सावन ही आग लगाए तो कौन बुझाए / जयप्रकाश चौकसे

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सावन ही आग लगाए तो कौन बुझाए
प्रकाशन तिथि : 18 अप्रैल 2019


सोमवार की रात पेरिस के 850 साल पुराने कैथेड्रल में आग लग गई। अब उस राख के ढेर के नीचे यादों की चिंगारियां सुलग रही हैं। ढेरों देशी-विदेशी फिल्मों की शूटिंग वहां हुई थी। वर्ष 1939, 1956 और 1996 में विक्टर ह्यूगो के उपन्यास 'हंचबैक आफ नोट्रेडम' से प्रेरित फिल्में बनी हैं। भारतीय फिल्में 'लंदन ड्रीम्स' और 'बेफिक्रे' में सितारों ने यहां ठुमके लगाए हैं। अयान मुखर्जी की रणवीर कपूर और दीपिका पादुकोण अभिनीत फिल्म 'ये जवानी है दीवानी' में भी इसके इर्द-गिर्द शूटिंग की गई थी। कैथेड्रल को बनाने में 100 वर्ष का समय लगा था। फ्रांस की सरकार ने संकल्प किया है कि वे उसे नए सिरे से बनाएगी। भवन निर्माण की आधुनिक टेक्नोलॉजी से कुछ ही वर्षों में इमारत बनाई जा सकती है। कैथेड्रल को इस तरह बनाया जाएगा कि वह इमारत का पुनर्जन्म लगे और शक्ल-सूरत विगत जन्म जैसी ही रहे गोयाकि जलकर नहीं जला, नष्ट होकर नष्ट नहीं हुआ। मनुष्य की इच्छाशक्ति और प्रतिभा हमेशा सृजन करती रही है। मानो कहती हो कि देखना है, जोर कितना बाजु-ए-वक्त में है।

इमारतों में आग लगने की दुर्घटनाओं पर फिल्में बनती रही हैं। हॉलीवुड की फिल्म 'बर्निंग इन्फर्नो' से प्रेरित होकर बलदेवराज चोपड़ा ने फिल्म बनाई थी परंतु उन्होंने एक चलती हुई ट्रेन में आग लगने की पृष्ठभूमि रखी थी। यह बहुसितारा फिल्म असफल रही थी। मेहबूब खान की 'मदर इंडिया' में खलनायक गरीब की फसल में आग लगा देता है। इसी दृश्य की शूटिंग के समय नरगिस को लपटों से सुनील दत्त ने बचाया था और उनकी प्रेम-कहानी अंकुरित हुई थी।

फराह खान की फिल्म 'ओम शांति ओम' में एक फिल्म सेट पर लगी आग में नायिका जल जाती है, क्योंकि खलनायक ने बाहर निकलने का द्वार बंद कर दिया था। विमल रॉय की जन्म-जन्मांतर की प्रेम कहानी को प्रस्तुत करने वाली महान फिल्म 'मधुमति' का ही चरबा थी 'ओम शांति ओम'। ज्ञातव्य है कि बिमल रॉय की कंपनी आर्थिक मुसीबत झेल रही थी और वे बंगाल लौटने का विचार कर रहे थे। उनके मित्र ऋत्विक घटक से उन्होंने अपनी बात कही। जीनियस घटक ने उनके दफ्तर में ही बैठकर 'मधुमति' की पटकथा लिख दी। इस फिल्म की सफलता ने बिमल रॉय को राहत प्रदान की। सलिल चौधरी और शैलेन्द्र ने सार्थक माधुर्य रचा, जिसके कारण दर्शकों ने बार-बार यह फिल्म देखी। शैलेन्द्र ने इस फिल्म में मिलन-गीत, जुदाई-गीत, लोकगीत और एक मुजरा भी लिखा है। कबीर का प्रभाव देखिए, 'मैं नदिया फिर भी मैं प्यासी/ भेद ये गहरा बात जरा सी..'।

कबीर, अमीर खुसरो और रवींद्रनाथ टैगोर का प्रभाव अनगिनत लोगों पर रहा है। नजरूल इस्लाम भी सृजन सागर में लाइट हाउस की तरह रहे हैं। सचिनदेव बर्मन ने 'मेरी सूरत तेरी आंखें' के लिए नजरूल इस्लाम प्रेरित धुन बनाई थी, 'पूछो न कैसे मैंने रैन बिताई/ इक पल जैसे इक युग बीता/ युग बीते मोहे नींद न आई..'। संस्कृति संसार में कोई सरहद नहीं है। ब्रह्मांड भी उसकी सीमा नहीं है।

फ्रांस में ऐतिहासिक महत्व की दिशा-निर्देश करने वाली क्रांति हुई। वहां महान चित्रकारी की गई, उपन्यास लिखे गए हैं। इतना ही नहीं फिल्म समालोचना का प्रारंभ भी फ्रांस में ही हुआ है। ब्रिटेन के अधीन होने के कारण हमारे यहां से अनेक लोग आॅक्सफोर्ड और कैम्ब्रिज गए परंतु फ्रांस की संस्कृति की ओर हम आकर्षित नहीं हुए, जबकि संस्कृति के मामले में भारत और फ्रांस एक-दूसरे के पूरक हो सकते थे। ओसबोर्न विश्वविद्यालय और गुरु रवींद्रनाथ टैगोर के शांति निकेतन में कुछ साम्य है। ज्ञातव्य है कि सीन नदी के तट पर 'महाभारत' प्रस्तुत किया था। यह नाटक महान रंगकर्मी पीटर बक्स ने प्रस्तुत किया था और नौ घंटे की अवधि का था। बहरहाल, कैथेड्रल में रखी महान पेंटिंग्स का जल जाना संस्कृति संसार की बड़ी दुर्घटना है। इमारत तो फिर बन जाएगी परंतु उन पेंटिंग्स की भरपाई असंभव है। ज्ञातव्य है कि विक्टर ह्यूगो के उपन्यास का नायक कुबड़ा था और उसे अत्यंत सुंदर स्त्री से प्रेम हो जाता है। जीना लोलाब्रिगिडा ने सुंदरी की भूमिका निभाई थी। इसी फिल्म का भारतीय संस्करण अमिया चक्रवर्ती की फिल्म 'बादशाह' थी, जिसमें शंकर-जयकिशन ने संगीत रचा था। गौरतलब है कि कहीं भी आग लगने पर पानी उसे बुझा देता है।

अमेरिका में जंगल में लगी आग बुझाने का एक अलग विभाग है। इस विषय पर भी हॉलीवुड में फिल्म बन चुकी है। मनुष्य के उदर में भूख की ज्वाला भड़क जाती है तो पाचक द्रव्य भी उत्पन्न होता है। इस तरह मनुष्य के शरीर में आग और पानी एक ही समय में सहअस्तित्व बनाए रखते हैं। दुःख की बात है कि समुदायों में वैमनस्य फैलाया गया है। चुनाव जीतना इस कदर जरूरी बना दिया गया है मानो सत्ता ही प्राणवायु है।