सारी रात / कामतानाथ
‘हां तो बताओ।’
‘क्यां बताएं?’
‘कभी किसी से तुम्हारा कोई संबंध रहा ही नहीं?’
‘न।’
‘बिल्कुल, जरा भी नहीं?’
‘न।’
‘यह मैं मान ही नहीं सकता।’
‘आपकी कसम।’
‘क्यों झूठी कसम खाती हो?’
‘आपको विश्वास नहीं?’
‘कैसे विश्वास हो! हर झूठी-सच्ची बात पर विश्वास कर लूं!’
वह थोड़ी देर चुप रही। बोली, ‘जरूरी है कि शादी से पहले हर लड़की का किसी न किसी से संबंध रहे ही?’
‘आज के जमाने में न रहे यह हो ही नहीं सकता।’
‘और लड़कों का?’
‘लड़कों का भी।’
‘तो आपका भी रहा होगा?’
‘हां।’
‘कितनी लड़कियों से रहा?’
वह सोचने लगा। ‘एक...दो...तीन।’ उसने अंगुलियों पर गिना। ‘हां, तीन से रहा। बस।’ उसने कहा।
‘क्या रहा बताइए।’
‘क्यों बताऊं?’
‘न बताइए।’ वह चुप हो गई।
उनका नया-नया विवाह हुआ था। कल सारी रात वह एक मिनट भी नहीं सोए थे। और आज भी इस समय दो बजने वाले थे। कमरे में नीली रोशनी का जीरो पावर का बल्ब जल रहा था। जाड़ों के दिन थे। रेशमी लिहाफ के नीचे एक-दूसरे से सटे हुए लेटे वे ऊल-जलूल बातें कर रहे थे। इसी बीच न जाने कैसे बातों का यह सिलसिला निकल आया।
थोड़ी देर खामोश रहने के बाद लड़की ने अपनी नर्म-नर्म उंगलियों से उसे छुआ।
‘बताइए न!’ उसने कहा।
‘अच्छा बताता हूं।’ उसने कहा और उसे प्यार करने लगा।
‘जाइए बड़े वो हैं आप!’ लड़की ने उसे हटाते हुए कहा।
‘वो क्या होता है?’
‘मुझे नहीं मालूम।’
‘फिर तुमने ‘वो’ कहा क्यों?’
‘मेरा मन।’
‘तुम्हारा जो मन होगा करोगी?’
‘जी।’
‘ठीक है। मेरा भी जो मन होगा करूंगा।’ और वह फिर उसे अपनी ओर घसीटने लगा।
‘छोड़िए। जाइए भी।’
‘कहां जाऊं?’
‘अपनी उन्हीं तीनों के पास जाइए।’
‘अच्छा।’ उसने बलपूर्वक उसे अपने निकट खींच लिया और दोबारा प्यार करने लगा।
थोड़ी देर ऐसे ही चलता रहा। तब लड़की ने दोबारा छेड़ा, ‘बताइए न!’
‘क्या बताऊं?’
‘उन लड़कियों के बारे में बताइए।’
‘अच्छा। लेकिन एक शर्त है।’
‘क्या?’
‘तुमको भी बताना पड़ेगा।’
‘अच्छा।’
‘अच्छा क्या?’
‘मैं भी बताऊंगी।’
‘इसमें मायने तुम्हारा भी कुछ रहा है?’
‘हिश्ट।’
‘हिश्ट क्या? मैं कोई कुत्ता-बिल्ली हूं जो मुझे हिश्ट कर रही हो।’
‘वैसे ही निकल गया मुंह से। सारी।’
‘अच्छा तो तुमको भी बताना पड़ेगा।’
‘मैं क्या बताऊं। मेरा कुछ रहा ही नहीं।’
‘फिर तुमने क्यों कहा कि बताओगी?’
‘अच्छा बताऊंगी। मगर पहले आप बताइए।’
‘सच सच बताऊं?’
‘और क्या झूठ बताएंगे!’
उसने उसे अपने निकट खींच लिया। लड़की ने करवट लेकर अपना हाथ उसके सीने पर रख लिया।
‘पहली लड़की तो यहीं सामने वाले मकान में रहती थी।’ उसने कहा।
‘नाम क्या था?’
‘बिट्टी।’
‘बिट्टी? असली नाम क्या था?’
‘बिट्टी नाम मैंने थोड़े रखा था।
‘बिट्टी तो घर का नाम होगा। असली नाम तो कुछ और रहा होगा?’
‘हां, असली नाम तो कुछ और था।’
‘क्या था?’
‘लक्ष्मी।’
‘फिर?’
‘फिर क्या?’
‘पूरी बात बताइए न।’
‘पूरी बात? अच्छा। ऐसा हुआ कि हमारे घर में सब लोग बाहर चले गए थे। किसी शादी में। मेरी परीक्षाएं हो रही थीं। इसीलिए मैं अकेले रह गया। तभी लक्ष्मी ने मेरी बड़ी सेवा की। सुबह ब्रेड-चाय लेकर आती मेरे लिए। तब नाश्ता। फिर दिन और रात का भोजन। मेरे कपड़े भी साफ करती वह। मेरे कमरे में सफाई करती। समझ लो सभी कुछ करती थी वह। अब तुम्हीं बताओं, कोई तुम्हारे लिए इतना करे तो उसके प्रति तुम्हारे मन में प्यार नहीं होगा क्या?’
‘अपने मतलब से भी तो करते हैं लोग।’
‘मतलब की इसमें क्या बात है?’
‘उसके घर वाले मना नहीं करते थे?’
‘घर वाले उसके यहां कहां थे? बताया न रिश्तेदारी में आई थी यहां।’
‘रिश्तेदारों को मना करना चाहिए था।’
‘क्यों मना करते? पढ़ती भी तो थी वह मुझसे। बहुत तेज थी पढ़ने में।’
‘रात में भी रहती थी आपके कमरे में?’
‘हां, यही कोई ग्यारह-बारह बजे तक।’
‘तब तो सब कुछ किया होगा आपने?’
‘हां, करीब-करीब सब कुछ समझो।’
‘कितने दिन रही यहां वह?’
‘यही कोई दो महीने।’
‘आजकल कहां है?’
‘अपने घर में।’
‘कहां?’
‘बदायूं।’
‘शादी हो गई उसकी?’
‘अभी कुछ दिनों तक तो नहीं हुई थी। अब कह नहीं सकता।’
‘खत लिखती है आपको?’
‘अब तो नहीं लिखती। पहले लिखे थे।’
‘आपने भी लिखे होंगे?’
‘हां, दो-चार तो लिखे ही थे।’
वह चुप हो गई। काफी देर चुप रही।
‘क्यों, चुप क्यों हो गईं?’ उसने पूछा।
‘वैसे ही।’
‘और दो लड़कियों के बारे में नहीं सुनोगी?’
‘सुनाइए।’
‘अच्छा, जाने दो।’
‘नहीं, नहीं, बताइए न।’
‘बताता हूं। दूसरी थी शिखा।’
‘वह कहां थी?’
‘मेरे साथ पढ़ती थी यूनीवर्सिटी में। बहुत खूबसूरत थी वह। यूनीवर्सिटी के सभी लड़के और लड़के क्या प्रोफेसर तक उस पर मरते थे’
‘आप भी मरते थे?’
‘हां। यही समझो।’
‘यह मरा कैसे जाता है?’
‘तुमको नहीं मालूम?’ वह फिर उसे प्यार करने लगा।
‘यह क्या मरना बता रहे हैं?’
‘हां!’ उसने उसके सिर में एक हल्की चपत लगाई।
‘रहने दीजिए। मालूम हो गया। बस! पीटिए नहीं।’
कुछ क्षण फिर खामोशी के बीते। तब वह बोली, ‘आगे बताइए ना!’
‘बताएं क्या? क्लास में मेरी बगल में ही बैठती थी। सो धीरे-धीरे हमारे बीच प्यार हो गया। हॉस्टल में रहती थी वह। डैडी उसके कहीं बाहर पोस्टेड थे। शुरू में हम केवल क्लास में ही मिलते। बाद में बाहर भी मिलने लगे। कई बार सिनेमा भी गए साथ-साथ।’
‘सिनेमा में और सब भी किया होगा आपने?’
‘क्यों, तुम्हारे साथ किया कभी किसी ने?’
‘हिश्ट...सॉरी!’
‘अब की हिश्ट कहा तो झापड़ दूंगा।’
‘अच्छा अब नहीं कहूंगी। आगे बताइए।’
‘आगे क्या’, वह कुछ देर चुप रहा तब बोला, ‘उस लड़की को मैं वास्तव में बहुत चाहता था। बड़े खूबसूरत खत लिखती थी वह।’
‘हैं आपके पास?’
‘हां! देखोगी?’
‘जी! देखूंगी।’
‘नहीं दिखाऊंगा।’
‘न दिखाइए। कसम खिलाई होगी न उसने।’
‘सब तौर-तरीके मालूम हैं तुमको।’
‘हि...सॉरी!’
लेकिन वह सॉरी कहने से पहले ही चपत लगा चुका था। हाथ कुछ जोर से ही पड़ गया था।
‘लगा तो नहीं?’ वह उसका सिर सहलाने लगा।
‘नहीं...शादी क्यों नहीं कर ली आपने?’
‘किससे?’
‘उसी से।’
‘शादी हो नहीं सकती थी। वैसे मैं जोर देता तो शायद वह राजी हो जाती।’
‘जोर क्यों नहीं दिया आपने?’
‘जोर देता तो आज तुम कैसे होती यहां?’
‘मैं न होती तो क्या हुआ! वह तो होती। आपके लिए तो ठीक होता।’
‘क्यों?’
‘आप उसे प्यार करते थे न।’
‘तुम्हें भी तो कर रहा हूं।’ वह फिर प्यार करने लगा।
‘उसके खत दिखाऊंगा तुम्हें किसी दिन।’ अलग हुआ तो उसने कहा, ‘बहुत शरीफ लड़की थी।’
‘क्यों?’
‘क्यों क्या, थी बस! एम. ए. में फर्स्ट क्लास आया था उसका।’
‘फर्स्ट क्लास आने से शरीफ हो गई?’
‘नहीं तो क्या बदमाश हो गई?’
‘अच्छा आजकल कहां है?’
‘शादी हो गई।’
‘कहां?’
‘दिल्ली में। लेफ्टिनेंट है उसका हस्बेंड। आर्मी में।’
‘अब खत नहीं आते?’
‘न।’
‘सब कुछ किया आपने उसके साथ?’
वह एक क्षण चुप रहा। तब बोला, ‘नहीं।’
‘जी भरके नहीं किया?’
वह खामोश रहा। आखिर बोला, ‘अब भी अगर वह राजी हो तो मैं उससे शादी कर लूं।’
‘और मैं?’
‘तुम भी रहोगी। लोगों के दो पत्नियां नहीं होतीं क्या?’
‘दो से भी अधिक होती हैं।’
उसने कोई उत्तर नहीं दिया।
‘और तीसरी कौन थी?’
‘वह थी एक सीतापुर में। वहां कुछ दिनों एक कालेज में नौकरी की थी मैंने।’
‘कौन थी?’
‘जिस मकान में रहता था उसी के मालिक की लड़की थी।’
‘क्या नाम था?’
‘नाम बताना जरूरी है?’
‘न बताइए।’
‘शकुन नाम था।’
‘उसके साथ क्या किया आपने?’
‘किया क्या! उसी के यहां रहता था। खाता भी उसी के यहां था। एक तरह से पेइंग गेस्ट था। उससे भी बातचीत होती थी। कोई पर्दा तो था नहीं। धीरे-धीरे संबंध डेवलप हो गए। संपर्क की बात होती है यह। कोई भी स्त्री-पुरुष कुछ दिनों एक-दूसरे से मिलते रहें तो अपने आप संबंध बन जाते हैं।’
‘उसके साथ तो जरूर सब कुछ किया होगा आपने। वह तो साथ ही रहती थी।’
‘एक बात बताऊं। विवाहित थी वह।’
‘पति कहां था उसका? वह साथ नहीं रहता था?’
‘ससुराल वालों से कुछ झगड़ा हो गया था। इसी लिए मायके में रहती थी। मेरे सामने एक बार उसका पति आया भी था उसे लेने। लेकिन वह गई नहीं।’
‘आपने रोक लिया होगा।’
‘मैं क्यों रोकता?’
‘फिर क्यों नहीं गई?’
‘क्या पता? न संतुष्ट होगी अपने पति से।’
‘बच्चे भी थे उसके?’
‘न।’
‘और कौन-कौन था घर में?’
‘मां-बाप थे और एक छोटी बहन थी।’
‘छोटी बहन से भी आपका कुछ रहा होगा?’
‘वह बहुत छोटी थी। सात-आठ वर्ष की।’
‘तब तो आपको खुली छूट रही होगी। उम्र क्या थी उसकी?’
‘मुझसे कुछ बड़ी ही थी। छब्बीस-सत्ताइस रही होगी।’
‘फिर तो अच्छी-खासी बड़ी थी।’
‘क्यों, छब्बीस-सत्ताइस बड़ी उम्र होती है क्या?’
‘और क्या?’
‘तुम्हारी क्या उम्र है?’
‘बीस-इक्कीस होगी।’
‘तब तो तुम अभी बच्ची हो।’
‘हि...अच्छा नहीं कहूंगी।’
उसका हाथ बीच में ही रुक गया। वह फिर खिलवाड़ करने लगा।
‘अच्छा अब तुम बताओ।’ थोड़ी देर बाद उसने कहा।
‘मैं क्या बताऊं? मेरा कभी किसी से कुछ रहा ही नहीं।’
‘देखो, झूठ मत बोलो।’
‘कसम खाती हूं मैं।’
‘कसम-वसम में तो मैं पहले ही कह चुका हूं, मुझे विश्वास नहीं।’
‘फिर कैसे विश्वास दिलाऊं आपको?’
‘विश्वास होगा ही नहीं मुझे।’
‘मानिए तो आप।’
‘मानने की इसमें क्या बात है! मैं तुम्हारे ऊपर कोई दोष तो मढ़ नहीं रहा। मैंने नहीं सब बता दिया तुमको। जैसा कि मैंने कहा इसमें किसी का कोई दोष होता ही नहीं। यह तो बस संपर्क की बात होती है।’
‘मैं कब कहती हूं संपर्क की बात नहीं होती। लेकिन मेरा कभी किसी से संपर्क रहा ही नहीं।’
‘तुम्हारे अड़ेास-पड़ोस में कोई लड़का नहीं रहता था?’
‘कई रहते थे। लेकिन मेरे यहां कोई आता-जाता नहीं था। मेरे पापा इस मामले में बड़े स्ट्रिक्ट हैं।’
‘अच्छा, पढ़ी तुम कहां?’
‘दयानन्द ऐंग्लों गर्ल्स कालेज में।’
‘को-एजूकेशन नहीं थी वहां?’
‘न।’
‘घर पर कोई पढ़ाने नहीं आता था?’
‘हाई स्कूल में एक मास्टर साहब आते थे।’
‘क्या उम्र थी उनकी?’
‘रही होगी साठ-पैंसठ वर्ष।’
‘रिश्तेदारी वगैरह में भी कभी किसी लड़के से कोई संपर्क नहीं हुआ?’
‘न।’ ‘ सहेलियों के यहां तो आती-जाती होगी?’
‘आती-जाती क्यों नहीं थी।’
‘उनके भाई-वाई नहीं थे?’
‘थे क्यों नहीं।’
‘तुमसे बातचीत नहीं होती थी उनकी?’
‘मुझसे क्यों होगी?’
‘क्यों का क्या प्रश्न है? आजकल तो सब चलता है। बल्कि आजकल तो लड़कियां खुद अपने भाइयों के लिए प्रेमिकाएं जुटाती हैं ताकि उनको छूट मिल जाए।’
‘मेरी सहेलियां ऐसी नहीं हैं।’
‘तो कभी तुम्हारा किसी से कोई भी संपर्क नहीं रहा?’
‘न।’
‘बड़ी बदकिस्मत हो तुम।’
‘क्यों?’
‘प्यार में क्या आनंद होता है यह तो करने वाला ही जानता है। या फिर वह जिसे प्यार किया गया हो।’ वह एक क्षण चुप रहा तब बोला, ‘अच्छा ऐसा भी नहीं हुआ कि तुम किसी को चाहती हो लेकिन तुम्हें अवसर न मिला हो?’
‘न।’
‘या फिर कोई तुम्हें चाहता हो और उसे अवसर न मिला हो?’
‘अब इसका मुझे क्या पता?’
‘सब पता चल जाता है।’
वह चुप रही।
‘बताओ न। मैंने नहीं बता दिया सब। आखिर अब कोई तलाक तो दे नहीं दूंगा तुम्हें। और फिर अगर किसी ने तुम्हें चाहा तो इसमें तुम्हारा क्या कसूर?’ वह फिर भी चुप रही।
‘नहीं बताना चाहती हो तो मत बताओ।’
‘वैसे तो मुझे पता नहीं’, उसने कुछ देर बाद कहा, ‘हां, कालेज जाती थी तो एक लड़का मुझे अक्सर दिखाई पड़ता था। दो-चार बार मेरे पीछे-पीछे आया भी कालेज तक। लौटते समय भी दिखा दो-एक बार।’
‘बात नहीं की कभी तुमसे?’
‘न।’
‘वैसे ही बगल से निकलते हुए कोई डायलाग बोला हो कभी?’
‘न। बस देखता था और कभी-कभी पीछे-पीछे या फिर सड़क की दूसरी पटरी पर चलता रहता था। काफी सीधा था।’
‘इसके मायने तुम्हारे दिल में जगह थी उसके लिए।’
‘मेरे दिल में क्यों जगह होने लगी?’
‘सीधा, शरीफ कह रही हो न तुम उसे।’
‘तो क्या बदमाश कहूं? कभी ऐसी हरकत तो की नहीं उसने।’
‘लड़कियों का पीछा करना शरीफ आदमियों का काम है?’
‘तब तो फिर बदमाश ही कहेंगे।’
वह कुछ देर चुप रहा। तब बोला, ‘कभी कोई लेटर नहीं दिया उसने?’
‘न।’
‘कसम खाके कह रही हो?’
‘हां।’
‘अच्छा मेरे सिर पर हाथ रखकर कहो।’
‘आप तो कह रहे थे कसम में विश्वास ही नहीं करते।’
‘तुम तो करती हो?’
‘मैं भी नहीं करती।’
‘फिर पहले क्यों कसम खा रही थीं?’
‘वह तो वैसे ही बोलचाल में आदमी के मुंह से निकल जाता है।’
‘खैर, तुम मेरे सिर पर हाथ रखकर कहो कि उस लड़के से तुम्हारी कभी कोई बातचीत नहीं हुई। न कोई खत-किताबत हुई।’
‘किस लड़के से?’ उसने अपना हाथ उसके सिर पर रखते हुए कहा।
‘उसी लड़के से जिसके बारे में तुम अभी बता रही थीं।’
‘आपकी कसम नहीं हुई।’
‘पूरी बात कहो।’
‘आपकी कसम उस लड़के से मेरी कभी कोई बातचीत, चिट्ठी-पत्री नहीं हुई।’ उसने शब्दों को चबाते हुए साफ-साफ कहा।
लड़का कुछ बोला नहीं। उसको अब भी विश्वास नहीं हो रहा था।
कुछ क्षण खामोशी के बीते। तब ‘नाराज हो गए क्या?’ लड़की ने कहा।
‘नहीं तो।’
‘फिर चुप क्यों हो गए?’
‘तो क्या सारी रात बक-बक करता रहूं?’
लड़के का स्वर काफी बदला हुआ था। लड़की अचानक सहम-सी गई। उसकी समझ में नहीं आया वह क्या कहे।