साम्यवाद आ रहा है / कांग्रेस-तब और अब / सहजानन्द सरस्वती
यह साम्यवाद भारत के दरवाजे खटखटा रहा है। 20-25 वर्षों की कशमकश के बाद चीन में उसकी विजय पूरी होने ही को है। बर्मा में साम्यवाद एवं पूँजीवाद के बीच जीवन-मरण की भिड़ंत जारी है। चीन और बर्मा के मध्यवर्ती देशों की भी कमबेश यही हालत है। लक्षण है कि ये सभी देश जल्द पूँजीवाद को गर्दनिया दे साम्यवाद को अपनाएँगे। तब भारत की पारी आएगी। चाहे हमारे लीडर लाख चीख-पुकार मचाएँ। मगर यह बात होकर रहेगी। आज यह प्रश्न नहीं है कि हम साम्यवाद को पसंद करते हैं या नहीं। आज तो वह चट्टान जैसी ठोस चीज के रूप में हमारे सामने खड़ा है। चीन की 95 प्रतिशत जनता च्यांग कै शेक को सलाम करके मावसेतुंग का साथ दिल खोल कर क्यों दे रही है , यदि साम्यवाद बुरी चीज है और साम्यवादी लोग शैतान हैं ? जनता के ही बल से तो साम्यवादियों की विजयों पर विजएँ हो रही हैं। यह भी नहीं कि वह साम्यवाद सोवियत रूस से चीन में लाया जा रहा है। उसका वृक्ष चीन में ही ठेठ बीज से अंकुरित होकर वृक्ष के रूप में सामने आ रहा है। भारत में भी यही होना है। 1939 और 1945 के दरम्यान भारत में पूर्व से एक बवंडर आया जो अंग्रेजी शासन को डुबाकर चलता बना। पुनरपि उसी पूर्व से दूसरा तूफान आ रहा है जो शीघ्र पूँजीवाद को भी यहाँ से भगाएगा और शोषित-पीड़ित जनता के हाथों में शासन सौंपेगा। यही जमाने का रुख है ─ यही समय की पुकारहै।