साक्षात्कार / गोवर्धन यादव
अपनी असफ़लता का स्वाद चख चुके बाक़ी के प्रतियोगियों ने उसे घेर लिया। वे सभी इस सफ़लता का राज जानना चाहते थे। आत्मविशवास से भरी उस युवती ने कहा" मित्रों...मैंने अपनी छोटी-सी ज़िन्दगी में कई कडे इम्तहान दिए है। मैं बहुत छोटी थी, तब मेरे पिता का साया मेरे सिर पर से उठ गया। माँ ने मेरी पढाई-लिखाई का जिम्मा उठाया। उसने कडी मेहनत की। घरॊं-घर जाकर लोगों के जुठे बर्तन साफ़ किए. घरों में पॊंछा लगाया। रात जाग-जाग-जाग कर कपडॊं की सिलाई की ।इस तरह मेरी आगे की पढाई चल निकली।लेकिन बूढी हड्डियाँ कब तक साथ देतीं। एक दिन वह भी साथ छोड गयी। पढने की ललक और कुछ बन दिखाने की ज़िद के चलते, मुझे भी घरों में जाकर काम करना पडा. इन कठिन परिस्थियों में भी मेरा आत्मविश्वास नहीं डगमगाया। जिस साक्षात्कात की बात आप लोग कर रहे हैं, वह तो एक मामुली-सा साक्षात्कार था।
बोलते हुए उस युवती के चेहरे पर छाया तेज देखने लायक था।