सावन का महीना, पवन करे शोर / जयप्रकाश चौकसे

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सावन का महीना, पवन करे शोर
प्रकाशन तिथि : 07 अगस्त 2019


सावन के महीने में किसान फसल बोते हैं। इस तरह वर्तमान में भविष्य की सुरक्षा का इंतजाम किया जाता है। फिल्मों में सावन प्रेरित गीत भी लोकप्रिय हुए हैं। लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल का फिल्म 'मिलन' के लिए लिखा गीत 'सावन का महीना पवन करे शोर' अत्यंत लोकप्रिय हुआ। गीतकार शैलेन्द्र ने अपने बंगले का नाम 'रिमझिम' रखा था, क्योंकि उन्होंने अपना पहला गीत फिल्म 'बरसात' के लिए लिखा था। सावन में ही राखी का उत्सव भी मनाया जाता है। शैलेन्द्र ने 'बंदिनी' के लिए गीत लिखा था 'अबके बरस भेज भैया को बाबुल सावन में लीजो बुलाए'।

राज कपूर की फिल्म 'संगम' में गीत है, 'हर दिल जो प्यार करेगा, गाना गाएगा, दीवाना सैकड़ों में पहचाना जाएगा'। गीत की रिकॉर्डिंग के समय एक व्यक्ति ने शैलेन्द्र से कहा कि गीत की पंक्तियों को देखते हुए पंक्ति होनी चाहिए, 'कहते-कहते कितने सावन बीत गए, जाने कब आंखों का शरमाना जाएगा..'। शैलेन्द्र ने कहा , 'करते करते कितने सावन बीत गए' इसलिए लिखा है कि महिलाएं सावन में अच्छा पति मिलने की कामना से उपवास करती हैं।' गीतकार अपनी सांस्कृतिक परम्पराओं की जानकारी रखता है और उनसे प्रेरणा लेते हुए, अपनी व्यक्तिगत प्रतिभा से उस परम्परा को मजबूत करते हुए चलता है।

रेखा ने अपनी अभिनय यात्रा नवीन निश्चल के साथ 'सावन भादो' नामक फिल्म से प्रारंभ की थी। उस समय रेखा सांवली और मोटी थी परंतु फिल्म 'दो अनजाने' में अमिताभ बच्चन के साथ अभिनय करते हुए उन्होंने स्वयं को इतना बदला कि वे उमराव जान अदा हो गईं।

अकिरा कुरोसावा की फिल्म 'सेवन समुराई' की प्रेरणा से सभी देशों में फिल्में बनाई गई हैं। रमेश सिप्पी ने सलीम-जावेद की लिखी 'शोले' बनाई, जो इतनी सफल रही कि कुछ लोग चाहते हैं कि फिल्म इतिहास दो खंड में बांटा जाए- शोले के पहले और शोले के बाद। बहरहाल 'सेवन समुराई' में एक बस्ती, जिसे हम सभ्य कह सकते हैं, पर डाकुओं का आक्रमण होता है गोयाकि असभ्यता ने सभ्यता पर आक्रमण किया है। कस्बे के लोग अपनी रक्षा करने के लिए योद्धाओं को बुलाते हैं। ये समुराई कानून व्यवस्था के हाशिये पर खड़े लोग हैं।

बहरहाल, समुराई कस्बे की रक्षा करते हैं और असभ्य डाकुओं को मार देते हैं। इस संकट और संग्राम के समय एक समुराई और कस्बे की एक युवती प्रेम करने लगते हैं जैसे 'शोले' में धर्मेन्द्र और हेमामालिनी अभिनीत पात्र करते हैं। संकट समाप्त होते ही समुराई वापस लौटने लगते हैं। प्रेम करने वाला समुराई कस्बे की अपनी प्रेमिका को साथ चलने और विवाह करने का प्रस्ताव रखता है। ठीक उसी समय वर्षा होने लगती है तो कस्बे की युवती समुराई से हाथ छुड़ाकर कहती है कि यह समय खेत में बुआई करने का है। सावन का महीना है।

इस दृश्य में निहित अर्थ यह भी है कि लोग संकट के समय उच्च नैतिक मूल्यों को अपनाते हैं परंतु सबकुछ सामान्य होने पर वे अपने स्वार्थ और टुच्चेपन पर लौट आते हैं। स्वतंत्रता संग्राम के समय हम आदर्श को अपनाए हुए थे और बाद में अपनी स्वाभाविक कमजोरियों पर लौट आए।

मनोज कुमार की फिल्म 'रोटी, कपड़ा और मकान' में गीत है, 'तेरी दो टकिया दी नौकरी, मेरा लाखों का सावन जाए'। दरअसल, फिल्मकार वर्षा में गीत और दृश्य फिल्माते हैं ताकि नायिका को भीगे कपड़ों में प्रस्तुत कर सकें। अंग प्रदर्शन का बहाना बन जाते हैं सावन के गीत। प्रकाश मेहरा की फिल्म में अमिताभ बच्चन और स्मिता पाटिल का गीत 'आज रपट जाएं तो' गीत अंग प्रदर्शन के लिए ही था। राज कपूर की 'बूट पॉलिश' में जेल के कक्ष में सारे गंजे कैदी सिर पर बाल उगाने के नुस्खों और टोटकों पर बात कर रहे हैं। एक गंजा कहता है कि वर्षा के समय सभी जगह हरी घास उग आती है तो वर्षा होने पर हमारे बाल भी उगना चाहिए। मन्ना डे का गाया एक गीत प्रारंभ होता है, 'लपक झपक तू आ रे बदरवा, तेरे घड़े में पानी नहीं है, पनघट से भर ला'। खूब वर्षा होने लगती है तो डेविड अभिनीत कैदी को खयाल आता है कि इस घोर वर्षा के समय अनाथ बच्चों का कष्ट कितना बढ़ गया होगा। वाल्ट व्हिटमैन की एक कविता का आशय है कि हर घास धरती पर गिरा ईश्वर का रूमाल है, जिसके किसी कोने पर रूमाल मालिक का नाम लिखा है, जिसे हम पढ़ नहीं पाते। ज्ञातव्य है कि शाहजहां ने अपनी पत्नी मुमताज की स्मृति में ताजमहल बनाया परंतु उनकी पुत्री जहांआरा ने अपनी वसीयत में लिखा कि उसकी कब्र पर केवल घास ही उगनी चाहिए गोयाकि एक ही कालखंड में एक ही परिवार के दो लोगों की कब्रें बनीं- एक सबसे महंगी और दूसरी सबसे सस्ती।