साहसी की सदा जय / ओमप्रकाश कश्यप

Gadya Kosh से
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एक थी बकरी. एक था उसका मेमना. दोनों जंगल में घास चर रहे थे. चलते-चलते बकरी को प्यास लगी. मेमने को भी प्यास लगी. बकरी बोली—

‘चलो पानी पी आएं.’ मेमने ने भी जोड़ा.

‘हां मां, चलो पानी पी आएं.’

पानी पीने के लिए बकरी नदी की ओर चल दी.

पीछे-पीछे मेमना भी चला. मां के साथ. कदम से कदम मिलाता.

दोनों चले, बोलते-बतियाते, गाते-गुनगुनाते, खेल-खेल में कदम बढ़ाते…टब्बक-टब्बक! टब्बक टब्बक!

बातों-बातों में बकरी ने मेमने को समझाया—

‘साहस से काम लो तो संकट टल जाता है.’

‘धैर्य बना रहे तो विपत्ति से बचाव का रास्ता निकल ही आता है.’

मां की सीख मेमने ने गांठ बांध ली. दोनों नदी तट पर पहुंचे. वहां पहुंचकर बकरी ने नदी को प्रणाम किया. जल देवता को जोड़े हाथ. मेमने ने भी नदी को प्रणाम किया. जल देवता को जोड़े हाथ. नदी ने दोनों का स्वागत कर उन्हें चेताया—

‘भेड़िया बस आने ही वाला है. पानी पीकर फौरन घर की राह लो.’

‘भेड़िया गंदा है. वह हम जैसे छोटे जीवों पर रौब डालता है. उन्हें मारकर खा जाता है. वह घमंडी भी है. तुम उसे अपने पास आने ही क्यों देती हो? पानी पीने से मना क्यों नहीं कर देतीं?’ मेमने ने नदी से कहा. नदी मुस्कराई. फिर नन्हे मेमने को प्यार से समझाया—

‘मैं जानती हूं कि भेड़िया गंदा है. अपने से कमजोर जीवों को सताता है. उसकी एक भी आदत मुझे पसंद नहीं. पर क्या करूं! जब भी वह मेरे पास आता है, प्यासा होता है. प्यास बुझाना मेरा धर्म है. मैं उसको मना नहीं कर सकती.’

बकरी को बहुत जोर की प्यास लगी थी. मेमने को भी बड़े जोर की प्यास लगी थी. दोनों नदी पर झुके. नदी का पानी शीतल था. साथ में मीठा भी. बकरी ने खूब पानी पिया. मेमने ने भी खूब पानी पिया.

पानी पीकर बकरी ने डकार ली.

पानी पीकर मेमने को भी डकार आई.

डकार से पेट हल्का हुआ तो दोनों फिर नदी पर झुक गए. पानी पीने लगे. नदी उनसे कुछ कहना चाहती थी. मगर दोनों को पानी पीते देख चुप रही. बकरी ने डटकर पानी पिया. मेमने ने भी डटकर पानी पिया. पानी पीकर बकरी मुड़ी. तभी उसे जोर का झटका लगा. लाल-लाल आंखों, राक्षसी डील-डौल, डब्बर-झब्बर बालों वाला भेड़िया सामने था. उसके शरीर का रक्त जम-सा गया.

मेमना भी भेड़िया को देखकर घबराया. थोड़ी देर तक दोनों को कुछ न सूझा.

‘अरे वाह, आज तो शीतल जल के साथ गरमागर्म भोजन भी तैयार है. अच्छा हुआ जो तुम दोनों यहां मिल गए. बड़े जोर की भूख लगी है. अब पहले मैं तुम दोनों को खाऊंगा, फिर पानी पीकर अपनी प्यास बुझाऊंगा.’

तब तक बकरी संभल चुकी थी.

तब तक मेमना भी खुद को संभाल चुका था.

‘छिः छिः! कितने गंदे हो तुम. मुंह पर मक्खियां भिनभिना रही हैं. लगता है महीनों से मुंह नहीं धोया.’ मेमना बोला. उसकी फटकार सुनकर भेड़िया बगलें झांकने लगा.

‘जाने दे बेटा. ये ठहरे जंगल के मंत्री. बड़ों की बड़ी बातें. हम उन्हें कैसे समझ सकते हैं. हो सकता है भेड़िया दादा ने मुंह न धोने की कसम खा रखी हो.’ बकरी ने बात आगे बढ़ाई.

‘क्या बकती है. थोड़ी देर पहले तो मैंने रेत में रगड़कर मुंह साफ किया है.’ भेड़िया गुर्राया.

‘झूठे कहीं के. मुंह धोया होता तो क्या ऐसे ही दीखते. तनिक नदी में झांक कर देखो, असलियत मालूम पड़ जाएगी.’ हिम्मत बटोरकर मेमने ने कहा.

भेड़िया सोचने लगा. बकरी बड़ी है. उसका भरोसा नहीं. यह नन्हा मेमना भला क्यों झूठ बोलेगा. रेत में रगड़ा था. हो सकता है, वहीं पर गंदी मिट्टी से मुंह सन गया हो. ऐसे में इन्हें खाऊंगा तो गंदगी नाहक पेट में जाएगी. ताजे-गर्म मांस का मजा किरकिरा हो जाएगा. फिर नदी में झांककर देख लेने में भी कोई हर्ज नहीं है. यह तो संभव नहीं कि मैं पानी में झांकू और ये दोनों भाग जाएं. ऊंह, भागकर जाएंगे भी कहां. जब मैं चीता को दौड़ में पछाड़ सकता हूं तो ये दोनों क्या चीज हैं. एक झपट्टे में पकड़ लूंगा.

‘देखो, मैं मुंह धोने जा रहा हूं. भागने की कोशिश मत करना. वरना बुरी मौत मारूंगा.’ भेड़िया ने धमकी दी. बकरी की देह में झुरझुरी व्याप गई. उसने मेमने की ओर प्यार से देखा. फिर हिम्मत से काम ले आवाज में घोल मिश्री, बोल पड़ी बकरी—

‘महाराज! हमारा तो जन्म ही आप जैसों की भूख मिटाने के लिए हुआ है. यह क्षुद्र देह जंगल के महामंत्री के काम आ सके, हमारे लिए इससे बड़ी बात भला क्या हो सकती है. आप तसल्ली से मुंह धो लें. यहां से बीस कदम आगे पानी एकदम साफ है. विश्वास न हो तो हम दोनों आपके साथ-साथ चलते हैं.

भेड़िया खुश. रोज तो शिकार के लिए मारा-मारी करनी पड़ती है. आज का दिन बड़ा शुभ है, जो शिकार खुद कुर्बान होने जा रहा है. मन ही मन सपने सजाता हुआ हुआ भेड़िया उसी ओर बढ़ गया, जिधर बकरी ने इशारा किया था. वहां पर था गहरा पानी. किनारे थे बेहद चिकने. जैसे ही भेड़िया मुंह देखने के लिए नदी के तल पर झुका, पीछे से बकरी ने अपनी पूरी ताकत समेटकर धक्का दिया. भारी-भरकम शरीर को भेड़िया संभाल न पाया और ‘धप्’ से नदी में जा गिरा. उसके गिरते ही बकरी ने वापस जंगल की ओर दौड़ना शुरू कर दिया. पीछे-पीछे मेमना भी दौड़ा.

दोनों नदी से काफी दूर निकल गए. सुरक्षित स्थान पर पहुंचकर बकरी रुकी. मेमना भी रुका. बकरी ने लाड़ से मेमने को देखा. मेमने ने विजेता जैसे दर्प के साथ अपनी मां की आंखों में झांका. दोनों के चेहरे पर उल्लास था. और था आत्मविश्वास. बकरी बोली—

‘कुछ समझे?’

‘हां, समझा!’

‘क्या?’

‘साहस से काम लो तो खतरा टल जाता है.’

‘और…?’

‘धैर्य यदि बना रहे तो विपत्ति से बचने का रास्ता निकल ही आता है.’

‘शाबाश!’ बकरी बोली. इसी के साथ वह हंसने लगी. मां के साथ-साथ मेमना भी हंसने लगा.