साधना / राजेन्द्र वर्मा
Gadya Kosh से
"मां, भिक्षामि देहि!" , गेरुये वस्त्रों से सजे दाढ़ी-मूँछों में एक प्रौढ़ व्यक्ति ने अपना चिमटा बजाया।
स्त्री ने साधु को पहचान लिया, पर प्रत्यक्षतः उसने नहीं पहचानने का उपक्रम किया। पति की तपस्या में वह बाधा नहीं बनना चाहती थी। शान्त भाव से उसने भिक्षा दी। अपनी तथाकथित साधना की सफलता पर पति आत्ममुग्ध था, 'उसने माया पर विजय पा ली है! ...अब उसे इस संसार से क्या लेना?'
पति मठ की ओर बढ़ रहा था, जहाँ उसे आज अन्तिम दीक्षा लेनी थी और पत्नी घर में आँगन की ओर, जहाँ बीमार सास के कराहने की आवाज़ तेज़ हो उठी थी।