सामान के बीच रखा पियानो / सुधांशु गुप्त

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दोपहर के चार...साढ़े चार या पांच बजे हैं। अक्तूबर का महीना है। 8....9 या 10 तारीख। उसने अपने घर में प्रवेश किया है। घर में व्हाइट वाश और पेंट का काम चल रहा है। बड़ा बेटा अभी कॉलेज से नहीं आया है और छोटा बेटा स्कूल से आकर ट्यूशन जा चुका है। पत्नी घर के कामों में बिजी है। इस एलआईजी फ्लैट में भरपूर सामान है... टीवी... कंप्यूटर... फ्रिज... दो कूलर.... वाशिंग मशीन..... लकड़ी की दो अलमारियां..... ड्रेसिंग टेबल... किताबों के कई रैक (जिनमें देसी विदेशी साहित्यिक और गैर-साहित्यिक किताबें भरी पड़ी हैं) और एक बड़ा सा पियानो। वह इस पियानो को अपने बड़े बेटे के पांचवें बर्थडे पर लाया था। डेढ़ हजार रुपये का। कुछ दिन बेटे ने पियानो को सीखने की कोशिश की। फिर पियानो को उसके खोल में बंद करके रख दिया गया। अब बेटा 19 साल का है। पियानो पुराना हो गया है। पियानो के साथ पलंग पर और भी बहुत सा सामान बिखरा पड़ा है।

घर में लेटने की संभावना केवल बैडरूम में या ड्राइंग रूम में जमीन पर बिछे गद्दे पर ही हो सकती है। उसने घर में घुसते ही लेटने की जगह तलाशी है। लेकिन उसे कहीं लेटने की जगह नजर नहीं आई। सारा सामान बिखरा पड़ा है। आज उसका लेटने का बहुत मन कर रहा है। पहले वह दिन में कभी नहीं लेटता था। पत्नी कहती थी कि उसके अंदर एक अजीब किस्म की बेचैनी है। उसके पांव घर पर टिकते ही नहीं। यह तब की बात है, जब वह नौकरी कर रहा था। एक महीने पहले उसने नौकरी छोड़ दी है। पिछले एक महीने से वह घर पर ही है। घर पर रहना बहुत बोरिंग काम है। वह बहुत बोर हो रहा है। उसने शून्य सी नजरों से घर में बिखरे सामान को देखा है। पता नहीं वह सामान को देख रहा था या सामान से परे कुछ और।

लेटना है क्या? पत्नी ने पूछा।

हूं....लेकिन कहीं जगह दिखाई नहीं दे रही।

अंदर डबल बैड के किनारे पर मैंने थोड़ी सी जगह बना रखी है, वहां लेट जाओ।

वह अंदर आ गया। डबल बैड के पास। कमरे में हल्का सा अंधेरा है। पूरे पलंग पर एक अलमारी से निकला सामान बिखरा पड़ा है। पहली नजर में उसे सोने की कोई जगह नजर नहीं आई। फिर वह बैड के दूसरी ओर चला गया। उसने देखा वाकई सामान को इस तरतीब से लगाया गया था कि किनारे पर साढ़े पांच फिट लंबी और एक फिट चौड़ी जगह निकल आई थी। उसने बिना लाइट जलाए और बिना कपड़े बदले खुद को इस जगह पर फिट कर दिया और पत्नी की दाद दी कि उसने कितनी खूबसूरती से सोने की जगह निकाल ली है।

तो क्या पत्नी को इस बात का अंदाजा था कि मैं इस वक्त लौटूंगा और आते ही लेटना चाहूंगा ?

महिलाएं बड़ी समझदार होती हैं। जब वह नौकरी करता था तो उसके ऑफिस आने और जाने का समय तय था। वापसी में बैल करते ही पत्नी समझ जाती थी कि वह लौट आया है। लगभग 20 साल की नौकरी में पत्नी जान चुकी थी, लेटना उसकी आदत में शामिल नहीं है। लेकिन अब? बेरोजगारी के इस एक महीने में ही पत्नी को पता चल गया है कि अब उसके पास जाने के लिए कोई जगह नहीं है। बेमन से वह कहीं जाता भी है तो समय से पहले ही वापस आ जाता है। आज भी वह एक जगह नौकरी के लिए गया था। जिसके पास गया था, वह पहले उसके साथ ही काम किया करता था, लेकिन अब वह बड़े पद पर है। वह काफी देर तक उसके पास बैठा रहा, लेकिन नौकरी की कोई बात नहीं हुई और वह वापस आ गया। लेट गया। डबल बैड के एक किनारे पर। उसे लग रहा है मानो पूरे घर में उसके लिए बस इतनी ही जगह बची है। साढ़े पांच फिट लंबी और एक फिट चौड़ी। उसने अपने दोनों हाथों को सिर के बायीं ओर दबा रखा है। हाथों को फैलाने की कोई गुंजायश उसे दिखाई नहीं दे रही। वह एकदम सीधा लेटा है। पैर डबल बैड के अंतिम हिस्से को छू रहे हैं। उसने सोचा कि एक बार सिर के नीचे दबे दोनों हाथों को सीधा कर लिया जाए। जरा देखा जाए कि डबल बैड पर कितना स्पेस है। उसने धीरे से सिर के नीचे दबे दोनों हाथों को निकाल लिया। लेकिन उसका दायां हाथ चौड़ाई में ले जाते ही डबल बैड पर रखे किसी डिब्बे से टकरा गया। वह एकदम चौंक गया और उसने हाथ को वापस खींचा। वह सीधा होकर लेट गया और उसने अपने दोनों हाथों को अपनी टांगों से चिपका लिया। अब ठीक है, उसने सोचा है। अब शरीर के किसी हिस्से के किसी सामान से टकराने की संभावना नहीं है। कम स्पेस में लेटने का भी अपना मजा है। आप अपने शरीर को बैलेंस करना सीख जाते हैं। वह बैलेंस करना सीख रहा है। उसने अपनी आंखें जोर से भींच ली हैं।

वह लेटा है। डबल बैड के एक किनारे पर। उसने आंखें खोलकर देखा है। कमरे में अब भी अंधेरा है, लेकिन अब वह अंधेरे में चीजों को देख पा रहा है-डबल बैड पर रखी चीजों को। उसके पैरों के पास बहुत सारी बैडशीट्स रखी हैं। वह किसी बैडशीट को पहचानता नहीं है। लेकिन जब वह नौकरी में था तो दिवाली के मौके पर बैडशीट गिफ्ट में मिला करती थीं। पत्नी हर बार गिफ्ट पैक को उठाकर रख देती थी। लगता है ये सारी बैडशीट्स वही होंगी। अक्तूबर का महीना है। दीवाली पास आ रही है। लेकिन इस बार उसे कोई बैडशीट नहीं मिलेगी। वह कहीं नौकरी नहीं करता। कहीं ऐसा तो नहीं कि पत्नी ने जानबूझकर बैडशीट यहां रख दी हों। वह यह याद दिलाना चाहती हो कि इस बार नयी बैडशीट घर में नहीं आयेगी। या हो सकता है कि वह यह कहना चाह रही हो कि बैडशीट घर में बहुत हैं, अगर इस बार कोई नयी बैडशीट नहीं भी मिलेगी तो कोई दिक्कत नहीं है। उसने पैरों के पास रखी बैडशीट्स को जोर से लात मारी। सारी बैडशीट उसके पैरों पर गिर पड़ीं। उसने देखा अब उसके पैर दिखाई नहीं पड़ रहे हैं। उसने महसूस किया कि उसके पैरों में

बैडशीट्स को हटाने की ताकत नहीं है।

उसने दायीं तरफ देखा, एक व्यक्ति उसके बराबर से गुजर कर गया है। वह बराबर वाले कमरे में पेंट कर रहा है। पता नहीं उसने मुझे देखा या नहीं? वह पेंट के काम में बिजी हो गया। उसने एक बार फिर डबल बैड पर रखे सामान पर नजर डाली। उसने सोचा कि कमरे में कोई आ क्यों नहीं रहा? अब तो छोटा बेटा भी ट्यूशन से आ गया होगा। पत्नी भी चाय के लिए पूछने नहीं आई। हो सकता है, वह सोच रही हो कि मैं सो रहा हूं। लेकिन नींद है कि आ ही नहीं रही।

वह लेटा है। डबल बैड पर रखे सामान के साथ। साढ़े पांच फिट लंबा और एक फिट चौड़ा इनसान। उसके पैर बैडशीट्स से ढंक चुके हैं। उसके सिर और कंधे के बीच वाली जगह पर उसका मोबाइल रखा है। वह सोच रहा है कि मोबाइल की घंटी बजे, ताकि पेंट के काम में लगे व्यक्ति को यह पता चल जाए कि इस पलंग पर सामान के साथ कोई इनसान भी लेटा है। लेकिन मोबाइल भी बिलुकल चुप है। जब से नौकरी छूटी है, मोबाइल ने भी बजना बंद कर दिया है। अब तो किसी का मैसेज भी नहीं आता। बेरोजगार व्यक्ति को कोई क्यों फोन करेगा? पहले चौबीसों घंटे फोन की घंटी बजा करती थी। कितनी ही लड़कियों के फोन आया करते थे। तब वह काम का आदमी था। अब वह उनके किसी काम का नहीं रहा। तो क्या ऑफिस के लोग सच कहते हैं कि नौकरी से ही इनसान की अहमियत होती है। वरना वह घर में रखे सामान की तरह है। सामान को घरवाले फिर भी सहेज कर रखते हैं....लेकिन....।

वह सोच रहा है। उसे यहां लेटे हुए काफी समय बीत चुका है। सब कुछ कितना खामोश है। उसके मोबाइल की घंटी भी नहीं बजी। वरना यहां पेंट करने वालों को पता चल जाता कि पलंग पर रखे सामान के बराबर में कोई लेटा है। उसने एक बार फिर से पलंग पर रखे सामान पर नजर डाली है। पता नहीं इतने डिब्बे कहां से आ गये। क्या होगा इन डिब्बों में। किसी में ग्लासेस होंगे....किसी में क्रॉकरी सैट....किसी में कोई शो पीस.....कुछ डिब्बे खाली भी होंगे। उनके सामान को निकाल कर यूज कर लिया गया होगा। लेकिन पत्नी खाली डिब्बों को भी फेंकती नहीं है। पता नहीं महिलाओं को बेकार की चीजों से इतना लगाव क्यों होता है? लेकिन अच्छी बात है.....इनसान को बेकार की चीजों से भी लगाव होना चाहिए....काम की चीजों से तो सभी को लगाव होता है.....जिन लोगों को बेकार की चीजों से मोह होता है, वे अच्छे लोग होते हैं। ऐसे ही लोगों का बेकार के इनसानों से लगाव हो सकता है। वह बेकार है...पिछले एक माह से। उसने बराबर में रखे डिब्बों को हल्के से हाथ से छुआ है। एक-एक करके डिब्बे उसके ऊपर आ गिरे हैं....अब उसके पैरों के ऊपर का हिस्सा डिब्बों से ढंग गया है। पता नहीं क्यों, लेकिन डिब्बों को अपने ऊपर से हटाने का उसका मन नहीं हुआ। उसे महसूस हो रहा है कि उसके हाथों मे डिब्बों को हटाने की शक्ति नहीं रही है। वह लेटा है। सोच रहा है। नौकरी के छूटने से घर की पूरी व्यवस्था चौपट हो जाती है। ना जाने का कोई टाइम....ना जगह। कहां जाएं....किससे मिलें...। जिसके पास भी जाओ, वह यही समझता है कि नौकरी के लिए आया है। कैसा चल रहा है? सब पूछते हैं। उनके इस सवाल में ही यह छिपा होता है कि नौकरी के बिना ठीक कैसे चल सकता है। इसलिए अब उसने अपने किसी भी मित्र या परिचित के यहां ना जाने का फैसला किया है। अब वह कहीं नहीं जाएगा। घर में ही रहेगा। चाहे उसे पलंग पर इसी तरह क्यों ना लेटना पड़े।

उसने पलंग के पास ही किसी के आने की आहट सुनी। उसका छोटा बेटा है। लगता है वह ट्यूशन से लौट आया है। यानी समय काफी बीत चुका है। वह कपड़े बदल रहा है। उसने अपनी पैंट उतार कर पलंग पर फेंक दी है। यानी उसे भी नहीं पता कि इसी सामान के बीच उनका पिता लेटा है। पैंट उसके ऊपर गिरी है। अब उसके गरदन तक का हिस्सा छिप गया है। अब केवल उसका सिर बाहर है। उसने हल्के से अपनी गरदन को बायीं तरफ घुमा कर देखा है। बराबर के कमरे में पेंट करने वाला पेंट कर रहा है। पेंट की खुश्बू उसके नथुनों में घुस रही है। वह हाथ से अपनी नाक को पकड़ना चाहता है। लेकिन उसके दोनों हाथ भी सामान के नीचे दबे पड़े हैं। उसने अपने हाथों को बाहर निकालने का कोई प्रयास नहीं किया। और आंखें बंद कर लीं। उसने अपने हाथ को थोड़ा सा हिलाया है। उसने महसूस किया कि उसका हाथ किसी चीज से टकराया है। उसने देखने की कोशिश की। एक बड़े से बैग में कुछ बंद है। बैग काफी लंबा है और उसकी चौड़ाई एक ड़ेढ़ फिट होगी। अरे हां, इसमें तो पियानो बंद है। लेकिन इस बैग को देखकर कोई भी अंदाजा नहीं लगा सकता कि इसके अंदर पियानो है। सामान के बीचो बीच रखा ये पियानो का यह बैग इस तरह लग रहा है मानो किसी इनसान को बैग में बंद कर दिया गया हो। क्या पता इसमें कोई इनसान ही बंद हो? खोलकर देखा जाए। लेकिन वह सामान के नीचे इस तरह दबा हुआ है कि उसका उठने का मन नहीं हुआ। और फिर उसके भीतर यह डर भी पैदा हुआ कि कहीं बैग में से सचमुच ही कोई इनसान ना निकल आए। उसने कस कर आंखें भींच ली हैं। अब उसे डबल बैड पर रखा कोई भी सामान दिखाई नहीं दे रहा। बैग में बंद पियानो भी नहीं। सब कुछ एकदम खामोश है। चारों ओर गहरा अंधेरा है। उसे अंधेरे में कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा है। ना सामान....ना पत्नी...ना बच्चे....ना पेंट करने वाला। बस उसे एक बैग में बंद पियानो स्पेस में तैरता दिखाई दे रहा है। उसने आंखों को और कस कर भींच लिया है। समय बीत रहा है।

00000

चारों ओर अंधेरा है। उसने धीरे धीरे अपनी आंखें खोली हैं। लेकिन कुछ नजर क्यों नहीं आ रहा है। अब भी पहले जितना ही अंधेरा है। ये उसके साथ क्या हो रहा है? क्या मैं किसी चीज के भीतर बंद हूं, उसने सोचा है। और कुछ ही पलों में उसे अहसास हो गया कि वह एक बैग के अंदर बंद है-एक लंबे से बैग के अंदर। लेकिन उसे बैग में किसने बंद किया है। इतना लंबा आदमी बैग में कैसे बंद हो सकता है। ये उसके साथ किसने शरारत की है? वह सोच रहा है। उसने अपने हाथ पैर और शरीर के अलग अलग हिस्सों को महसूस करने की कोशिश की। लेकिन ये क्या हुआ? उसके शरीर का कोई भी हिस्सा सही सलामत नहीं है। उसने पाया कि वह एक पियानो में बदल चुका है। उसे बुरी तरह डर लग रहा है। वह भला कैसे पियानो में बदल सकता है? यह कैसे संभव है? उसने हिलने डुलने की कोशिश की लेकिन सब बेकार। वह बैग में इस तरह बंद है कि हिलडुल भी नहीं सकता। उसे बाहर की आवाजें सुनाई पड़ रही हैं। वह बोलने की कोशिश करता है, लेकिन पता नहीं क्यों कोई आवाज नहीं निकल रही है। वह जोर से चीखना चाहता है, ताकि घर का कोई व्यक्ति उसकी आवाज सुन ले और उसे इस बैग से बाहर निकाल दे। हालांकि उसे इस बात का भी डर लग रहा है कि जब सारे घर वाले बैग में बंद पियानो को देखेंगे तो उन्हें कैसे पता चलेगा कि इसमें बंद पियानो वास्तव में एक इनसान है-बच्चों का पिता है। उसने पाया है कि इस बैग में बंद होने के बाद बस एक ही अच्छी स्थिति है। उसे बाहर की आवाजें सुनाई पड़ रही हैं। वह सोच रहा है कि कहीं ये सपना तो नहीं है? नहीं...नहीं... सपना कैसे हो सकता है? अभी तो वह पलंग के एक किनारे पर लेटा था। पलंग पर सारा सामान रखा था। उसी सामान के एक ओर वह लेटा था। पलंग पर एक एक बैग में बंद पियानो भी रखा था।

अरे ये सामान ऊपर अलमारी में रखवा दे, पत्नी की आवाज सुनाई दी है।

आता हूं...ये उसका बड़ा बेटा है।

तू स्टूल पर खड़ा हो जा...मैं एक एक करके सामान तुझे पकड़ाती जाऊंगी, पत्नी ने फिर कहा।

तो अब सारा सामान अलमारी में रखवाया जाएगा। यानी अब उन्हें पता चल जाएगा कि बैग में मैं बंद हूं। लेकिन मैं अब मैं रहा ही कहां हू। मैं तो एक पियानो में बदल गया हूं। फिर भी पत्नी को पता होना चाहिए कि वापस आने पर मैं इसी पलंग पर लेटा था। मुझे महसूस हुआ कि पत्नी पलंग पर से सामान उठा उठाकर बेटे को पकड़ाती जा रही है। और बेटा सामान को अलमारी में रखता जा रहा है। बैग के अंदर बंद वह सोच रहा है कि अब इस बैग की बारी भी आने ही वाली होगी। जब पत्नी इस बैग को उठायेगी तो उसे यह भारी लगेगा। तब शायद वह इसे खोल कर देखे। उसे बेटे की आवाज सुनाई दी है। वह कह रहा है, पहले वह बैग पकड़ा दो।

हां, पकड़ाती हूं, पत्नी ने कहा।

उसने महसूस किया कि पत्नी बैग को उठाने की कोशिश कर रही है।

क्या बहुत भारी है, बेटे ने मदद करने के मकसद से पूछा।

हां, भारी तो होगा ही। बेकार चीज पड़ी-पड़ी भारी हो जाती है।

उसने महसूस किया कि वह पत्नी के दोनों हाथों में है। यानी अब उसे ऊपर अलमारी में रख दिया जाएगा।

ले पकड़, ध्यान से। थोड़ा भारी है, पत्नी ने कहा।

लाओ.....बेटे ने कहा।

अब वह पत्नी के हाथों से निकल कर बेटे के हाथों में आ गया है। बेटे ने बड़े सलीके से उसे अलमारी के ऊपर रख दिया है। अब भी चारों तरफ अंधेरा है। उसे कुछ दिखाई नहीं दे रहा और ना ही कुछ महसूस हो रहा है। उसने आंखें बंद कर ली हैं। कुछ समय और बीत गया है। पूरा सामान अलमारी में रखा जा चुका है। खट की आवाज के साथ ही वह समझ गया है कि बेटे ने अलमारी को बंद कर दिया है।