सादगी-तंत्र / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
चोरी करने की कला नहीं आती। डाके डालने का कलेजा ही नहीं। ऐसी विकट स्थिति में क्या किया जाए? समय बहुत बचता है, इसका दुरुपयोग कैसे हो? अचानक श्री लम्बोदर जी को इलहाम हुआ-क्यों न सादा जीवन व्यतीत किया जाए। मैंने इस परियोजना का समर्थन किया, तो उन्होंने नयन बन्द किए, हारे हुए नेता कि तरह एक हाथ माथे पर पहुँचाया तथा चिन्ता-पोखर में डुबकियाँ लगाने लगे। थोड़ी देर बाद उनकी मूर्खता का तीसरा नेत्र खुल गया। वे भरे गले से बोले-"अब मैं सादा जीवन व्यतीत करूँगा"-जैसे वे किसी मातमपुर्सी में शरीक हो गए हों-"सादगी की ओट में सारा पागलपन छुप जाएगा।"
लम्बोदर जी की यह बात बिलकुल सही थी। घसियारा यदि घास खोदना छोड़ दे, तो उसे शिक्षा मंत्री बना देना चाहिए। इसी में देश का कल्याण है। यदि कोई अपनी जहालत से शिक्षा-शास्त्री बन जाए, तो उससे घास ज़रूर खुदवाना चाहिए। यही सादगी का तकाजा है। कुछ लोग लहसुन-प्याज नहीं खाते, शराब को तो छूते ही नहीं; लेकिन पराया धन इस सादगी पसंदों के कर स्पर्श से पवित्र होकर इनकी जेब की शोभा बढ़ाने लगता है। द्रोणाचार्य ने एकलव्य पर अँगूठा ही कटवाया था, आज का द्रोणाचार्य शिष्य की जेब काटकर ही सब्र कर लेता है। यही सादगी का तकाज़ा है।
मक्खनलाल का जीवन लम्बोदर जी को अनुकरणीय लगा। वे एक घण्टे तक जमकर जान हथेली पर रखकर भयंकर रूप से पूजा करते हैं। इसके बाद दफ़्तर में जाकर जी-भर कर हरामखोरी करते हैं। उनकी सादगी बड़ी ही अहिंसक है। मैं उनकी चपेट में आने से बाल-बाल बचा हूँ। जैसे ही साहब शाम को दफ़्तर से बाहर निकलते हैं, वैसे ही मक्खनलाल जी साहब के चरणों में अपनी चुंगी के बैरियर-सा सिर झुकाकर धराशायी हो जाते हैं। इस शाकाहारी योग-साधना का परोक्ष रूप से साहब पर भी असर पड़ता है। लम्बोदर जी इन्हें अपना आदर्श मानते हैं।
यदि सादगी आस्तिकता से जुड़ जाए, तब तो पौ बारह समझिए। गत वर्ष लम्बोदर जी पर शनि की वक्र दृष्टि रही। ज्योतिषी ने बताया-"काले घोड़े की नाल पर छल्ला पहनने से कष्ट दूर हो जाएँगे।" अतः लम्बोदर जी कई दिनों तक इक्के वालों से मुलाकात करते रहे। इक्केवान ने पूछ ही डाला-" क्यों भाई, आपका घोड़ा कब खो गया था? पुलिस में रिपोर्ट लिखवाई है या नहीं? इक्का आप ही हाँकते थे क्या? घोड़ा दुबला था या तगड़ा? लम्बोदर जी खिसक लिये। इनकी सादगी को बरकरार रखने के लिए एक काले गधे को पकड़कर नाल लगवाई गई। फिर उस नाल को उखाड़कर उससे छल्ला बनाकर इन्हें पहना दिया गया। तब से लम्बोदर जी गधे की तरह आचरण करने लगे हैं। इनके हाव-भाव में गर्दभ-वृत्ति शामिल हो गई है। घर वाले और पड़ोसी इस परिवर्तन पर आश्चर्यजनक रूप से प्रसन्न हैं। इनकी हँसी में गधे के रेंकने का मिश्रण हो गया है। साथ ही इन पर उदासी छाने लगी है। इस उदासी का कारण तांत्रिक धूर्त्तानन्द ने गधे की नाल का छल्ला बताया। उदासी दूर करने का एकमात्र उपाय है तांत्रिक अनुष्ठान-उल्लू का पंजाब धारण करके पूजा करना। युद्ध स्तर पर उल्लू के पंजे की तलाश की गई! 'उड्डीश तंत्र' का अध्ययन किया गया। उल्लू की खोज में परेशान लम्बोदर जी कभी-कभी उल्लू की बोली बोलने लगते, कभी उल्लू की तरह आँखें नचाने लगते। इसका प्रभाव पड़ोसियों पर पड़ने लगा है।
इनकी इकलौती पत्नी श्रीमती 'चेंपें-चेंपें' रात-दिन चिन्ता में घुलने लगी है। लम्बोदर जी हैं कि पलंग पर उकड़ू बैठकर उल्लू की बोली बोला करते हैं। पत्नी ने द्वार पर फटा जूता टांग दिया है, तो लम्बोदर जी ने कॉनिश पर कौवे के पंख सजा रखे हैं। उल्लू का पंजा न जाने कहा से मिल गया है। उसे गले में बाँधकर लम्बोदर जी कुछ निश्चिन्त होने का प्रयास कर रहे हैं; लेकिन मन फिर भी अशान्त रहता है। काम में मन नहीं लगता। घर उजड़ने के आसार नज़र आने लगे हैं। इतने पर भी लम्बोदर जी हर समय प्रमोशन की सोचने लगे हैं।
संस्कृत पाठशाला के आचार्य गणपति से एक दिन भेंट होने पर लम्बोदर जी ने अपना सारा दुखड़ा कह सुनाया। यंत्र-तंत्र के दूषित प्रभाव का भी उल्लेख किया। आचार्य जी बोले-"आप, मौनी बाबा के (डकैती के एक अपराध में इन्हें पुलिस खोज रही है) मंदिर में जाकर एक टाँग पर खड़े रहकर रोज़ पूजा करें। छह महीने में ही आपको सिद्धि मिल जाएगी।"
बार-बार पराजित जुआरी की तरह पस्त होने पर भी वे तैयार हो गए। एक टाँग पर खड़े होकर रोज़ जाप करने लगे। अतः ऑफ़िस पहुँचने में देर होने लगी। साहब और अधिक घुड़कियाँ देने की प्रवृत्ति का सहारा लेने लगे। छह महीने बीतने पर लम्बोदर जी का प्रमोशन न होकर डिमोशन हो गया। एक टाँग पर खड़े होकर पूजा करने के जंजाल के कारण समय पर दफ़्तर नहीं पहुँचे थे। अधिकारी ने गुप्त रिपोर्ट में लम्बोदर जी की अकर्मण्यता का उल्लेख कर दिया था। साथ ही सरकारी फ़ाइलों में उल्लू तथा गधे के चित्र बनाने का भी आरोप था। सुना है किसी ज्योतिषी ने इस बार उनका बृहस्पति नीच का बताया है। इससे बचने के लिए पीली वस्तुओं का दान करने की सोच रहे हैं। देखते हैं इनकी सादगी और क्या-क्या गुल खिलाएगी? दान करना इनके लिए कष्टकर सुझाव है। ये प्राण देना ज़्यादा देहतर समझेंगे। अब तक लेते ही रहे हैं, देने की याचना कैसे सहन करेंगे?
मुख्यालय को लिखी चिट्ठियों की छानबीन हो रही है, जिनको बिना पढ़े फ़ाइल कर दिया गया था, उनसे कुछ और रहस्य प्रकट हो रहे हैं। लम्बोदर जी पत्र के बीच में कुछ पंक्तियाँ टंकित कर देते थे जैसे-"हम सब चोर हैं, लंका में सब बावन गज के, अजगर करे ना चाकरी।" इन अंशों से पत्रों की आत्मा ही बदल जाती थी। हारकर यही कहना पड़ता है-"इस सादगी पर कौन न मर जाए ए ख़ुदा!"