सागरिका घोष, विद्या बालन और इंदिरा बायोपिक / जयप्रकाश चौकसे

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सागरिका घोष, विद्या बालन और इंदिरा बायोपिक
प्रकाशन तिथि :22 मार्च 2018


ताजा खबर है कि विद्या बालन ने सागरिका घोष की किताब 'इंदिरा - द मोस्ट पावरफुल प्राइम मिनिस्टर' के फिल्मांकन के अधिकार खरीद लिए हैं और वे स्वयं केन्द्रीय पात्र अभिनीत करना चाहती हैं। सागरिका घोष की यह किताब कई कारणों से पठनीय है। इसे अंग्रेजी भाषा के लिए भी पढ़ा जा सकता है। सबसे बड़ी बात यह है कि यह इंदिरा गांधी की स्तुति नहीं करती और ना ही उन्हें नकारात्मक छवि में प्रस्तुत करती है। सागरिका घोष ने इंदिरा गांधी की दुरुह विचार प्रणाली को समझने का प्रयास किया है। अपनी कलम को सर्जन के चाकू की तरह इस्तेमाल करके इंदिरा व्यक्तित्व का एक-एक रेशा अलग किया और उसका परीक्षण माइक्रोस्कोप से किया है। इंदिरा गांधी की मजबूती और कमजोरियों को समझने का प्रयास किया गया है। सबसे बड़ी बात यह है कि इंदिरा गांधी के जन्म 1917 से 1984 में उनकी निर्मम हत्या तक के समय में हुए राजनैतिक और सामाजिक परिवर्तन का लेखा जोखा प्रस्तुत किया गया है। इस तरह यह एतिहासिक दस्तावेज बन जाता है। इस किताब में घटना प्रधान उपन्यास के तत्व हैं और इतिहास की दृष्टि भी मौजूद है।

सागरिका घोष ने 'गूंगी गुड़िया' से 'स्पात की स्त्री' तक के परिवर्तन का लेखा जोखा प्रस्तुत करते हुए सामूहिक अवचेतन की कार्यप्रणाली भी प्रस्तुत की है। उस दौर में यह प्राय: कहा जाता था कि इंदिरा गांधी अपने मंत्रिमंडल की एकमात्र 'पुरुष' थीं। उनका ऐसा दबदबा था कि सारे मंत्री और अफसर उनसे भयभीत रहते थे। अजीब बात तो यह है कि जैसा इंदिरा गांधी ने भय फैलाकर शासन किया था, कुछ हद तक नरेंद्र मोदी भी उसी तरह का कार्य करने का प्रयास कर रहे हैं परन्तु संकीर्णता के साथ। यह कम ही लोगों को ज्ञात है कि इंदिरा गांधी सारा जीवन अपने पिता का विरोध करती रही हैं क्योंकि नेहरू का एक कवि और दार्शनिक की तरह राजनीति करना इंदिराजी को पसंद नहीं था। इंदिरा गांधी पर अपने दबंग दादा मोतीलाल का गहरा प्रभाव था और अपनी माता कमला नेहरू के प्रति उनके मन में गहरा आदर था। जवाहरलाल नेहरू की बहनों ने कभी इंदिरा की दबंगाई पसंद नहीं की। उनकी इच्छा थी कि इंदिरा नारी सुलभ शालीनता और पुरुषों से दबकर जीवन जीएं परन्तु इंदिरा गांधी साहस से जीती रहीं। चीन के विश्वासघात ने नेहरू को सुन्न कर दिया था परन्तु उस दौर में इंदिरा गांधी ने युद्धस्थल की यात्रा की और जवानों का हौसला बढ़ाया। इसी तरह 1965 में पाकिस्तान के साथ युद्ध के समय भी वे भारी जोखम उठाकर युद्धस्थल पर पहुंची थीं।

इंदिरा गांधी ने ही बांग्लादेश निर्माण के लिए भारतीय सेना को युद्ध करने का आदेश दिाय। उस निर्णय के पहले उन्होंने यूरोप व अमेरिका का दौरा किया तथा अमेरिका के प्रेसीडेन्ट के उपेक्षा के दृष्टिकोण की परवाह नहीं की। अमेरिका द्वारा भारत के समुद्र में सेवन्थ फ्लीट को जाने का आदेश दिया गया परन्तु इंदिरा गांधी जरा भी विचलित नहीं हुईं। सच तो यह है कि पाकिस्तान के टुकड़े करते हुए बांग्लादेश का निर्माण करना ही पाकिस्तान को सबसे अधिक नुकसान पहुंचा गया। पाकिस्तान को इतना बड़ा आघात अन्य कोई नहीं दे पाया। अमेरिका यात्रा में उनके साथ गए अफसरों ने जाना कि वे किस स्पात की बनी हैं। देश के विभाजन के समय भी महात्मा गांधी के परामर्श पर इंदिराजी ने शरणार्थी कैम्पस में जाकर अथक परिश्रम किया। दरअसल महात्मा गांधी इंदिराजी के साहस का बहुत सम्मान करते थे। योगाभ्यास इंदिराजी ने कमसिन उम्र से ही प्रारंभ कर दिया था और ताउम्र उन्होंने प्रात: योगाभ्यास किया। उन्होंने अपने पूरे जीवन कभी शराब नहीं पी और अपनी सेहत के प्रति वे सदैव जागरूक रहीं। ताउम्र उन्होंने दोपहर का भोजन शाकाहारी किया जबकि रात को भोजन यूरोपीयन शैली में बना होता था।

इंदिराजी के सेतु पर पूर्व और पश्चिम मिलते थे। इंदिरा गांधी पर अठारह विदेशी लेखकों ने पुस्तकें लिखी हैं और सागरिका घोष ने सभी का गहरा अध्ययन किया है। मैरी सैटन नामक लेखिका ने सत्यजीत रे और इंदिरा गांधी पर किताबें लिखी हैं। पत्रकार एवम लेखिका डोरोथी नॉरमन इंदिराजी की घनिष्ठ मित्र रहीं।

भारत के वैज्ञानिकों ने जब पहला सैटेलाइट बनाया तब इंदिरा गांधी ने ही उसका नामकरण 'आर्यभट्‌ट' किया। इंदिरा गांधी को भारतीय शास्त्रीय संगीत के साथ पश्चिम के संगीत में भी रुचि थी। उन्हें वेगनर का 'ब्राइडल कोरस' पसंद था। जब उन्हें संविद सरकार ने जेल भेजा तब वे जेल के कमरे में लगे लोहे के बार को गिनतीं और यूरोपियन सिम्फनी के बार की ध्वनि उनके अवचेतन में गूंजती थीं। ज्ञातव्य है कि कुमार गंधर्व अजन्ता की गुफा में संगीत साधना करना चाहते थे तो सरकारी अधिकारियों ने आज्ञा नहीं दी थी। जैसे ही इंदिराजी को ज्ञात हुआ, उन्होंने कुमार गंधर्व को सभी सुविधाएं उपलब्ध कराईं।

इंदिरा गांधी ने सत्यजीत रे से निवेदन किया कि वे उनके पिता जवाहरलाल नेहरू पर वृत्त चित्र बनाएं। सत्यजीत रे ने इन्कार कर दिया। कुछ समय बाद सत्यजीत रे को विदेशी मुद्रा की आवश्यता थी तो एक अधिकारी ने उनके आवेदन को अस्वीकृत किया और उसे लगा कि इससे इंदिरा गांधी प्रसन्न होंगी परन्तु तथ्य ज्ञात होते ही इंदिराजी ने अधिकारी को फटकार लगाई और रे महोदय को विदेशी मुद्रा उपलब्ध कराई। बांग्लादेश के निर्माण के बाद अटल बिहारी वाजपेयी ने इंदिरा गांधी को दुर्गा का अवतार कहा, जिसके लिए उन्हें अपने दल से क्षमा याचना करनी पड़ी। इसी तरह इंदिरा गांगी के एक कठोर फैसले के लिए उन्हें बधाई देने आर.एस.एस. के पूर्व प्रमुख देवरस ने भी पहल की थी परन्तु अपने व्यस्त कार्यक्रम के कारण उनकी भेंट नहीं हो पाई। जीवन में त्रासदी का कारण क्या है। सुकरात से पूछा गया, 'ट्रेजडी ऑफ एरर्स, गॉड वॉट', उत्तर मिला 'द एनेमी लाइज़ विदिन द मैन'। मनुष्य का शत्रु उसके भीतर ही होता है। इंदिरा गांधी अपने पुत्र संजय को बहुत स्नेह करती थीं और यही भाव उनको आघात पहुंचाता रहा। यह 'धृतराष्ट्र द्वन्द' है कि अपने पुत्र के उद्दण्ड होने को नजरअंदाज कर देना। संजय गांधी उस स्पात महिला का एकमात्र कमजोर हिस्सा था। आपातकाल लगाना संजय गांधी का विचार था।

बहरहाल, विद्या बालन से अधिक बेहतर दीपिका पादुकोण इंदिराजी की भूमिका कर सकती हैं। इस तरह की फिल्मों में बहुत धन लगता है इसीलिए चोटी के सितारों की आवश्यकता पड़ती है। इस तरह की फिल्म के लिए सर रिचर्ड एडिनबरो जैसा फिल्मकार चाहिए। इसके बावजूद विद्या बालन के कामयाब होने की प्रार्थना की जा सकती है।