सावधान! भवन निर्माण में दीमक व रिसाव / जयप्रकाश चौकसे

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सावधान! भवन निर्माण में दीमक व रिसाव
प्रकाशन तिथि : 28 मार्च 2021


आधिकारिक घोषणाओं से अधिक फुसफुसाहटें समाज के लंबे स्याह गलियारों में गूंजती हैं। एक चुनाव प्रचार में कहा गया कि प्रत्याशी को स्पष्ट करना चाहिए कि क्या उसने एक से अधिक विवाह किए हैं? क्या उसकी कोई प्रेमिका है, जिसे उसने किसी स्थान पर छुपाए रखा है? बंगाल के अमीर लोगों के बागान व बाड़ियां होती हैं। वर्तमान में इसी तरह फार्म हाउस का प्रयोग होता है। कृषि की जमीनों को इसी तरह हड़प लिया गया और उन्हें अय्याशी का मकाम बना लिया गया है। विवाह समारोह के लिए इन्हें किराए पर देकर कमाई की जाती है। एक प्रांत के कुछ व्यापारी दोपहर का भोजन अवकाश अपनी इसी तरह की प्रेमिका के घर बिताते हैं। मणिरत्नम की फिल्म ‘गुरु’ में इस तरह के स्थान और अवकाश को दोपहरिया कहा जाता है।

गौरतलब यह है कि प्रत्याशी किस काम के वादे कर रहा है। उसके क्रियान्वयन के बारे में विस्तार से पूछा नहीं जाता। मान लीजिए कि किसी व्यक्ति का मकान बनाना है। एक ठेकेदार बजट के अनुरूप मकान 7 महीनों में बनाने की बात करता है। वह बजट से बाहर जाने का अंदेशा भी प्रकट करता है। दूसरा ठेकादार 5 महीने में बजट से कम राशि में मकान बनाने की बात करता है। मकान बनवाने वालों को यह जानकारी कोई नहीं देता कि वह कौन सी ईंटें, कौन सा सीमेंट और किस तरह के लोहे का इस्तेमाल करने वाला है। मकान का लंबे समय तक टिका रहना सामान पर निर्भर करता है। ठेकेदार की योग्यता भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। गुणवत्ता के लिए बजट की सीमा से ऊपर जाया जा सकता है। गुणवत्ता और मजबूती का यही तल महत्वपूर्ण है। अधिकांश संस्थाएं भी इसीलिए दरक रही हैं और गिर रही हैं। यह हमारी चरित्र हीनता के सुसुप्त अवस्था से अंगड़ाई लेकर जागने के प्रयास के कारण हो रहा है। भवन निर्माण में भूखंड के नीचे रहने वाली दीमक का नाश करना जरूरी है। इसी तरह छत में रिसाव नहीं होना चाहिए। दीमक और रिसाव भवन को गिरा देते हैं। यही सारी बातें व्यक्तित्व के निर्माण और विचारधारा के विकास में भी लागू होती हैं। सामूहिक विचार तंत्र भंग होता है। वैचारिक संकीर्णता का उद्भव और प्रवाह इसी तरह वेग पकड़ता है। सरकारी दफ्तरों में टेबल के नीचे से रिश्वत देने पर ही टेबल पर रखी फाइल आगे खिसकती है। इन दफ्तरों में दीमक लग चुकी है। कुरीतियों का रिसाव हो रहा है। जिस प्रलय के संकेत महाकाव्य में दिए गए हैं, उस जल प्रलय का कारण भी इस संस्कारहीनता के कारण ही हो सकता है। भवन निर्माण की तरह ही नाटक और फिल्म की पटकथा लेखन में भी रिसाव और दीमक से बचना चाहिए। कुछ लेखक अपनी पटकथा को सबमरीन की तरह रचते हैं कि एक बूंद का भी प्रवेश नहीं हो सके। कुछ फिल्मकार निर्माण के समय ही परिवर्तन और परिमार्जन करते हुए चलते हैं। कभी-कभी कुछ फिल्मकार एक धुंधला सा कथा विचार लिए शूटिंग प्रारंभ करते हैं। शूटिंग के साथ-साथ पटकथा विकसित होती है।

हमेशा शीघ्रता से काम करने वाला फिल्मकार पटकथा कागज की स्याही सूखने के पहले स्टूडियो में सेट निर्माण प्रारंभ कर देता था। और सेट निर्माण पूरा होने के पहले ही शूटिंग प्रारंभ कर देता था। संपादन क्रिया पूरी करने के पहले ही प्रदर्शन कर देता था। फिल्म की असफलता से कभी विचलित नहीं हुआ और दर्जनों हादसे रच दिए।

एक दिन ये रेंगती हुई फुसफुसाहटें कोई ठोस शरीर बना लेंगी। कोविड-19 पैरासाइट का उदय मनुष्य के उदय के पहले ही हो चुका था परंतु उसे रहने को कोई घर नहीं मिला था। वह अभी बेघर बेदर शरीर विहीन अस्तित्व लिए इधर-उधर डोलता रहा। जैसे ही उसे मानव शरीर का घर मिला उसने डेरा डाल लिया। वैक्सीनेशन ही इस मुफ्तियां, बिन बुलाए मेहमान को खदेड़ कर बाहर कर देगा। व्यवस्था प्रयास कर रही हैं परंतु कुछ लोग वैक्सीन के नाम पर आसुत जल लगा रहे हैं। धरपकड़ जारी है परन्तु नागरिक स्वयं ही सजग प्रहरी बने तभी बात बन सकती है। प्रिंट मीडिया सजगता लाने का प्रयास कर रही है।