साथी / पद्मजा शर्मा
रेवतीरमण को जानवरों से बहुत लगाव था। गाँव में रहते थे। घर में गाय, भैंस, बकरी, ऊँट सब पाल रखे थे। उनका ध्यान अपनी औलाद की तरह रखते थे। उनकी देखभाल में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ते थे। नौकर-चाकर सब थे पर जानवरों के चारे पानी की व्यवस्था खुद करते थे। कहते थे-'बेजुबानों की सेवा पुण्य का काम है।'
उन्होंने पिछले दो साल से एक कुत्ता भी पाल रखा था। नाम रखा 'साथी' । साथी उनके साथ ही लगा रहता था। वे जहाँ तक पैदल जाते वहाँ तक साथी उनके साथ जाता। हाँ, कहीं बाहर गाँव जाते तो उन्हें गाड़ी-मोटर में बैठाकर लौट आता था। वे आते सहलाते, दुलराते। उससे ढेर सारी बातें करते तब जाकर उसे चैन पड़ता। उनके खाने के बाद खाता था। सोने के बाद घर के बाहर पहरा देता था। उनकी आवाज पर कहीं से भी दौड़ा चला आता था।
रेवतीरमण बीमार पड़ गए. चिकित्सकों ने बताया कैंसर है। अंतिम स्टेज पर। बचने का कोई उपाय नहीं है। मृत्यु साक्षात् सामने खड़ी थी। रेवतीरमण ने खाट पकड़ ली। तकरीबन महीने भर तक अस्पताल से घर, घर से अस्पताल के चक्कर लगते रहे। जाने कैसी-कैसी थैरेपी चलती रहीं। हर पल मृत्यु और करीब आ रही थी। घर के खिड़की-दरवाजे तक मौत की आहट सुन रहे थे। हवाएँ भी उनके पास से गुजरतीं तो डरते-डरते। इस दौरान साथी रेवतीरमण के साथ साए की तरह रहा। उन्हें गाँव के बस स्टैंड तक छोड़ कर आता। आते तब लेकर आता। उनकी खाट का पाया नहीं छोड़ता। जाने कैसे उसे भनक लग जाती कि वे शहर जाने वाले हैं कि शहर से आने वाले हैं और यह तो बड़े आश्चर्य की बात थी कि उसे यह भी पता था कि वे बीमार हैं। क्योंकि जब से रेवतीरमण की बीमारी का पता चला तब से उसने खाना एक समय लेना शुरू कर दिया। वह भी बेमन से। जैसे-जैसे रेवतीरमण का खाना कम हुआ वैसे-वैसे साथी का भी कम हेाता चला गया। लाख कोशिश करने पर भी वह ढंग से खाना नहीं खाता था। उन दिनों उसकी आँखों की उदासी मारक थी और रेवतीरमण कभी-कभी उसे जिन आँखों से देखते थे, उसे देखकर तो किसी जड़ की आँखों में भी आँसू आ जाएँ।
एक दिन रेवतीरमण चल बसे। लोगों के साथ साथी भी श्मशान तक गया। दूर बैठकर सारा क्रिया कर्म देखता रहा। देखने वाले कहते हैं उसकी आँखों में आँसू थे। सब लौटे पर वह नहीं। साथी ने अब घर आना, खाना, भौंकना कम कर दिया। हाँ, रातों में रोता ज़रूर था। ऐसे रोता कि गाँव वालों के कलेजे हिल जाते। दिन धीरे-धीरे बीत रहे थे। घर वाले खा-पी, हँस-बोल रहे थे। जाने वाले के साथ कहाँ जाया जाता है। यही बात परिचित, मित्र, रिश्तेदार सब समझाते रहते थे। बात सच भी थी। जाने वाले के साथ कोई नहीं जाता। लेकिन रेवतीरमण की मृत्यु के बारहवें दिन साँझ ढले साथी मृत पाया गया। वह जाने वाले के साथ चला गया था।