साधना : अबाना से गीता तक.. / जयप्रकाश चौकसे

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साधना : अबाना से गीता तक..


बहत्तर वर्षीय साधना जो संगीतमय छठे दशक और रोचक सातवें दशक में शिखरसितारा थीं, उम्र के इस पड़ाव पर भी अमीर और ताकतवर लोगों से अपने जमीनी हक के लिए एकल-युद्ध कर रही हैं।

अपने अधिकारों के लिए लड़ने का जज्बा उनका पैदाइशी जज्बा है। जीवन के हर मोड़ पर उन्हें लड़ना पड़ा। साधना शिवदसानी का परिवार कराची से मुंबई, देश के विभाजन के समय आया। अनेक विस्थापितों की तरह उन्होंने भी नया मकाम बनाया। परिवार की लाडली की अभिानय में रुचि देखकर उसे कभी रोका नहीं गया। सन् 1958 में भारत की पहली सिंधी भाषा में बनी फिल्म ‘अबाना’ में वह नायिका बनीं।

परंतु, इसके पूर्व उन्होंने राज कपूर की ‘श्री 420’ के एक नृत्य गीत दृश्य में ग्रुप डांसर की तरह काम किया था। गीत था ‘शाम गई रात आई के बलम आजा..’ उस समय राज कपूर ने सोचा भी नहीं होगा कि पच्चीस रुपये रोज की दिहाड़ी पर काम करने वाली साधना कुछ वर्षो बाद ‘दुल्हा दुल्हन’ में उनकी नायिका बनेंगी। इसी तरह राज कपूर के सहायक शिमला में जन्मे आर.के. नैयर ने भी शायद ही कल्पना किया होगा कि उनका भाग्य साधना शिवदसानी के साथ ताउम्र बंधा रहेगा। शशिधर मुखर्जी ने आर. के. नैयर को अपने बेटे जॉय मुखर्जी और साधना के साथ ‘लव इन शिमला’ की योजना बताई। परंतु, उन्हें साधना के चौड़े माथे से शिकायत थी और आर. के. नैयर ने हॉलीवुड की आड्रे हैपवर्न की तरह साधना के चौड़े माथे को बालों से ढ़का और यह ‘साधना कट’ हेयर स्टाइल पूरे देश में युवा लड़कियों के बीच एक फैशन बन गया। फिल्म को भारी सफलता मिली और 1960 में इसके प्रदर्शन के बाद थोड़े ही समय में साधना उन्नीस फिल्मों की नायिका बनी जिनमें से ग्यारह फिल्में सुपर हिट रहीं। उनकी ‘मेरे महबूब’ ने सफलता के झंडे गाड़ दिए। साधना ने देवआनंद के साथ ‘हम दोनों’ और ‘असली-नकली’ में अभिनय किया। बिमल रॉय ने साधना के साथ ‘परख’ बनाई। ‘वह कौन थी’ की सफलता से साधना, सायरा बानो और आशा पारेख को पीछे छोड़कर शिखरसितारा बनीं। साधना पहली नायिका थीं जिसने रामानंद सागर से ‘आरजू’ के लिए पांच लाख का मेहनताना लिया, जो उस दौर में नायकों को भी नहीं मिलता था। सन् 1966 में आर. के. नैयर और साधना का विवाह हुआ। इसी वर्ष दिलीप कुमार और सायरा बानो का भी विवाह हुआ। स्टारडम के शिखर पर खड़ी साधना को दुर्भाग्यवश थायरॉइड नामक बीमारी हुई और उन्हें अनेक भव्य फिल्में अस्वीकृत करनी पड़ीं। आज यह बीमारी आसानी से ठीक हो जाती है। परंतु, उन दिनों इसे लाइलाज-सा समझ जाता था।

स्वस्थ होने के बाद साधना ने ‘एक फूल दो माली’ सफल फिल्म दी तथा उनके पति ने उनके साथ ‘इंतकाम’ और ‘गीता मेरा नाम’ बनाई। दोनों ही फिल्में सफल रहीं। ‘गीता मेरा नाम’ में सुनील दत्त ने खलनायक की भूमिका की। याद रहे है कि ‘रेशमा और शेरा’ की असफलता के बाद कुछ वर्षो तक सुनील दत्त के पास काम नहीं था और ‘गीता’ से ही उनकी वापसी हुई। इसी तरह करण जाैहर के पिता को साधना ही अपने सचिव के रूप में लाई थीं।

आर. के. नैयर और साधना ने संजीव कुमार सारिका और शत्रुघ्न सिन्हा के साथ सफल फिल्म ‘कत्ल’ का निर्माण किया, जिसकी कहानी मेरी लिखी हुई थी। बाद में शेखर सुमन अभिनीत ‘पति परमेश्वर’ को सेंसर ने रोक दिया। राज कपूर दादा फाल्के पुरस्कार लेने दिल्ली जा रहे थे जहां उन्होंने साधना और नैयर की सिफारिश की और फिल्म प्रदर्शित हुई।

साधना ताउम्र एक साहसी महिला रहीं। सौंदर्य और साहस का संजोग उन्हें विशेष बनाता है।

सौंदर्य और साहस के संयोग से बनी सितारा अभिनेत्री साधना को उम्र के हर मकाम पर मुश्किलों से दो-चार होना पड़ा। कराची से मुंबई तक के सफर में उनके हर कदम पर मुसीबतें थीं। उम्र के आखिरी दौर में भी वे एक लड़ाई लड़ रही हैं।