सान्निध्य, लंदन के अप्रतिम दस सोपान / स्मृति शुक्ला
भारत की संस्कृति में साहित्य, कला और संगीत को अत्यंत महत्त्व दिया गया है। संस्कृत के महान कवि भर्तृहरि ने 'नीतिशतक' के एक श्लोक में कहा है कि-"साहित्यसंगीतकला विहीनः साक्षात्पशु पुच्छ विशाण हीनः" हमारे देश में साहित्य, संगीत और सभी कलाओं को इसलिये आवश्यक माना गया है क्योंकि ये कलाएँ ही मनुष्य को सच्चे अर्थों में मनुष्य बनाती हैं। संगीत की लयात्मकता और साहित्य की भावमयता और सभी कलाओं की कलात्मकता और रागात्मकता मनुष्य को संवेदनशील और भावप्रवण बनाती है। आज भारत के अनेक साहित्यकार, कलाविद्, चित्रकार, संगीतकार, वैज्ञानिक, अभियंता, अर्थशास्त्री और समाजशास्त्री भले ही विदेशों में बसें हों लेकिन अपने देश की सभ्यता और संस्कृति से उन्हें असीम लगाव है। वर्षों तक विदेशी भूमि में रहने के बाद भी वे अपनी मातृभूमि और भारत देश को एक पल के लिये भी विस्मृत नहीं कर पाये हैं। विदेशों में बसे हुए प्रवासी साहित्यकारों की एक लम्बी फेहरिस्त है, जिन्होंने अपनी लेखनी से हिन्दी की विविध विधाओं में सार्थक सर्जन करके हिन्दी साहित्य को नये आयामों से परिचित कराया और समृद्ध किया है।
ऐसे ही एक साहित्यकार, फ़िल्म इतिहासकार, वृत्तचित्र निर्माता, पटकथा लेखक श्री ललित मोहन जोशी हैं, जो बी.बी.सी. लंदन की हिन्दी सेवा में चयनित होने के उपरांत 1982 में भारत से लंदन चले गये। लंदन में काम करते हुए उन्होने अपनी असाधारण प्रतिभा, मेधा, परिश्रम और कार्य के प्रति एकनिष्ठ समर्पण के कारण अपनी विशिष्ट पहचान बनाई। लंदन में रहते हुए उन्होने यह बड़ी शिद्दत से महसूस किया कि ब्रिटेन में भारतीय सिनेमा को केवल बालीवुड अर्थात् मनोरंजक फ़िल्मों के रूप में ही जाना जाता है। भारतीय सिनेमा के गंभीर, सोद्देश्य, कलात्मक मूल्यपरक तथा सामाजिक सरोकारों से अनुस्यूत रूप को पहचान दिलाने के लिये ललित मोहन जोशी ने साउथ एएशियन सिनेमा फाउंडेशन ¼SACF½ की स्थापना की। ललित मोहन जोशी, वरिष्ठ फ़िल्म समीक्षक, कवि और साहित्यकार भी हैं। ब्रितानी सिनेमा के दर्शको को भारतीय सिनेमा के बौद्धिक, सामाजिक और कलात्मक पक्ष से परिचित कराने वाले ललित मोहन जोशी एक विशिष्ट व्यक्तित्व हैं। उनकी तीन फ़िल्में 'बीआन्ड द पार्टीशन' (2006) , निरंजन पाल-ए फारगाटन लीजेंड (2011) और 'ईस्ट मीट्स वेस्ट' (2015) उनके जीवन की असाधारण उपलब्धियाँ हैं। साउथ एशियन सिनेमा पर उनकी कई समीक्षात्मक पुस्तकें भी प्रकाशित हुई हैं। सिने जगत की महान हस्तियों ने SACF के कार्यक्रमों में शिरकत की है। श्याम बेनेगल, चन्द्रप्रकाश द्विवेदी, गुलजार, गौतम सचदेव, एम.एस.सत्थू, विभा रानी और हिमानी जोशी जैसे कलाकारों को SACF द्वारा सम्मानित भी किया जा चुका। SACF के बाद ललित मोहन जोशी, कुसुम पंत जोशी और गौतम सचदेव ने मिलकर 2003 में 'सान्निध्य' नाम से एक संस्था गठित की जो साहित्य संगीत और कला को समर्पित थी। जैसा कि संस्था को नाम से ध्वनित है कि-" सभी एक साथ जुड़े, निकट रहें, परस्पर सदाशयता और मैत्री भाव से जुड़े'इस भाव को लेकर चलने वाले गौतम सचदेव, ललितमोहन जोशी और संस्था के अन्य सदस्यों ने देश काल की सीमाओं को लाँघकर कलाओं, साहित्य और संगीत से जुड़े लोगों को अत्यंत आत्मीयता और स्नेह से एक साथ लाने का प्रयास' सान्निध्य'के माध्यम से किया।' सान्निध्य' संस्था का उद्देश विचारों और संस्कृतियों को समेकित करना, उन्हें जोड़ना और उन कृत्रिम सरहदों को तोड़ना है जो आपस में दूरियाँ पैदा करती हैं।
सान्निध्य द्वारा मासिक गोष्ठियो का आयोजन किया जाता है जिसमें भारत और ब्रिटेन सहित अनेक देशो के साहित्य-संस्कृति और कला में रूचि रखने वाले अनेक पत्रकार, कलाकार और साहित्यकार सम्मिलित होते हैं।
सानिध्य संस्था के अध्यक्ष शिवकांत जी और ललित मोहन जोशी तथा कुसुम पंत जोशी ने वैश्विक महामारी कोविड के संकट में अपने देश भारत को पूरी शिद्दत से याद किया। इसी दौरान उन्होंने सान्निध्य का रुख भारत की ओर किया। ललित मोहन जोशी ने अपने अभिन्न मित्र 'लमही' पत्रिका के यशस्वी संपादक श्री विजयराय जी से मशविरा कर भारतीय साहित्यकारों, पत्रकारों, रंगकर्मियों पर 'सान्निध्य लंदन' के आयोजनों को केन्द्रित कर दिया। इस भारतीय शृंखला का पहला कार्यक्रम 5 जुलाई 2020 को जूम के आभासी माध्यम के पटल पर प्रारंभ हुआ इसमें भारत और ब्रिटेन सहित अनेक देशो के साहित्यकार जुड़े। यह आयोजन हिन्दी के प्रख्यात साहित्यकार लमही पत्रिका के यशस्वी संपादक विजय राय जी पर केन्द्रित था इस कार्यक्रम की अध्यक्षता हिन्दी की प्रसिद्ध कथाकार ममता कालिया ने की। प्रथम कार्यक्रम में विजय राय ने समकालीन हिन्दी कहानियों के मौजूदा कथा परिदृश्य पर गंभीर चर्चा की। विजय राय 'लमही' के तीन कथा विशेषाकों का संपादन हमारा कथासमय: एक, हमारा कथा समय: दो और हमारा कथा समय: तीन के रूप में सफलतापूर्वक कर चुके हैं। लमही के संपादक के रूप यह उनका ऐतिहासिक दस्तावेजी कार्य है जो सातवे दशक से आज तक के लगभग सभी महत्त्वपूर्ण कथाकारों के निष्पक्ष मूल्यांकन का प्रयास है। अध्यक्षीय उद्बोधन में ममता कालिया ने विजय राय के संपादक व्यक्तित्व का मूल्यांकन करते हुए उन्हें किसी भी तरह की साहित्यिक गुटबंदी से दूर निष्पक्ष और डेमोक्रेटिक संपादक निरुपित किया।
सान्निध्य संवाद-दो (13 जुलाई 2020) प्रसिद्ध कथाकार ममता कालिया जी पर केन्द्रित था। इस सत्र की अध्यक्षता हिन्दी के प्रसिद्ध कवि और आलोचक प्रो. जितेन्द्र श्रीवास्तव ने की। इस संवाद के प्रारंभ मेें बी.बी.सी. के पूर्व अध्यक्ष श्री कैलाश बुधवार को भावभीनी श्रद्धांजलि दी गई। सान्निध्य के अध्यक्ष और बी.बी.सी. के पूर्व संपादक श्री शिवकांत शर्मा ने कहा कि श्री कैलाश बुधवार के निधन से रेडियो पत्रकारिता के स्वर्णिम युग का अवसान हो गया है।
ममता कालिया से अत्यंत आत्मीयता पूर्ण संवाद स्थापित करते हुए ललित मोहन जोशी ने अपनी भारत यात्रा और भोपाल में आयोजित 'विश्वरग' कार्यक्रम में उनसे हुई आत्मीय मुलाकात का ज़िक्र किया। ललितमोहन जोशी इस संवाद में ममता कालिया को स्मृतियों के माध्यम से उनके बचपन में ले गये। ममता जी ने अपने बचपन और अपने साहित्यकार पिता को स्मृत करते हुए अपने हृदय में साहित्यिक संस्कारों के स्फुरण और अंकुरण का ज़िक्र किया। उन्होंने शब्दों और भाषा के अनुशासन की बात की, स्त्री विमर्श के संदर्भ में उन्होंने महादेवी वर्मा के 'श्रृंखला की कड़ियाँ' में संकलित निबंधों को याद किया और साहित्य के सामाजिक संदर्भों पर बात की। अपनी पहली कविता 'प्रयोगवादी प्रियतम' का ज़िक्र किया जो कि जागरण के रविवारीय पृष्ठ पर प्रकाशित हुई थी। ललितमोहन जोशी जितने अच्छे सिने इतिहासकार, पत्रकार, रंगकर्मी, समालोचक और साहित्यकार हैं उतने ही अच्छे साक्षात्कारकर्ता भी हैं। उन्होंने ममता कालिया और रवीन्द्र कालिया की प्रथम मुलाकात और विवाह तक के प्रसंग इस प्रकार सहजता से पूछ लिये जैसे कि बहती हुई नदी में कोई दीपदान करे और नदी अपने प्रवाह के साथ उस दिये और उस आलोक को अपने प्रवाह में ले चले। अंत में ममता कालिया ने रवीन्द्र कालिया पर लिखी प्रकाशाधीन पुस्तक 'रविकथा' कुछ अंशों का पाठ किया। अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में जितेन्द्र श्रीवास्तव ने ममता कालिया जी के कथा-साहित्य का विशद् विवेचन करते हुए कहा कि ममता जी की कहानियों में पारिवारिक मूल्य केन्द्रीय तत्व की तरह आये हैं, लेकिन पारिवारिक मूल्यों में लोकतांत्रिक मूल्यों की निरंतरता भी दिखाई देती है।
सान्निध्य संवाद-तीन (दिनांक 26 जुलाई 2020) प्रख्यात कथाकार प्रज्ञा पांडेय पर केन्द्रित था इस आयोजन की अध्यक्षता प्रसिद्ध कथाकार, आलोचक, संपादक, ग़ज़ल गुरु और गीतकार पंकज सुबीर ने की। ललित मोहन जोशी ने प्रज्ञा पांडेय से उनके बचपन, उनके लेखन की शुरुवात, 'निकट' पत्रिका के स्त्री कन्द्रित विशेषांक के संपादन के सम्बंध में प्रश्न किये और प्रज्ञा पांडेय का रचनात्मक व्यक्तित्व श्रोताओं के सामने मुखर होने लगा। प्रज्ञा पांडेय ने ललित मोहन जोशी के आग्रह पर अपनी कविता 'अकेली' और कहानी ऑफ व्हाइट' के अंशों का पाठ किया। पंकज सुबीर ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में प्रज्ञा पांडेय के रचनाकार व्यक्तित्व को समग्रता में अभिव्यक्त किया।
सान्निध्य संवाद चार (16 अगस्त 2020) हिन्दी के ख्यात वरिष्ठ कवि नरेश सक्सेना पर केन्द्रित था। शिवकांत जी ने प्रारंभ में नरेश मेहता और अध्यक्षता कर रहे पंकज चतुर्वेदी का परिचय दिया। सान्निध्य संवाद का यह कार्यक्रम साहित्य और संगीत का संगम था। ललितमोहन जोशी ने बहुत ही अदब, एहतराम और मुहब्बत के साथ नरेश सक्सेना जी के कवि हृदय की संवेदना और उनकी कविता में निहित सामाजिक सरोकारों को श्रोताओं के सामने मूर्त कर दिया। नरेश सक्सेना पेशे से इंजीनियर हैं ईंट, पत्थर, सीमेंट भी उनकी कविताओं में फूल पत्तियों की तरह आये हैं। वे ईटों के जोड़ों के तनाव में भी उत्सव को देख सकते हैं। ललित मोहन जोशी ने अपनी वाक्पटुता से नरेश सक्सेना जी से कई कविताएँ सुनीं उनके आग्रह पर नरेश जी ने माउथ आर्गन भी बजाया। नरेश सक्सेना का संगीत प्रेम भी इस कार्यक्रम में आनंद रस की वर्षा कर रहा था। भाषा में बिम्बात्मकता और लयात्मकता की बात करते हुए नरेश सक्सेना ने शमशेर की कविता सुबह का आकाश का पाठ किया। अध्यक्षीय उद्बोधन में पंकज चतुर्वेदी ने नरेश सक्सेना की कविताओं के वैशिष्ट्य को रेखांकित करते हुए कहा कि नरेश सक्सेना ने मुक्तिबोध और हरिशंकर परसाई के सान्निध्य में रहकर कविता का संस्कार पाया है।
'सान्निध्य संवाद' का पाँचवा कार्यक्रम (16 अगस्त 2020) प्रख्यात कहानीकार शिवमूर्ति पर केन्द्रित था जिसकी अध्यक्षता प्रसिद्ध कहानीकार सूर्यबाला ने की। कार्यक्रम का आग़ाज़ सान्निध्य के अध्यक्ष शिवकांत शर्मा ने सूर्यबाला के साहित्यिक परिचय से किया। ललितमोहन जोशी ने वरिष्ठ कथाकार शिवमूर्ति जी का परिचय देते हुए कहा कि-"मानवीय संवेदना शिवमूर्ति जी के लेखन के केन्द्र में है। अधिकारों से वंचित लोग उनकी कहानियों के विषय बने हैं उनके लेखन का ग्रामीण परिवेश एक ओर उन्हें जहाँ प्रेमचंद से जोड़ता है तो दूसरी ओर उनके किरदारों की आँचलिकता और ध्वन्यात्मकता रेणु के समीप ले जाती है।" 1984 में प्रकाशित 'सिरी उपमा जोग' कहानी से शिवमूर्ति जी को विशेष पहचान मिली। ललित मोहन जोशी ने शिवमूर्ति जी के बाल-विवाह और उससे जुड़े रोचक प्रसंगों की बात छेड़ी, गाँव में शिवमूर्ति जी की शिवकुमारी जी से दोस्ती की भी चर्चा की और इन सभी प्रश्नों के उत्तर शिवमूर्ति जी ने भी बहुत बेबाकी और ईमानदारी से दिये।
शिवमूर्ति की कहानी 'तिरिया चरित्तर' पर वासु चटर्जी ने फ़िल्म बनाई। शिवमूर्ति जी ने कहा कि साहित्य में सामाजिक सरोकार अवश्य ही जुड़े होने चाहिए। सूर्यबाला जी ने कहा कि शिवमूर्ति जी के पास अनुभव, संवेदना, मार्मिकता और सशक्त भाषा है उनकी कहानियाँ पाठक को जकड़ लेती हैं।
ललितमोहन जोशी ने अपने समर्पण और असाधारण प्रतिभा और साहित्यिक प्रेम और सार्थक संवादों से इस कार्यक्रम को सफलतापूर्वक संचालित किया।
सान्निध्य संवाद छह (13 सितम्बर 2020) सिनेकार, पत्रकार और रंगकर्मी अतुल तिवारी पर केन्द्रित था जिसकी अध्यक्षता बी.बी.सी.के पूर्व रेडियो पत्रकार, वृत्त चित्रकार और गहन साहित्यिक रूचि रखने वाले डा. विजय राणा ने की। ललितमोहन जोशी ने राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के स्नातक अतुल तिवारी जी की पारिवारिक पृष्ठभूमि के साथ उनके संपूर्ण व्यक्तित्व और कृतित्व का समग्र परिचय श्रोताओं को दिया। अतुल तिवारी ने श्याम बेनेगल जैसे महान निर्देशक के धारावाहिक 'भारत एक खोज' की पटकथा लिखी उन्होंने 'संविधान' तथा 'कब तक पुकारुँ' धारावाहिकों के अतिरिक्त कई जीवनी फ़िल्में बनायी। विज्ञापन फ़िल्मों के अतिरिक्त 'थ्री इडियट्स' जैसी प्रसिद्ध फ़िल्मों में अभिनय भी किया।
सातवाँ सान्निध्य संवाद (20 सित.2020) श्री एम.एस.सत्थू पर केन्द्रित था। ललित मोहन जोशी ने कहा कि श्री एम.एस.सत्थु ने ब्रिटेन सिने प्रेमियों को हिन्दी के सार्थक सिनेमा से परिचित कराया। 'गरम हवा' एम.एस.सत्थू की प्रसिद्ध फ़िल्म है फिर चेतन आनंद ने भारत चीन युद्ध (1962) पर आधारित फ़िल्म 'हकीकत' का निर्देशन किया जिसकी शूटिंग लद्दाख में की गयी थी। ललित मोहन जोशी ने बताया कि श्री एम.एस.सत्थु एक बड़े रंगकर्मी हैं जो देश की सबसे प्रतिष्ठित नाट्य संस्था 'इप्टा' से जुड़े हुए हैं। उन्होंने विशाखदत्त के 'मुद्राराक्षस' सहित अनेक नाटकों का मंचन किया। संगीत नाटक अकादमी सहित अनेक पुरस्कार उन्हें प्राप्त हो चुके हैं।
'सान्निध्य संवाद आठ' (दिनांक 30 सित.20) हिन्दी सिनेमा को 'समांनांतर सिनेमा' से परिचित कराने वाले महान निर्देशक श्याम बेनेगल पर केन्द्रित था। श्याम बेनेगल जी ललितमोहन जोशी का आमंत्रण स्वीकार कर कार्यक्रम को गरिमा प्रदान कर रहे थे। यह कार्यक्रम भारतीय उच्चायोग, लंदन और नेहरू सेंटर के निदेशक आमिष त्रिपाठी जी के सहयोग से आयोजित किया गया था। इस कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रो.जान इंड ने की थी। जान नृतत्वशास्त्र और समाजशास्त्र के प्राध्यापक हैं और टोरेंटो यूनीवर्सिटी में भी विजिटिंग प्रोफेसर रहे हैं।
श्याम बेनेगल ने भारत में विविधताओं की बात करते हुए कहा कि कभी-कभी ये विभेद हमें तोड़ते हैं और इतिहास को भी हम संकीर्ण दृष्टि से देखने लगते हैं। पर इन सभी सामाजिक समस्याओं का तोड़ एकता ही है।
श्याम बेनेगल जी से ललित मोहन जोशी ने सिनेमा में सामाजिक सरोकारों की बात की। ललित मोहन जोशी सिने पत्रकार भी हैं और न केवल भारतीय सिनेमा की वरन विश्व सिनेमा की गहरी समझ रखते हैं। उन्होंने बताया कि श्याम बेनेगल ने हिन्दी सिनेमा के लिये स्मिता पाटिल, शबाना आजमी, ओमपुरी जैसी प्रतिभाएँ दी। गुजरात के किसानों से दो-दो रुपये की सहायता लेकर बनायी गयी 'मंथन' फ़िल्म की चर्चा भी ललित मोहन जोशी ने की और श्याम बेनेगल ने भारत में दुग्ध क्रांति के जनक कुरियन साहब को और उनके योगदान को रेखांकित किया। भारत में सार्थक सिनेमा के जनक, जनवादी फ़िल्मकार, पद्मभूषण और दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित श्याम बेनेगल का गरिमामय सान्निध्य सभी सहभागी दर्शकों को अभिभूत कर गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे जान इंड SACF और सान्निध्य लंदन (4 अक्टूबर 20) के नौवे संवाद कार्यक्रम में आमंत्रित थे, रंगमंच और कलाजगत में अप्रतिम योगदान देने वाले राज बिसारिया जो लखनऊ वि।वि। में अंग्रेज़ी के रीडर और प्राध्यापक रहे हैं। राज बिसारिया नाट्य निर्देशक, अभिनेता और नाट्य शिक्षक हैं। वे रंगमंच के लिये समर्पित व्यक्तित्व हैं उन्होंने रंगमंच का प्रशिक्षण् देने के लिये 'थियेटर आर्ट्स वर्कशॉप' की स्थापना की। इस कार्यक्रम की अध्यक्षता नाटककार, पटकथा लेखक और संचार के सबसे सशक्त माध्यम सिनेमा के साधक अतुल तिवारी ने की। ललित मोहन जोशी से बाते करते हुए राज बिसारिया ने कहा कि 1960-62 के समय में रेडियो एक शक्तिशाली माध्यम था उन दिनों रेडियो के कलाकार ही रंगमंच पर कार्य करते थे, पर रेडियो की तकनीक ऐसी थी कि मैं वहाँ काम नहीं कर पाया। मैं कृत्रिमता में विश्वास नहीं कर सकता था। मैं स्टीरियों टाइप अभिनय नहीं कर सकता था। मैं बहुत स्वभाविक तरीके से सच्चे भावों की अभिव्यक्ति करना चाहता था। दरअसल राज बिसारिया जैसे लोग रंगमंच को पूरी तरह समर्पित हैं इनकी एक-एक साँस में रंगमंच बसा हुआ है। ललित मोहन जोशी ने नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा से प्राप्त 2015 की एक वीडियो क्लिप भी दिखाई जिसमें राज बिसारिया जी जूलियस सीजर की हत्या वाले दृश्य को निर्देशन कर रहे हैं। इसे देखकर दर्शक राज बिसारिया जी की अभिनय और निर्देशन कला के कायल हुए बिना नहीं रह सकते।
अतुल तिवारी जी ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि यदि राज बिसारिया फ़िल्मों में चले जाते तो सैकड़ों प्रतिभाषाली अभिनेताओं का उदय नहीं होता।
सान्निध्य का दसवाँ कार्यक्रम (10 अक्टूबर 2020) उर्दू के कवि राजेश रेड्डी पर केन्द्रित था। इस कार्यक्रम में ललित मोहन जोशी ने आमंत्रित कवि राजेश रेड्डी जी का परिचय देकर कार्यक्रम प्रारंभ किया। ललित मोहन जोशी ने राजेश रेड्डी की कविताई उनकी सर्जन प्रक्रिया पर प्रश्न किये। राजेश रेड्डी की कई ग़जलों को जगजीत सिंह अपनी आवाज़ दे चुके हैं। उन्होंने अपनी ग़जलों के कुछ मशहूर शेरों को भी प्रस्तुत किया। 'न बोलूँ सच तो कैसा आइना मैं जो बोलूँ सच तो चकनाचूर हो जाऊँ।' राजेश रेड्डी की गज़लों में आज के हालात और सामाजिक सरोकार भी गहराई से जुड़े हैं। राजेश् रेड्डी आम जीवन की मुश्किलों अपनी ग़ज़ल में पूरी संवेदना से प्रस्तुत करते हैं। इस कार्यक्रम में उत्तरा सुकन्या जोशी ने राजेश रेड्डी की मशहूर ग़ज़ल की सुमधुर प्रस्तुति दी और सभी का मनमोह लिया।
अंत में यही कहूँगी कि सान्निध्य संवाद के इन सभी दस साक्षात्कार कार्यक्रमों में जहाँ, शिवकांत जी द्वारा अत्यंत सधी, संयत और परिष्कृत भाषा तथा प्रभावशाली वाणी में कार्यक्रम का प्रारंभ किया गया वहीं, ललित मोहन जोशी ने अत्यंत लगाव के साथ बहुत ही स्नेह पूर्ण वातावरण का सृजनकर अपनी बातचीत से साहित्य, कला और रंगमंच और सिने जगत के प्रतिष्ठित व्यक्तियों के बाह्य व्यक्तित्व और मनोजगत् के रेशे—रेशे को खोलकर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। ललित मोहन जोशी का विजय राय, ममता कालिया, श्याम बेनेगल, अतुल तिवारी, राज बिसारिया और राजेश रेड्डी जैसे हस्तियों से व्यक्तिगत रूप से परिचय भी रहा है, इसके अतिरिक्त वे प्रत्येक कार्यक्रम के पूर्व आमंत्रित व्यक्तित्व के साहित्यिक, सांस्कृतिक और कलात्मक योगदान का अत्यंत गहराई से अध्ययन भी करते हैं। उनके पास अत्यंत प्रामाणिक जानकारी होती है जिसका उपयोग वे पूरे साक्षात्कार के दौरान करते हैं। एक साक्षात्कारकर्ता के रूप में ललित मोहन जोशी आमंत्रित व्यक्तित्व के साथ जिस तरह घुलमिलकर बात करते हैं उससे व्यक्तित्व के रचनात्मक पक्ष और बाह्य व्यक्तित्व के साथ उनके रागात्मक भावों की भी अभिव्यक्ति कराने में वे सफल हो जाते हैं। निश्चित ही SACF सान्निध्य ने कोरोना जैसी वैश्विक महामारी के समय जूम के आभासी पटल के माध्यम से लंदन और भारत को जोड़ने का सफल प्रयास किया है। अनेक देशों के रचनाकार इन आयोजनों में इस तरह जुड़े कि देश और काल की सरहदें टूट गईं। इन कार्यक्रमों में साहित्य, पत्रकारिता, कला, रंगमंच और सिनेमा के क्षेत्र में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान देने वाली हस्तियों को आमंत्रित किया गया। ललित मोहन जोशी की प्रस्तुति का ढंग अत्यंत प्रभावी था। इन सभी आयोजनों में देश-विदेश के साहित्यकार और विशिष्ट व्यक्तित्व दर्शकों के रूप में जुड़े रहे। प्रत्येक कार्यक्रम के अंत में दर्शकों को भी अपने सवाल रखने का अवसर प्रदान किया गया और इस तरह सबकी भागीदारी भी सुनिश्चित हुई। निश्चय ही SACF सान्निध्य के इन आयोजनों का ऐतिहासिक महत्त्व है। मैं भी इन आयोजनों में उपस्थित रही हूँ इसलिये SACF सान्निध्य के इन आयोजनों पर लिख सकी। ललित मोहन जोशी और सान्निध्य SACF के सभी सदस्यों की सदाश्यता, परिश्रम और गहन देश प्रेम के भाव की एकान्विति से ही भारतीय साहित्यकारों, पत्रकारों और कलाकारों को अपनी बात करने के लिए एक वैश्विक मंच मिल सका।