साक्षी तंवर और आमिर खान की 'दंगल' / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :29 अगस्त 2015
छोटे परदे पर अपने फूहड़ हास्य कार्यक्रम के लिए लोकप्रिय कपिल शर्मा अब्बास मस्तान की हास्य फिल्म में नायक की भूमिका में नजर आएंगे। प्राय: सफल व्यक्ति को लगता है कि अब उसे कोई और क्षेत्र में अपनी विजय पताका फहरानी चाहिए। बहरहाल, छोटे परदे पर अभिनय के लिए लोकप्रिय साक्षी तंवर ने 'मोहल्ला असी' में भूमिका की थी परंतु अब उसके प्रदर्शन की संभावना घटती जा रही है, क्योंकि उसमें कुछ कानूनी उलझनें आ गई है और फिल्म के प्राेमो में तथा कथित तौर पर अपशब्द के प्रयोग के कारण काशी के लोगों ने आपत्ति भी दर्ज की थी। सनी देओल की स्वयं अभिनीत व निर्देशित 'घायल दो' का प्रदर्शन दीवाली पर है। अगर उसे सफलता मिली तो 'मोहल्ला असी' प्रदर्शित हो सकती है। सितारे के गर्दिश के दिनों में फिल्मों के लिए अड़चनें आती हैं परंतु सफलता समीकरण बदल देती है।
खबर है कि साक्षी तंवर आमिर खान अभिनीत 'दंगल' में उनकी पत्नी की भूमिका कर रही हैं। आमिर की फिल्में खूब प्रचारित होती हैं और देखी भी जाती हैं। अत: साक्षी तंवर को बड़े परदे पर अच्छी संगत में देखा जाएगा। साक्षी ने कई लंबे समय तक चलने वाले सीरियलों में काम किया है। उनका राम कपूर के साथ 'बड़े अच्छे लगते हैं' के प्रारंभिक एपिसोड मनोरंजक थे और उनमें साक्षी ने प्रभावोत्पादक अभिनय किया था। इसके प्रसंग मनोरंजक थे तथा उनके देर से होने वाले सहवास के दृश्यों पर बहुत शोर मचा था, क्योंकि पारिवारिक दर्शकों के लिए बनाए गए कार्यक्रम मेंे खुलापन नहीं दिखाया जाता। बहरहाल, सीरियल में नशे में होने के दृश्य उसने बड़ी विश्वसनीयता से दिए थे। दरअसल, शराब के नशे के दृश्य प्राय: लाउड हो जाते हैं परंतु साक्षी ने इन दृश्यों को अपने ढंग से किया था। उन दिनों यह अफवाह भी थी कि शायद वह अपने यथार्थ जीवन में भी पीती है परंतु प्राय: यथार्थ के पियक्कड़ पीने के दृश्यों में अति नाटकीय हो जाते हैं और जॉनी वाकर जो अपने जीवन में कभी नहीं पीते थे, उन्होंने शराबी इतना स्वाभाविक अभिनीत किया कि मियां बदरूद्दीन का नाम ही जॉनी वाकर कर दिया गया। शायद इसीलिए कहते हैं कि 'अभिनय सिखाया नहीं जाता परंतु सीखा जा सकता है'। भावों को अनुभव करने के लिए उनको आत्मसात करना होता है, दृढ़ इच्छा शक्ति हो तो बात बन सकती है। अभिनय सिखाया नहीं जा सकता यानी इसका कोई फॉर्मूला नहीं है, गणित नहीं है। हर भूमिका अलग होती है और सीखा जा सकता का अर्थ है कि लगन हो, जीवन को देखने परखने की समझ हो, अनुभूतियों को आत्मसात कर सकते हैं तो यह संभव है।
बहरहाल, साक्षी अपने लंबे टेलीविजन कॅरिअर में अनुभव से स्वयं शिक्षित हैं। टेलीविजन में प्राय: एक जैसी स्थितियां होती हैं और मनोभाव दोहराने पड़ते हैं। टीवी गन्ने का जूस निकालने की हाथ से चलने वाली मशीन है, जिसमें गन्ने को डबल करते हुए एक-एक बूंद निकाल ली जाती है और उनका फेंका रसहीन गन्ना जानवर भी नहीं खाते। ऐसे टीवी में अनगिनत दोहराव के बावजूद साक्षी भावाभिनय में सक्षम है अर्थात वह अलग मिट्टी की बनी है। याद करें कि 'बुनियाद' के लिए प्रसिद्ध अनिता कंवर ने अभिनय करना ही बंद कर दिया, यह कहकर कि मेरी सारी लगन व परिश्रम से किए गए काम को टीवी पर देखते हुए दर्शक पकौड़े खाते हैं, आपस में बतियाते हैं तो उसके काम का क्या मूल्य है। अनीत कंवर ने अमोल पालेकर के निर्देशन में 'थोड़ा-सा रूमानी हो जाएं' नामक ऑपेरा नुमा फिल्म भी की थी। अनिता कंवर जैसी प्रतिभाशाली कलाकार का यूं ही जाना ठीक नहीं रहा परंतु जब हम उनके सहयोगी कलाकार अालोकनाथ को दोहराते देखते हैं और एक प्रतिभा का मशीन बन जाना देखते हैं तो अनिता कंवर के निर्णय का अर्थ समझ में आता है। बाजार में सिक्के की तरह चलना या अशर्फी बनकर सुरक्षित रहने में अंतर है। बहरहाल साक्षी तंवर के साथ आमिर खान भी पूरी तैयारी से अखाड़े में उतरेंगे, क्योंकि उन्हें प्रतिभा की पहचान है और वह मिट्टी पकड़ पहलवान है। साक्षी को अधिक रियाज की जरूरत है। अब क्रिकेट का कोई बैट्समैन अच्छे फुटवर्क के लिए कसरत करता है, या बैडमिंटन खेलता है तो प्रेमल हृदय बाल रूम डांसिंग करता है। नवाब पटौदी को टेस्ट के एक दिन पूर्व शिकार पर जाने में कोई एतराज नहीं था। हर व्यक्ति का अपना ढंग होता है।