साड़ी का गरिमा गान! / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :16 फरवरी 2016
श्रेष्ठि वर्ग के लोग एवं महिला सितारे शरीर में शल्य क्रिया कराकर हीरा जड़वाते हैं। यह फैशन की सतरंगी दुनिया का नया छलावा है। प्राय: महिलाएं शल्य क्रिया द्वारा नाभि में हीरा लगवा लेती हैं। नाभि दर्शना साड़ी कई दशक पूर्व फैशन में दर्ज हो गई है। दरअसल, साड़ी ऐसा अनूठा परिधान है, जो शरीर को कुछ छिपाता है और जो आवश्यक है, उसे दर्शाता भी है। साड़ी भारतीय दर्शन की तरह है, जिसमें सत्य की झलक पाने के लिए एक विशेष दृष्टि की आवश्यकता है। यह विचार की धूप-छाया और लुका-छुपी हमारी जीवनशैली की प्रतीक भी है।
हमारे अाख्यानों में अाध्यात्मिक सत्य प्रकट करने के लिए काल्पनिक कथाओं को माध्यम की तरह इस्तेमाल किया गया है परंतु कथाओं की रोचकता में खोया व्यक्ति सत्य की अनदेखी कर देता है। साड़ी भारत की भौगोलिक विविधता के साथ अपने रूप भी बदलती है। कहीं पांच गजी साड़ी पहनी जाती है, कहीं नौ और छह का रिवाज है। साड़ी बांधने के तरीके में भी विविधता है। महाराष्ट्र के अंचलों में विशेष ढंग से साड़ी के बड़े भाग को पैरों के बीच से निकालकर कमर में खोंसा जाता है। अंचलों अौर शहरों में अलग-अलग ढंग से साड़ी बांधी जाती है। अंचलों में इस ढंग से बांधी जाती है कि काम के समय साड़ी से कोई बाधा नहीं आती परंतु शहरों में ढंग यह होता है कि क्या दिखे और क्या न दिखे। फिल्म सेंसर के तमाम अफसरों को साड़ी बांधने के तरीके सीखना चाहिए, जिससे उन्हें अपने काम में आसानी होगी।
नाभि दर्शना के उदय-काल में यह आश्चर्य होता था कि यह कम्बख्त साड़ी टिकी कहां है और इसके बिखर जाने का भय भी होता था, जिसमें आनंद की उम्मीद को सभ्यता के तकाजे के अनुरूप छिपाया जाता था। हमारे महान आख्यानों में भी साड़ी प्रसंग बड़े रोचक बन पड़े हैं। मसलन, भरी सभा में दुर्योधन के आदेश पर दुशासन द्वारा द्रोपदी का चीरहरण, जिसमें श्रीकृष्ण के चमत्कार से यह चीरहरण पूरा नहीं हो पाता। दुशासन पसीने से तरबतर हो जाता है और सारे सभासद प्रसन्नता व्यक्त करते हैं परंतु भीतर ही भीतर उनमें से कुछ दुखी भी हुए होंेगे। अर्जुन जब नारी के रूप में राजकुमारी उत्तरा को गीत-संगीत व नृत्य सिखाने जाते हैं, तब वे उत्तरा पर मोहित हुए और उत्तरा अर्जुन के नारी रूप के प्रति आकर्षित तो हुई थीं परंतु संकट टलने पर जब अर्जुन अपने पुरुष रूप में प्रकट होकर उत्तरा से शादी की बात करते हैं, तो वह नकार देती है, क्योंकि उसे उनका महिला रूप ही अच्छा लगा था। क्या इस प्रसंग में संसार के श्रेष्ठतम महाकवि वेदव्यास उस काल में समलैंगिकता की मौजूदगी का संकेत नहीं दे रहे हैं? ग्रीक विद्वानों का कहना है कि महाभारत पढ़ना गहरे घने जंगल में प्रवेश करने की तरह है और जितने दूर तक जाएंगे, अापको जीवन और दर्शन के बारे में उतना ही नया ज्ञान मिलेगा परंतुु आज ऐसा समय आ गया है कि गहराई की थाह लेने को अपराध घोषित कर दिया गया है। हमारा सारा असीमित ज्ञान अब कूपमंडूकों के आदेश तय करते हैं। ज्ञान की उदात्त परिभाषा प्रतिबंधित है।
महान लेखक गुलशेर शानी की बस्तर के जन-जीवन पर आधारित एक कहानी में शहर से लौटी कन्या ब्लाउज पहनकर अपने अंचल आती है तो उसके अपने लोगों को लगता है कि यह क्या वाहियात असभ्यता है। स्पष्ट है कि भौगोलिक एवं आर्थिक परिस्थितियां नैतिक मूल्यों के विविध रूप गढ़ती हैं। याद कीजिए राजिंदर सिंह बेदी का महान उपन्यास 'एक चादर मैली-सी' को, जिसमें आर्थिक हालात देवर और विधवा भाभी के विवाह को उचित करार देते हैं, क्योंकि देवर इतना नहीं कमाता कि वह विधवा भाभी और उसकी बेटी के जीवन निर्वाह के साथ स्वयं की गृहस्थी को भी वहन कर पाए। गरीबी और अमीरी अपने-अपने नैतिक मानदंड गढ़ती है। इसी कारण श्रेष्ठि वर्ग और बेहद गरीब वर्ग में नैतिकता को लेकर उतनी दुविधाएं नहीं है, जितनी बेचारे मध्यम वर्ग में है। मध्यम वर्ग की छद्म नैतिकता उसके जीवन का सबसे बड़ा भार है।
साड़ी शायद एक जादू है। गरीब महिलाएं नदी के तट पर अपनी एकमात्र साड़ी को धोती है और उसे पहने भी रहती है। यह कला का काम है और आर्थिक अभाव से कला भी जन्म लेती है और शायद इसीलिए व्यवस्था नहीं चाहती कि गरीबी का नाश हो।