साथ चलते हुए / अध्याय 7 / जयश्री रॉय
पिकनिक के दिन कौशल की आँखों के गहरे मौन ने उससे कुछ कहा था - शब्दों से परे होकर, बिल्कुल चुपचाप, मगर स्पष्ट... उसने उन्हें सुना नहीं, अनुभव किया था, अपने पूरे वजूद से। घर लौटकर उस रात के मौन में भी वही शब्द पारदर्शी तितली की तरह उसके आसपास उड़ते रहे थे। वह अपने सामने किताब खोले खिड़की पर झरते हुए चाँद को अनमन तकती रही थी।
जंगल के घने पर्दे के पीछे से निकलकर अब चाँदनी फैल रही थी - रहस्य की सफेद नदी बनकर - अपने में सब कुछ डुबोती हुई, समोती हुई। पलकों पर नींद भी थी और सपने भी, मगर न जाने कितनी रात तक वह अपने सामने पसरी तिलस्म की उस गहरी नीली दुनिया को तकती बैठी रह गई थी।
रात की नसों में सिमटा सन्नाटा धीरे-धीरे हवा में टपक रहा था - एक निःशब्द जादू की तरह... चारों तरफ उसी का असर था - जुगनू की तरह जल-जलकर बुझते हुए। वह बॉल्कनी में निकल आई थी। रात की चुप्पी को अपनी तेज आवाज से कुतरते हुए सैकड़ों झींगुरों का शोर और आसमान पर धुंध की तरह छाई हुई चाँदनी - सब कुछ एक आदिम रहस्य में डूबा हुआ। रात के उस पहर नींद और स्वप्न के रेशमी लिहाफ में पूरी दुनिया लिपटी हुई पड़ी थी...
वह सीढ़ियाँ उतरकर नीचे आ गई थी। जैसे कोई निशि उसे अरण्य की निविड़ दुनिया से हाथ हिलाकर बुला रही हो। वह चाहती तो भी रुक नहीं पाती। उस रात वह ओस और चाँदनी में भीगती न जाने कहाँ-कहाँ गई रात तक भटकती रही थी। उसे प्रतीत हो रहा था, ये समय उसकी हथेली पर अनायास उतरकर ठहर गया है - अपने काल की अद्भुत गंध और स्वाद के साथ - जीवित और स्पंदित - तारीखों की लंबी फेहरिस्त और हादसों के दर्ज ब्योरों के साथ। वर्तमान में होकर वह जैसे अतीत में जी रही थी, देहातीत होकर, किसी रूह की तरह...
उसकी नासापुटों में बहुत पहले बीत गए समय की बासी, बोसीदा गंध भरी थी, किसी मंदिर के गर्भ-गृह में घुमड़ते हुए सुगंधित धुएँ की तरह... सभ्यता की चकाचौंध से दूर अरण्य के इस प्राचीन धरती पर उस रात वह रहस्य और रोमांच की एक अद्भुत अनुभूति में सराबोर हो गई थी। यह शायद उस रात का जादू और किन्हीं उदास आँखों की भीरु चावनी का हैंगओवर था जो उसे भटका रहा था। अतीत और वर्तमान किसी अलस नदी की तरह समानांतर में बहती रही थी उसके भीतर बहुत धीरे-धीरे...
उस रात न जाने क्यों उसे रह-रहकर रुक्की माझी की कहानी याद आती रही थी। पुनिया ने ही कभी सुनाई थी। इसी जंगल की निविड़ दुनिया मे उसका प्यार पनपा और एक दिन फना हो गया था। एक आदिवासी लड़की होकर उसे एक अंग्रेज से प्यार हो गया था।
वह अंग्रेज यहाँ के आदिवासियों पर कोई डाक्युमेंटरी फिल्म बना रहा था। फिल्म बनाने के दौरान दोनों में संबंध बढ़ा और अंत में प्यार हो गया।
इस कहानी का हश्र वही हुआ जो होना था - एक दिन वह अंग्रेज अपनी फिल्म पूरी करके रुक्की से जल्दी लौट आने का वादा करके अपने देश लौट गया। बाद में अपने समाज की बहुत प्रताड़ना सहनी पड़ी थी उसे। आखिर एक दिन उसने महुआ के पेड़ से लटककर अपनी जान दे दी थी। उस समय उसे नौ महीने का गर्भ था।
लोग कहते हैं, आज भी महुआ के मौसम में जब जंगल की हवा महुआ की तीखी, तुर्श गंध से बोझिल हो जाती है और आसमान में पूनम का चाँद एकदम गोल होकर उठता है, लोगों को रुक्की की आत्मा दिखती है - हाईवे के बीचोबीच खड़ी रहती है, हर गाड़ी को रुकने के लिए इशारे करते हुए। न जाने इसकी वजह से कितने वाहनों के साथ अब तक दुर्घटना घट चुकी थी। प्रेम होता ही है ऐसा, एक हाथ से जीवन देता है तो हिंसक होने पर दूसरे हाथ से जीवन लेता भी है।
न जाने उस रात उसे क्यों ऐसा ख्याल आया था कि रुक्की का चेहरा उसने भी कहीं देखा है, कहाँ, सोच नहीं पाई थी। जब महुआ की मादक गंध से हवा बोझिल हो उठती है और सुडौल चाँद बीच आकाश में जगमगाता है, उसकी शिराओं में कुछ सर्द-सा दौड़ता रहता है, वह चाहकर भी स्वयं को सँभाल नहीं पाती, अन्यमनस्क-सी हो जाती है। इस अद्भुत-सी अनुभूति ने उसे कई बार दिनों तक परेशान कर रखा था।
इस घटना के दूसरे दिन ही उसे तेज बुखार आ गया था। वह दिनों तक बिस्तर पर पड़ी रह गई थी। बुखार में अपने बिस्तर में पड़े रहने के दौरान उसे अजीब-से सपने आते थे। अस्पष्ट और आपस में गडमड... चाँदनी के कोहरे में डूबा एक रक्तशून्य चेहरा और दो पारे-सी थरथराती उदास आँखें... कोई बार-बार उसका नाम लेकर बुलाता रहता। वह नींद में बेचैन करवटें बदलती या कभी चौंककर उठ बैठती। ऐसे में उसका पूरा शरीर पसीने में डूबा हुआ होता था।
उसकी बीमारी की वजह से इसके बाद प्रायः रोज ही कौशल उसके पास बँगले में आने लगा था। एक शिला कहीं से पिघल रही थी धीरे-धीरे - शायद दोनों के ही अलक्ष्य। कौशल ने ही बाद में बताया था, उसके पिता का बहुत बड़ा एस्टेट है यहाँ। पहले वह कोलकाता के किसी नामी अखबार के लिए काम करता था। डिवोर्स के बाद वह यहाँ कई साल हुए वापस चला आया था। उसकी पत्नी का नाम नयन था और वह वहाँ के किसी बहुत बड़े राजनीतिज्ञ की इकलौती बेटी थी।