सातवाँ खत / सआदत हसन मंटो
चचाजान,
आदाओ-तस्लीमात।
माफ कीजिएगा, मैं इस वक्त अजीब उलझन में फँसा हुआ हूँ। मेरे पिछले खत की रसीद मुझे अभी तक नहीं मिली। क्या वजह है?
वह मेरा छटा खत था और मैंने उसे अहमद राही के हाथों पोस्ट करवाया था - डर है, गहीं गुम न हो गया हो!
यह दुरुस्त है कि हमारे यहाँ कभी-कभी ऐसा भी होता है कि अगर लाहौर से शेखूपुरा कोई खत भेजा जाए तो ढाई-तीन साल के अर्से में पहुँचता है और यह महज छेड़ खूबाँ से चली जाए असद के तौर पर दानिस्ता किया जाता है, लेकिन आपके साथ ऐसी दिल्लगी का खयाल भी हमारे डाक महकमे को कभी नहीं आ सकता, इसलिए कि वह सबका-सब आपका मुफ्त भेजा हुआ गेहूँ खा चुका है।
जहाँ तक मैं समझता हूँ, सारी कारस्तानी रूस की है और इसमें भारत का भी हाथ है - पिछले दिनों लखनऊ में आपके इस बरखु़र्दार भतीजे पर एक सैमिनार हुआ था। उसमें किसी ने कहा था कि मैं आपके अमरीका के लिए अपने पाकिस्तान में जमीन समतल कर रहा हूँ।
कितनी टुच्ची बात है - कि यह बात सारी दुनिया जानती है कि अभी तक आपने बुलडोजर भेजे नहीं हैं और - मैं भारत के उस कम अक्ल से पूछता हूँ कि मैं अमरीका के लिए पाकिस्तान में जमीन किस चीज से समतल कर रहा हूँ? अपने सर से!
मेरी बातें बहुत देर के बाद आपकी समझ में आती हैं सिर्फ इसलिए कि आप हाइड्रोजन बमों के तज्ब्रात में व्यस्त हैं। आपको दीन का होश है न दुनिया का - किबला, इन बमों को छोड़िए। यह कोई मामूली बात नहीं है कि मेरा छटा खत कम्युनिस्ट ले उड़े हैं।
मेरे बस में होता तो मैं इन शरारतपसंदों के ऐसे कान ऐंठता कि बिलबिला उठते, मगर मुसीबत यह है कि मैं - अब आपको क्या बताऊँ - यहाँ के सारे बड़े-बड़े कम्युनिस्ट मेरे दोस्त हैं। मिसाल के तौर पर अहमद नदीम कासमी, सिब्ते हसन, अब्दुल्ला मलिक -हालाँकि मुझे इससे नफरत है, बड़ा घटिया किस्म का कम्युनिस्ट है फीरोजउद्दीन मनसूर, अहमद राही, हमीद अख्तर, नाजिश काशमीरी और प्रोफेसर सफदर। चचाजान, मैं इन लोगों के सामने चूँ नहीं कर सकता इसलिए कि मैं आए दिन इनसे कर्ज लेता रहता हूँ। आप समझ सकते हैं कि देनदार होने के नाते उनके सामने कुछ बोल नहीं सकता - आपने मुझे कर्ज तो कभी नहीं दिया, अलबत्ता शुरू-शुरू में जब मैंने आपको पहला खत लिखा था तो उससे मुतासिर होकर आपने खैरअंदेशी के तौर पर मुझे तीन सौ रुपए भिजवाए थे। और मैंने आपके इस जज्बे से मुतास्सिर होकर कसम ले ली थी कि उम्र भर आपका साथ दूँगा, मगर आपने मेरे इस जज्बे की दाद न दी और माली दमदाद का सिलसिला बंद कर दिया।
प्यारे चचाजान, मुझे बताइए, मुझसे कौन-सा गुनाह हुआ है कि आप मुझे सजा दे रहे हैं - लाहौर में जो आपका दफ्तर है, उसके चपड़ासी भी मुझसे सीधे मुँह बात नहीं करते। दो-तीन जूनियर अफसर, जो मेरे पाकिस्तानी भाई हैं, उनमें आपने कौन से ऐसे सुर्खाब के पर लगा दिए हैं कि वह मेरा नाम सुनते ही मुझे गालियाँ देना शुरू कर देते हैं। आखिर मेरा कुसूर? मैंने अगर बगैर लालच के माना है कि आपने मेरी पैसे से मदद की है तो इसमें आपके मुलाजिमों ने क्या बुराई देखी - भारत को आप करोड़ों डालर दे चुके हैं और वह मानता है। मेरे पाकिस्तान को आपने मुफ्त गेहूँ भेजा और वह गरीब भी मानता है - कराची में हम लोगों ने ऊँटों का जुलूस निकाला और बाकायदा इश्तिहाराजी की कि आपने हम पर बहुत बड़ा करम किया है। यह जुदा बात है कि आपका भेजा हुआ गेहूँ पचाने के लिए हमें अपने मेदे अमरीका हिमायती बनाने पड़े।
मेरी समझ में नहीं आता कि आप क्यों भारत को अरबो डालर कर्ज दे रहे हैं। पाकिस्तान को फौजी मदद देने का भी आपने वादा किया है - आप मेरा वजीफा क्यों नहीं लगा देते। लोग क्या कहेंगे कि पाकिस्तान के इतने बड़े कहानीकार को सिर्फ तीन सौ रुपए देकर आपने हाथ रोक लिया। यह मेरा अपमान है और आपका भी। अगर आप वजीफा नहीं देना चाहते तो न दें, पर कर्ज में क्या आपत्ति है। मेहरबानी करके जल्द से जल्द एक लाख डालर मुझे कर्ज दे डालिए ताकि मैं इत्मीनान के दो साँस ले सकूँ।
आगा खाँ को तो आप जानते ही होंगे, क्योंकि वह भी बहुत बड़ा सरमाएदार है। उसकी हाल ही में प्लेटीनम जुबली मनाई गई थी - मेरा जी चाहता है कि मेरी भी एक जुबली हो जाए - आप मेरे प्यारे-प्यारे, बहुत ही प्यारे चचा हैं। आपसे चोचले न बखारूँ तो और किससे - खुदा के लिए मेरी एक जुबली कर डालिए ताकि कब्र में मेरी रूह बेचैन न रहे।
पाकिस्तान, मेरा पाकिस्तान अपने फनकारों की कदरदानी में लापरवाह नहीं, लेकिन मुसीबत यह है कि मुझसे जो ज्यादा हकदार हैं, उनकी लिस्ट बहुत लंबी है - पिछले दिनों मेरी हुकूमत ने खान बहादुर मुहम्मद अब्दुलरहमान चुगताई के लिए पाँच सौ रुपए माहवार आजीवन वजीफा मुकर्रर किया। खान बहादुर साहब अल्लाह के फजल से खूब बड़ी-जायदाद के मालिक हैं, इसलिए वह मुझसे कहीं ज्यादा मदद पाने के हकदार थे - इसके बाद खान बहादुर अबुल असर हफीज जालंधरी साहब के लिए भी ताहयात इतना ही वजीफा मंजूर किया गया, इसलिए कि वह भी अमीर हैं।
मेरी बारी खुदा मालूम कब आएगी, इसलिए कि मैं अलाटशुदा मकान में रहता हूँ, जिसका किराया भी मैं अदा नहीं कर सकता।
बहुत से जरूरतमंद और भी साहेबान पड़े हैं। मिसाल के तौर पर मियाँ बशीर अहमद बी.ए., संपादक माहनाम 'हुमायूँ', साबिक सफीर तुर्की, सैयद इम्तियाज अली ताज, मिस्टर इकराम, पी.सी. एस. फजल अहमद मरीम फजली, वगैरह-वगैरह - इन सबका नंबर पहले आता है, इसलिए कि इनको किसी वजीफे की जरूरत नहीं। लेकिन मेरी हुकूमत का दिल साफ है। वह खिदमात देखती है, सरमाया और ओहदा नहीं देखती।
वैसे मैंने कौन-सा इतना बड़ा काम किया है जो इन लोगों को छोड़कर मेरी हुकूमत अपना ध्यान मेरी तरफ दे और ईमान की बात तो यह है कि मैं सिर्फ इस बलबूते पर कि आपका भतीजा हूँ, आपसे गुजारिश कर रहा हूँ कि मेरी कोई जुबली कर डालिए।
मेरी जिंदगी के दिन बहुत सीमित हैं। आपको दुख तो होगा मगर मैं कहूँ कि मेरे इस हाल के कारण आप खुद हैं। अगर आपको मेरी सेहत का खयाल होता तो आप और कुछ नहीं तो कम-से-कम वहाँ से एलिजाबेथ टेलर ही को मेरे पास भेज देते कि वह मेरी तीमारदारी करती। मालूम नहीं, आप क्यों इतनी गफलत बरत रहे हैं। क्या आप मेरी मौत चाहते हैं, या कोई और बात है, जिसे आपने रहस्य बना के रख छोड़ा है?
मगर यह रहस्य अब रहस्य नहीं कि मरे देश में कम्युनिज्म बड़ी तेजी से फैल रहा है - आपसे क्या छुपाऊँ, कई बार तो मेरा भी जी चाहता है कि लाल पंख लगाकर मैं कम्युनिस्ट बन जाऊँ। अब आप ही बताइए, यह कितनी खतरनाक इच्छा है! इसीलिए, मेरे बुजुर्गवार, मैंने आपको यह सलाह दी थी कि रूसियों के सकाफती दल के तोड़ में वहाँ से लुभावन लड़कियों के एक खैरअंदेशी दल रवाना कर दीजिए - सावन के दिन आनेवाले हैं। इस मौसम में हम लोग बड़े रोमांटिक हो जाते हैं। मेरा खयाल है, अगर आपका भेजा हुआ दल इस मौसम में आए तो बहुत अच्छा रहेगा। उसका नाम बरसाती प्रतिनिधि दल रख दिया जाएगा।
चचाजान, मैंने एक बड़ी डरावनी खबर सुनी है कि आपके यहाँ तिजारती और सनअत बड़े नाजुक दौर से गुजर रही है। आप तो माशाल्लाह अक्लमंद हैं, लेकिन एक बेवकूफ की बात भी सुन लीजिए - यह तिजारती और सनअती खतरा सिर्फ इसलिए पैदा हुआ है कि आपने कोरिया की जंग बंद कर दी है। यह बहुत बड़ी गलती थी। अब आप ही सोचिए कि आपके टैंकों, बम बार हवाई जहाजों, तोपों और बंदूकों की खपत कहाँ होगी?
इसमें कोई शक नहीं कि दुनिया की आम राय के सख्त विरोध के आधार पर आपको जंग बंद करनी पड़ी है, लेकिन दुनिया की आम राय आपके सामने क्या हकीकत रखती है। मेरा मतलब है, सारी दुनिया आपके एक हाइड्रोजन बम का मुकाबला कर सकती है - कोरिया की जंग आपने बंद कर दी है। यह बहुत बड़ी गलती थी। खैर इसको छोड़िए, आप हिंदुस्तान और पाकिस्तान में जंग शुरू करा दीजिए। कोरिया की जंग के फायदे इस जंग के फायदों के सामने फीके न पड़ जाएँ तो मैं आपका भतीजा नहीं।
किबला, जरा सोचिए। यह जंग कितनी फायदेमंद तिजारत होगी। आपके तमाम हथियार बनाने वाले कारखाने डबल शिफ्ट पर काम करने लगेंगे। भारत भी आपसे हथियार खरीदेगा और पाकिस्तान भी। आपकी पाँचों उँगलियाँ घी में होंगी और सिर कड़ाहे में।
वैसे आप हिंद-चीन में जंग जारी रखिए। लोगों को नसीहत करते रहिए कि यह बड़ा नेक काम है - फ्रांसीसी अवाम और फ्रांसीसी हुकूमत जाए जहन्नम में। वह इस जंग के खिलाफ हैं तो हुआ करें। हमें कोई परवा नहीं करनी चाहिए। आखिर हमारा मकसद तो दुनिया में अमनोअमान कायम करना है, क्यों चचाजान!
मुझे आपके मिस्टर डलेस का यह कहना बहुत पसंद आया है कि आजाद दुनिया का उद्देश्य कम्युनिज्म को शिकस्त देना है - यह है हाइड्रोजन बम की पुरअज और आजादाना जबान।
जाहिल लोग यह कहते हैं के पश्चिमी एकता का उद्देश्य दूसरी कौमों के दरमियान मतभेद को ताकत के बगैर हल करना चाहिए - मैं पूछता हूँ ताकत के बगैर कोई मतभेद आज तक हल हुए है - आजकल तो सारी दुनिया मतभेदों से भरी पड़ी है और इसका हल इसके सिवाय और क्या हो सकता है कि दुनिया को मुकम्मल तबाही की तस्वीर दिखाई जाए और उससे कहा जाए : "तुम सब अपने घुटने टेक दो।"
बरतानिया के मिस्टर बेवन का मुँह आप क्यों बंद नहीं करते। आपकी बिल्ली और आप ही से म्याऊँ। गधा कहीं का आपके खिलाफ जहर उगल रहा है। आपके मिस्टर डलेस के बारे में कहता है कि वह नए खयालात से वंचित है और दुनिया को हाईड्रोजन बम से डरा-धमकाकर अपना उल्लू सीधा करते हैं - उल्लू कहीं का।
चचाजान, मुझे बड़ा गुस्सा आता है, जब बरतानिया का कोई मसखरा आपके खिलाफ ऊल-जलूल बकता है - मेरी मानिए, टापू बरतानिया ही को बिलकुल तबाह करके हमेशा की नींद सुला दीजिए। बहादुर लोगों के लिए यह टापू हमेशा सिर-दर्द बने रहे हैं। अगर आप इनको उड़ाना नहीं चाहते तो वह बीस मील लंबी खाई पाट दीजिए जो बरतानिया को पूरी तरह यूरोप से जुदा कर देती है। अल्लाह बख्शे, नेपोलियन बोनापार्ट और हर हिटलर को इससे बड़ी चिढ़ थी। अगर यह न होती तो आज मिस्टर बेवन भी न होते और बहुत मुमकिन है, आप भी खु़दा को प्यारे हो गए होते जो परेशानियाँ अब आपको उठानी पड़ रही हैं, उनसे आपको निश्चित रूप से छुटकारा मिल गया होता।
मैं आपसे सच कहता हूँ, आगे चलकर आपको यह बरतानिया बहुत तंग करेगा। 'मैं तो कंबल को छोड़ता हूँ, कंबल ही मुझे नहीं छोड़ता' वाला मामला हो जाएगा - पिछली जंग में जर्मनी ने इटली को अपने साथ मिलाया, गरीब मुसीबत में गिरफ्तार हो गया और लेने-के-देने पड़ गए - आप इस चक्कर में न पड़िएगा। बस अपने उसी पुराने उसूल पर कायम रहिए : "कैश एंड कैरी।"
नदी व नहरों के जाल से लेस ब्रिटेन को पुर करके योरोप से मिलाने का मनसूबा आप यह खत मिलते ही बना लें। मेरा खयाल है, आपके इंजीनियर एक महीने के अंदर-अंदर इस काम को जिम्मेदारी से पूरा कर लेंगे।
मैंने असल में यह खत आपको इसलिए लिखा था कि आप मेरी कोई जुबली मनाएँ, क्योंकि मुझे इसका बड़ा शौक है।
मुझे लिखते हुए पच्चीस बरस होने को आए हैं - मैं चोंचला ही सही, लेकिन मेरी आपसे अर्ज है और मैं गिड़गिड़ाकर कहता हूँ कि और कुछ नहीं तो मेरी एक जुबली मना डालिए।
चूँकि मेरा पेशा लिखना है, इस संबंध से इस जुबली का नाम 'मंटो-पारकर जुबली' होना चाहिए। बस आप मुझे 'पारकर फिफ्टीन' कलमों से तुलवा दीजिए - तराजू मैं अहसान बिन दानिश की टाल से ले आऊँगा।
मालूम नहीं, एक कलम का वजन कितना होता है - मेरा वजन इस वक्त एक मन ढाई सेर है, लेकिन जुबली के रोज तक यह घटते-घटते एक मन, रह जाएगा - अगर आपने देर कर दी तो मुझे बड़ी निराशा का सामना करना पड़ेगा, इसलिए कि मेरा वजन घटते-घटते सिफर रह जाएगा।
आप हिसाब लगा लीजिए कि एक मन में 'पारकर फिफ्टीवन' कलम कितने चढ़ते हैं, लेकिन खु़दा के लिए जल्दी कीजिए।
यहाँ सब खैरियत है - मौलाना भाशानी और मिस्टर सहरवर्दी माशाल्लाह दिन-ब-दिन तगड़े हो रहे हैं। आपसे कुछ नाराज मालूम होते हैं - मौलाना को आप एक अदद खालिस अमरीकी तस्बीह और मिस्टर सहरवर्दी को एक अदद खालिस अमरीकी कैमरा रवाना कर दें। उनकी नाराजगी दूर हो जाएगी।
हीरा मंडी की तवाइफें शोरिश कश्मीरी के जरिए से मुजरा अर्ज करती हैं।
आपका ताबेफरमान
सआदत हसन मंटो
1954
31, लक्ष्मी मैन्शंज, हॉल रोड लाहौर।