॅ में हग्गी केॅ घिनाय देतियै। कत्तेॅ लड़ाय-झगड़ा करभोॅ। आबेॅ देहोॅ में सामरथ नै। दूर के चीज सूझै नै छै। अपना हाथोॅ सें लगैलोॅ बाग-बगीचा केॅ नष्ट होतें देखै छियै तेॅ दुख होय छै। गाँव के लोगोॅ केॅ ऐकरा सें कोय मतलब नै छै कि गाछ-विरिछ मनुष्य केॅ वरसा, शुद्ध हवा, पानी दै वाला एक ऐन्होॅ ईश्वर के वरदान छेकै जेकरा बिना आदमी के प्राण संकट में पड़ी जैतेॅ। " दीदी जबाब देतें-देतें कानेॅ लागलोॅ छेलै।

रेडियो सें एैलोॅ दुन्हू आदमी के आँख भी लोराय गेलोॅ छेलै। आजादी के साठ बरस बादोॅ गाँव के ई दुख, पीड़ा, जौं रौ तौं छेलै।

शुक्ला जी फेरू लगलेॅ अंतिम सवाल करलकै, "दीदी, आयकोॅ युवा पीढ़ी के नाम कोय संदेश?"

जैवा-विवेकानन्द नांकी अपनोॅ देश, आपनोॅ मातृभूमि, अपनोॅ संस्कृति सें प्रेम करौेॅ। भ्रष्टाचारमुक्त भारत के निर्माण करोॅ।

सिन्हा जी रिर्काडिंग बंद करलकै आरो चाय पीवी केॅ जावै लेॅ तैयार होय गेलै। दीदी के गोड़ छूवी केॅ प्रणाम करतें दुन्हू के आँख अपार श्रद्धा सें भरलोॅ छेलै।

आय दीदी बहुत जादा खुश छेलै, लागी रैल्होॅ रहै कि बहुत दिनोॅ रो माथा पर राखलोॅ बोझोॅ उतरी गेलोॅ छै।