साहस / शुभम् श्रीवास्तव
साहस वह नहीं जो किसी को गिराने, पीट ने या जलील करने के लिए में नहीं होता, साहस लड़ने से ज़्यादा साहस ज़िन्दगी बदलने में होता है। साहस किसी की ज़िन्दगी बदलने में होता। आपके यह साहस कसी की ज़िंदगी को उड़ान दे सकते है, उसकी मदद कर सकते है। यह बात राजीव के मन में चल रही थी जो उसे याद दिला रही थी कि उसे कुछ करना है। उसके सामने डॉक्टर बैठकर उसे समझा रहा था कि उसे दवाई कब खानी है पर उस के मन में कुछ और ही चल रहा था वह अपने आप मैं ही मग्न था। 'राजीव-राजीव' डॉक्टर बोला बजाकर उसका ध्यान टूटा। किधर ध्यान है तुम्हारा। अगर ऐसे ही सोच में डूबे रहे तो यह तुम्हारी सेहत के लिए हानिकारक होगा। तुम्हें स्ट्रोक आये थे। तुम्हें आराम करना चाहिए न कि इस तरह से सोच में डूबे रहना चाहिए. उम्र ही कितनी है तुम्हारी सिर्फ़ 20साल।
राजीव ने दवाई का पर्चा उठाया देखा कि उसे 5 तरीके की दवा खानी है और वह भी पूरी ज़िंदगी भर। थमी हुई आवाज़ में डॉक्टर से कहता है 'जी डॉक्टर साहब'।
इंसान चाहे बाहर से खुद को कितना भी बदल लें पर अंदर से खुद को कभी बदल नहीं सकता। राजीव के मन में द्वंद्व हमेशा से रह है। वह हमेशा सही ग़लत का माप-तौल करता रहता था। हमेशा उसके भीतर ख्याल आते रहते थे, जाकर वह दवाई खाने में पर्चा पकड़ता है।
कम्पाउण्डर कंप्यूटर से बिल निकाल कर कहता है '2, 800' रुपया', सुनकर उसका मन कचोटने लग गया कि हर महीने' 2, 800' महीना पर चलो कि मेरे पिता सरकारी नौकरी करते है तो दवा का 80 फ़ीसदी खर्चा सरकार देगी। मनमे एक हद तक संतुष्टि थी कि उसपे इतना भार नहीं आएगा पर मन में छोटा-सा कोना था जो अभी भी कचोट रहा था।
'मैं तो निकल लिया पर इस देश की 70% आबादी अभी भी सही तरीके से उपचार से वंचित है। हालांकि सरकार ने बहुत-सी योजनाएँ बना रखी थी जो गरीब तबके को इलाज में मदद करती थी और वह सराहनीय भी है। लेकिन निचला मध्यवर्ग। शायद से तो उनका खुदा भी सो चुका था जो उन्हें इतना कठिनाइयों का सामना करना पड़ता था।'
यह सब सोच-सोचकर वह घर पहुँचा। माँ ने दरवाज़ा खोला पूरे 6 दिन बाद राजीव घर में आया अस्पताल से होकर। वैसे तो माँ एक दिन पहले ही घर आई पर बेटे के आने का स्वागत की तैयारी में उन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ी। माँ उसे लाड़ प्यार में रखती अपने हाथ से खाना खिलाती। मातृ प्रेम ने धीरे-धीरे उसके भागते हुए मन को कुछ हद तक शान्ति पहुँचाई.
इस बात को महीनों बीत गए वह कॉलेज जाने लगा, पढ़ने लगा जीवन में आगे बढ़ने लगा।
संभवत सब कुछ कुशल चलता लेकिन एक रात उसकी ज़िन्दगी ने मोड़ लिया। स्वपन देखा कि उसकी माता को किसी ने गाड़ी से टक्कर मार दी है। वह गिड़गिड़ा रहा है पर कोई मदद को आगे नहीं बढ़ रहा था किसी तरीके से अस्पताल पहुँचने की कोशिश करता है, लेकिन माँ के रास्ते में ही प्राण छूट जाते है।
सपने से चौककर उठ खड़ा होता है। चेहरा पूरा पसीना-पसीना। उसे वह दिन फिर याद आता है कि कैसे उसे 45 मिनट तक कोई उपचार नहीं मिला था जब उसे स्ट्रोक आए थे। फिर से वह सोच की जकड़न में पड़ गया कि अगर ऐसा सच हुआ तो। फिर वह सोचता है कि अकेला बंदा क्या कर सकता है? क्या उखाड़ लेगा? इसमें तो बहुत बल चाहिए. बहुत मानवशक्ति और इक्षाशक्ति की ज़रूरत है इस प्रणाली को बदलने में। पर शुरुआत तो कहीं से होगी तो फिर यहीं से शुरू करते है। उसे सिर्फ़ इतना बुझ रहा था कि जो उसके हाथ में है कम से कम वह उतना तो कर सकता है। संयोग था कि वह कंप्यूटर विज्ञान ही पढ़ रहा था। उसके दिमाग में तरकीब सूझी। वह दिन रात कोडिंग करने लगा ना खाने का होश ना पीने का। समय के साथ उसका ये स्वप्नपूर्ण करने के लिए 4 लोगों ने हाथ थामे। सुनील, मनीष, वैभव और कमल जो अलग-अलग कार्य करते थे। काम बँट गया तो आसानी होने लगी जो कार्य 5 साल तक खींचता वह दो साल बाद पूरा हुआ।
दो साल बाद
एच0आर0डी0और स्वास्थ्य विभाग के मंत्री और प्रतिनिधि बैठे हुए थे। कमल वाक्पटु था तो राजीव ने उसे बोलने को कहा। कमल ने प्रोजेक्ट के बारे में बोलना शुरू किया।
' हम सभी ने मिलकर एक ऐप्प बनाया है नाम है "मेडमैक्स" , हम इसके जरिए चाहते है कि इस से हर अस्पताल को अपने डॉक्टरों व उनकी मुलाक़ात का समय, सीट कितनी अस्पताल में खाली है आई0सी0यू0 में और बाक़ी के वार्डों में और हम कैसे सिर्फ़ चंद मिनटों में सबसे करीब वाले अस्पताल में से एक एम्बुलेंस बुक कर सकते है? कौन सबसे सस्ता इलाज कर सकता है?
कहाँ पर सबसे सस्ती दवाई मिलती है इन सबका ब्यौरा इस एप्प के जरिये हमे मिलेगा। हम दवा मँगवा सकते है अपॉइंटमेंट बुककर सकते है इत्यादि।
स्वास्थ्य मंत्री ने अपने सेक्रेट्री से कुछ कान में बोला।
सेक्रेट्री ने कमल से पूछा-'तो तुम्हें हमसे क्या चाहिए?'
सुनील ने इसका तुरंत उत्तर दिया-'अगर आप ये निर्देश ज़ारी कर दे कि सारे अस्पतालों का ब्यौरा हमें मिल जाए तो हमें अस्पतालों का ब्यौरा हमें मिल जाएगा फिर हमें बार-बार अस्पताल के चक्कर नहीं काटने पड़ेंगे।'
सेकेट्ररी ने फिर बोला-'पर क्या उनका डेटा सुरक्षित रहेगा?'
इसपर वैभव ने बोला-'सर, सुरक्षा का जिम्मा मेरे सिर है। हमने इसका प्रबल इंतेज़ाम किया है कि 99 प्रतिशत तक कोई हानि नहीं होगी। इसका भी हम आपको विवरण दे सकते है अगर आप चाहे तो।'
सेक्रेट्री-'और हमें इससे क्या मिलेगा?'
अब राजीव उठकर बोलता है-' साहब! ज़ाहिर-सी बात है यह स्वास्थ्य के क्षेत्र में क्रांति लाएगा। अगले 6 महीने में चुनाव है और इसकी आपार सफलता का श्रेय आपको मिलेगा। प्रजा खुश, देश का विकास, सारे वोट आपकी तरफ आ जाएँगे।
स्वास्थ्य मंत्री-'मुझे इस पर प्रधानमंत्री की सहमति लेनी होगी।'
मनीष ने बोला-'जी ज़रूर'
उन्हें बोला गया की बाहर इंतेजार करें। 6 घंटे के बाद उन्हें अंदर बुलाया गया। सेक्रेट्री ने कहा-' प्रधानमंत्री ने सहमति दे दी है और साथी ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को इसमें जोड़ने के लिए कहा है ताकि यह प्रणाली सफल और सुचारू रूप से उतारी जा सके. साथ ही उन्होंने कुछ इनाम भेजने को कहा है वह कैसे यह कार्य सम्पन्न किया जाएगा उसका ब्यौरा माँगा है।
मनीष-'शुक्रिया, बहुत-बहुत शुक्रिया।'
राजीव ने आँखे बंद कर ली। उसके भीतर ये आवाज़ उठी-'आज से एक नए युग का प्रारंभ हुआ। उसके साहस ने आज उसे कहाँ लाकर खड़ा कर दिया।