सामान्य परिचय / चित्रा मुद्गल
संग्रह का सामान्य परिचय
सामान्य परिचय
‘मामला आगे बढ़ेगा अभीं’ ष्मामला आगे बढ़ेगा अभींष् कहानी संग्रह प्रभात प्रकाशन दिल्ली द्वारा पहली बार 1994 में सजिल्द पुस्तकालय संस्करण के रूप में प्रकाशित होने के बाद वर्ष 1999 में प्रभात प्रकाशन दिल्ली में प्रकाशित हुआ। इस कहानी संग्रह में कुल बारह कहानियां संग्रहीत की गयी है। इसमे संग्रहीत किये जाने पूर्व इनमें से अनेक कहानियाँ पूर्व प्रकाशित संगहो में सम्मिलित की जा चुकी थी। जिसके लिये चित्रा जी ने अपनी बात में इस प्रकार कहा हैः-
सच कहूँ तो आपसे संवाद का साहस नहीं जुटा पा रही । अपनी पिछली कहानियों के संसार में दुबारा लौटते हुये (‘लाक्षागृह’,‘अपनी वापसी’ में संग्रहीत) स्वयं के अथक परिश्रमी होने की दावेदारी अचानक भसकती हुई अनुभव हो रही है। जिस भी कहानी को पढ़ने के लिये उठाया, उसके पात्रों से हुई मुठभेड़ ने मन मस्तिष्क में अकस्मात् ऐसे दवाब निर्मित कर दिये कि सम्पूर्ण चेतना ही नहीं , संवेदना भी छटपटाकर उनके पुर्नलेखन के लिये बाध्य करने लगी। बड़ी सघनता से अनुभव किया कि ऊपर कद-काठी के लिए जितनी गहरी नींव के खनन की आवश्यकता थी , परिश्रम के बावजूद कहीं कोई कमी छूट गई।
.....आज प्रवाहमान् मैं जितनी दूर निकल आई हूँ, अपने सुधी पाठकों से सिर्फ इतना ही कहना चाहती हूँ , अपनी बैसवाड़ी कहावत में- ‘देवी चढ़ी कुचैया, कूकुर खाँय बिल्लैया’.......
पहली कहानीः.मामला आगे बढ़ेगा अभी
दूसरी कहानीः.अग्निरेखा
तीसरी कहानीः.शिनाख्त हो गई है
चौथी कहानीः.पाली का आदमी
पांचवी कहानीः.त्रिशंकु
छठी कहानीः.लाक्षा गृह
सातवीं कहानीः.अपनी वापसी
आठवीं कहानीः.लिफाफा
नौवीं कहानीः.गर्दी
दसवीं कहानीः.शून्य
ग्यारहवीं कहानीः.दरमियान
बारहवीं कहानीः.मोरचे पर
समकालीन भारतीय साहित्य के अक्टूबर 84 अंक में इस कहानी संग्रह की समीक्षा भधुरेश द्वारा इन शब्दों में लिखी ्रगयी हैः-
चित्रा मुद्गल की कहानियाँ एक बार फिर कहानी भरे -पूरे परिवार को केन्द्र में रखकर चलने पर जोर देती दिखाई देती हैं। पिछले दिनों छद्म क्रांतिकरिता और राजनैतिक बड़बोलेपन के तहत जो कहानियाँ हिंदी में लिखी गयीं उनका एक दुखद परिणाम यह सामने आया कि कहानी से परिवार की सत्ता गायब होने लगी। माँ-बाप , बहन -भाई जैसे पारिवारिक रिश्तों और पात्रों की कहानी से कमोबेश निष्कासित मान लिया गया , क्योंकि यह समझा गया कि इन रिश्तों के बाबत लिखना आसन्न का्रंति में बाधक हो सकता है। चित्रा मुद्गल ने मध्यवर्गीय पारिवारिक जीवन के बाहर जाकर भी कहानियाँ लिखी अवश्य हैं, खास तौर पर ‘लाक्षागृह’ में संकलित ‘मामला आगे बढे़गा अभी’ और ‘त्रिशंकु’ जैसी कहानियाँ जिसमें उन्होंने झोपड़पट्टी से आये किशोरों की मानसिकता ,द्वंद्वो और बदलते तेवरों को पर्याप्त आश्वस्तकारी ढंग से चित्रित किया है, लेकिन चित्रा मुद्गल की कहानियों का वास्तविक और केन्द्रीय सरोकार निश्चित ही नहीं है। चित्रा मुद्गल की कहानियाँ नौकरीपेशा कामकाजी महिलाओं के साथ अपनी गृहस्थी में रसी-पगी महिलाओं के पिवेशगत तनावों को बहुत बारीकी और संवेदनशीलता के साथ चित्रित करती हैं। अपनी इन कहानियों में जो पद्धति वह अपनाती हैं वह पात्रों और प्रसंगों को विचाारों में रेड्यूस कर देनेवाली पद्धति से भिन्न परिवेश के सारे के सारे जरूरी ब्यौरों और प्रसंगों को रचना की गझिन बुनावट में उतार देने वाली पद्धति है। यही कारण है कि ये कहानियाँ अपने माँसल अस्तित्व का एक ऐसा वृत्त हमारे चारों ओर बनाए रखती हैं जसेका आवेग और ताप हमें हर समय पकड़ के अंदर और छूता हुआ -सा महसूस होता है। ....
(नोटः-कहानी संग्रह का कापीराइट प्रकाशक प्रभात प्रकाशन दिल्ली के अधीन सुरक्षित होने के कारण समीक्षा स्वरूप इसका संक्षिप्त कथा-सार ही अंकित किया जा रहा है। संकलनकर्ता)