सामान्य परिचय / बसेरे से दूर / हरिवंश राय बच्चन
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सामान्य परिचय
‘बसेरे से दूर’, बच्चन जी की आत्म कथा का तीसरा भाग है। इसमें उस समय की बात है जब वे इलाहाबाद से दूर रहे।
इस भाग में लिखी घटनाओं के बारे में विवाद है। कुछ घटनाओं (जैसे, तेजी जी के साथ घटित घटना, या फिर कैम्ब्रिज़ से लौटते समय मिस्र में भारतीय राजदूत की चर्चा) की बात की तो उनका कहना था कि यह घटनायें सही तरह से वर्णित नहीं हैं और वास्तविकता इसके विपरीत है। इस भाग में बच्चन जी के इलाहाबाद से जुड़े खट्टे मीठे अनुभव हैं – ज्यादातर तो खट्टे ही हैं। एक जगह बच्चन जी इलाहाबाद के बारे में यह भी कहते हैं।
‘इलाहाबाद भी क्या अजीबोगरीब शहर है। यह इसी शहर में सम्भव था कि एक तरु तो यहां ऐसी नई कविता लिखी जाय जिस पर योरोप और अमरीका को रश्क हो और दूसरी तरु यहां से एक ऐसी पत्रिका प्रकाशित हो जिसका आधुनिकता से कोई संबंध न हो – संपादकीय को छोडकर। पंडित श्रीनारायण चतुर्वेदी “सरस्वती” को द्विवेदी युग से भी पीछे ले जाकर जिलाए जा रहे थे, आश्चर्य इस पर था।‘
तो दूसरी जगह यह भी कहते हैं,
‘इलाहाबाद की मिटटी में एक खसूसियत है – बाहर से आकर उस पर जमने वालों के लिये वह बहुत अनुकूल पडती है। इलाहाबाद में जितने जाने-माने, नामी-गिरामी लोग हैं, उनमें से ९९% आपको ऐसे मिलेंगे जो बाहर से आकर इलाहाबाद में बस गए, खासकर उसकी सिविल लाइन में – स्यूडो इलाहाबादी। और हां, एक बात और गौर करने के काबिल है कि इलाहाबाद का पौधा तभी पलुहाता है, जब वह इलाहाबाद छोड दे।‘
इसमें कुछ तो सच है। नेहरू, सप्रू, काटजू, बैनर्जी वगैरह तो इलाहाबाद में बाहर से आये और फूले फले। नेहरू की सन्तानें और आगे तब बढ़ी जब वे इलाहाबाद से बाहर गयीं। यह बात हरिवंश राय बच्चन के पुत्र अमिताभ बच्चन पर भी लागू होती है – वे तभी फूले फले जब पहुंचे बॉलीवुड पर यह बात बच्चन जी के लिये सही नहीं है।
हरिवंश राय बच्चन माने या न माने उन्होने अपनी सबसे अच्छी कृति (मधुशाला) उनके इलाहाबाद रहने के दौरान लिखी गयी। उन्हें जो भी प्रसिद्धि मिली वह उन कृतियों के लिये मिली, जो उन्होने इलाहाबाद में लिखी।’