साम्यवाद का हौआ / कांग्रेस-तब और अब / सहजानन्द सरस्वती
एक ओर तो चिल्लाते हैं कि किसान-मजदूर राज्य स्थापित करेंगे। दूसरी ओर वही लीडर साम्यवाद से इतने भयभीत हैं कि सोते-जागते उसी के सपने देखते और उससे बचने की तरकीब सोचते हैं। यही तो वंचना है। साम्यवाद कोई दूसरी चीज नहीं है सिवाय विशुध्द किसान-मजदूर राज्य के। साम्यवाद होने पर हरेक आदमी से उतना ही वही काम लिया जाएगा जिसे वह जितना कर सके। लेकिन बदले में उसकी सभी आवश्यकताएँ पूरी की जाएँगी , यही साम्यवाद कहलाता है। तब इसी का हौआ क्यों खड़ा किया जाता है ? साम्यवाद धर्म को मिटाता है , यह तो उसके शत्रुओं का झूठा प्रचार है। सोवियत रूस में धर्म को मिटाने का नाम भी वहाँ की सरकार कहाँ करती है ? वहाँ तो हरेक को आजादी है कि धर्म माने या न माने। हाँ , साम्यवादी सरकार धर्म की घूँटी किसी को नहीं पिलाती और न उसके पक्ष-विपक्ष में प्रचार करती है जो ठीक ही है। साम्यवाद में अमीर-गरीब नाम की चीज नहीं होती-सभी सुखी होते हैं यह सुंदर बात है। सभी नागरिकों को समान रूप से पूरा अवसर मिलता है सर्वांगीण समुन्नति का। फिर उसका विरोध कैसा ?