सामाजिक सोद्देश्यता की हास्य फिल्म / जयप्रकाश चौकसे

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सामाजिक सोद्देश्यता की हास्य फिल्म

प्रकाशन तिथि : 12 जुलाई 2012

रोहित शेट्टी और अजय देवगन की 'बोल बच्चन' का कथासार यह है कि इसमें दो शादियां हिंदू-मुसलमान समुदायों के सदस्यों की हैं। इस विषय पर बनाई गई गंभीर फिल्म को आज का असहिष्णु समाज नहीं देखता और दोनों समुदायों में मौजूद हुल्लड़बाजों को विरोध का हंगामा करने का अवसर मिल जाता, परंतु रोहित शेट्टी ने इस विषय पर एक हास्य फिल्म रची है और इस कदर मसाले डाले हैं कि किसी भी समुदाय को कोई बात काबिले एतराज नहीं लगती। फिल्म में यह उभरकर आता है कि दोनों समुदायों के लोगों में कोई अंतर नहीं है, जो कि ऐसा तथ्य है जिसे हम जानकर अनदेखा करते हैं। दोनों का खून समान रूप से लाल है। चरित्र-चित्रण कुछ इस ढंग से किया गया है कि पात्र के हाव-भाव व पहनावे से आप उसका धर्म नहीं बता सकते। दरअसल हिंदुस्तानी सिनेमा के पात्र को उनके धर्म के आवरण में प्रस्तुत नहीं किया जाता। कुछ वर्ष पूर्व तक तो पात्र का सरनेम भी नहीं बताया जाता था।

फिल्म में पुरानी अनेक सफल फिल्मों के संदर्भ और संवाद हैं तथा इसे उन सफल फिल्मों की आदरांजलि की तरह रचा गया है, यहां तक कि क्लाइमैक्स में 'कर्ज' के गीत का उपयोग किया गया है। फिल्म में प्रतिपल ठहाके रचे गए हैं और ठहाकों तथा आंसुओं का कोई धर्म नहीं होता। उन्हें इसकी प्रेरणा भले ही ऋषिकेश मुखर्जी की 'गोलमाल' से मिली हो, परंतु संवाद अनेक सफल फिल्मों से लिए गए हैं। बाबू मोशाय की 'गोलमाल' में दो समुदायों वाला प्रकरण नहीं है और रोहित शेट्टी ने साहस का काम किया है। इस फिल्म के जरिए उन्होंने संकेत दिया है कि अत्यंत गंभीर समस्याओं पर चर्चा में हास्य शामिल हो तो उनका दंश निकल सकता है। रोजमर्रा के जीवन में राह चलते दो लोग टकरा जाते हैं तो विवाद होने लगता है और बात मारपीट तक पहुंच सकती है। अगर प्रकरण में हास्य शामिल हो जाए, दोनों पक्ष मुस्कराते हुए घर जा सकते हैं। मनुष्य को मिला सबसे बड़ा वरदान उसके हास्य का माद्दा ही है। गंभीरतम बात के भीतर कोई हास्य का तत्व होता है, जैसे चट्टानों की बनावट में एक सूक्ष्म-सी लकीर होती है, जिस पर छेनी-हथौड़े की हल्की-सी मार से वह टूट जाती है। संगमरमर तराशने वाले जानते हैं कि उसमें निहित विशेष जगह से उसे आसानी से तराशा जा सकता है। पहलवाननुमा शरीर पर भी किसी स्थान पर गुदगुदी करने से वह बेसाख्ता हंसने लगता है और मजबूत मांसपेशियों में लहरें चलने लगती हैं। शायद इसीलिए पहाड़ों से ही नदियां निकलती हैं। पहाड़ गंभीर हैं, नदियां उनका हास्य हैं।

हास्य के अनेक प्रकार हैं और कई बार वह फूहड़ हो जाता है। टेलीविजन पर प्रस्तुत 'कॉमेडी सर्कस' फूहड़ और अश्लील होता है। हमारे सिनेमा में भी हास्य के नाम पर अश्लीलता रहती है और दादा कोंडके की परंपरा दरअसल उनके जन्म के पहले से ग्रामीण भारत में मौजूद थी। बकौल ऋषिकेश मुखर्जी हास्य में निर्मल आनंद होता है। व्यंग्य भी हास्य को अपने में समेटे होता है। रोहित शेट्टी ने इस फिल्म में निर्मल आनंद रचा है और विगत की अनेक फिल्मों के संवाद डाले हैं, जिसके लिए उन्होंने स्थितियों को बनाया है।

मजे की बात यह है कि मीडिया ने यह देखा ही नहीं कि कथा का आधार हिंदू-मुस्लिम प्रेम विवाह है। व्यावसायिक आलोचकों को हास्य फिल्म पर ही एतराज है क्योंकि छद्म बौद्धिकता से वे ग्रसित रहते हैं। दरअसल सरकारों की तरह 'विद्वान आलोचकों' को आम आदमी के प्रसन्न हो जाने पर ही एतराज है। ये सब शक्तियां गरीब की मुस्कराहट को ही नहीं सह सकतीं। हमें मुस्कराता देख उनके माथे पर शिकन आ जाती है। देवआनंद की फिल्म में गीत था- 'अरे ओ आसमां वाले, बता इसमें बुरा क्या है। खुशी के चार झोंके गर इधर से भी गुजर जाएं।'

फिल्म के प्रारंभ में एक मुस्लिम किसी अकारण विवाद की वजह से वर्षों से बंद एक मंदिर का ताला तोड़ देता है, क्योंकि उसकी दीवार से एक बच्चा तालाब में गिरा है और उसे बचाने का इसके सिवा कोई चारा नहीं है। भीड़ के आक्रोश से बचाने के लिए उसका मित्र उसका नाम अभिषेक बच्चन बता देता है और इस झूठ की रक्षा के लिए पूरे परिवार को अनेक झूठ बोलने पड़ते हैं। नायक कहता है कि अगर वह अपना काम मेहनत व ईमानदारी से करेगा तो ईश्वर और अल्लाह उसे माफ क देंगे।

आज अगर किसी भी धार्मिक स्थान के बारे में गंभीर अंदाज में फिल्म बनाएं तो कयामत आ जाए। रोहित शेट्टी की प्रतिभा है कि उन्होंने हास्य की ऐसी लहर पैदा की है कि कोई दर्शक यह ध्यान ही नहीं देता कि मुद्दा क्या है। यह सिनेमा का जादू है। एक पात्र कहता है कि जब अमीर आदमी निर्माता हो जाता है तो वह सृजन के काम में टांग अड़ाने लगता है। इस तरह की अनेक बातें फिल्म में हैं। अजय देवगन हमेशा की तरह कमाल करते हैं और नायिका के साथ एक गंभीर दृश्य में तो उन्होंने जादू-सा किया है। इतनी विविध भूमिकाएं कोई सितारा नहीं करता। अभिषेक बच्चन पहली बार प्रभावित करते हैं।