साहित्य और सिनेमा में महामारी / जयप्रकाश चौकसे

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साहित्य और सिनेमा में महामारी
प्रकाशन तिथि : 29 मार्च 2020


अल्बर्त कामू के उपन्यास ‘द प्लेग’ पर फिल्म भी बनी है। यूरोप में महामारी के प्रकोप का विवरण प्रस्तुत किया गया है। ज्ञातव्य है कि अल्बर्त कामू ने अपने उपन्यास ‘आउट साइडर’ में ऐसा पात्र प्रस्तुुत किया था, जिसे हम पूरी तरह भावनाहीन मान सकते हैं। कालांतर में व्यवस्था व बाजार ने अल्बर्त कामू के आकल्पन को यथार्थ में बदल दिया है। अल्जीरिया में जन्मे अल्बर्त कामू की कथा ‘मैटामोरफिसिस’ का पात्र एक सुबह उठता है तो अपने आप को एक बड़े कीड़े में परिवर्तित पाता है। परिवार और पास-पड़ोस के लोग व्यथित हो जाते हैं। धीरे-धीरे उनके भावों में परिवर्तन आने लगता है और एक चरण में उसे देखकर जुगुप्सा जागने लगती है। कुछ भयभीत लोग दूरी बनाने लगते हैं। उसके अपने लोग भी पलायन कर जाते हैं। रिश्ते के खोखलेपन को उजागर करने वाली यह कथा हमें अपने आप पर शर्मिंदा होने को बाध्य करती है। ‘कसमें-वादे, प्यार-वफा सब बातें हैं बातों का क्या’, कोई किसी का नहीं ये झूठे नाते हैं, नातों का क्या…। यह फिल्म उपकार का गीत है।

अगाथा क्रिस्टी के उपन्यास ‘मिरर क्रेक्ड फ्रॉम साइड टू साइड’ में यह विवरण है कि एक सितारा जड़ित फिल्म की आउटडोर शूटिंग चल रही है। अनेक प्रशंसक लोकेशन पर आ गए हैं। शूटिंग के दौर के समाप्त होने पर फिल्मकार एक दावत देता है, जिसमें कुछ प्रशंसिकाएं और प्रशंसक भी आमंत्रित हैं। दावत में शैम्पेन का गिलास नायिका को पेश किया जाता है। नायिका वह गिलास अपनी प्रशंसिका को देती है। उसमें मिले जहर के कारण प्रशंसिका की मृत्यु हो जाती है। इस गंभीर मामले की जांच के लिए विशेषज्ञ बुलाए जाते हैं। कथा का लब्बोलुआब यह है कि जब नायिका एक महत्वपूर्ण फिल्म की शूटिंग के लिए यात्रा कर रही थी, तब ट्रेन में सुरक्षा गार्ड के रोकने के बावजूद एक प्रशंसिका अपने प्रिय सितारे के निकट पहुंच जाती है। उस प्रशंसिका को एक छूत का रोग है और यह बात वह जानती है। नतीजा यह होता है कि नायिका बीमार हो जाती है, जिस कारण यह बड़े बजट की फिल्म उसके हाथ से निकल जाती है। नायिका के प्रारंभिक दौर में यह फिल्म बड़ा अवसर थी। वही प्रशंसिका इस बार भी मिलने पहुंच गई है। नायिका उसे पहचान लेती है और अपने शैम्पेन के गिलास में जहर भी सितारा ने ही मिलाया है। वह उस प्रशंसिका से अपना हिसाब बराबर कर लेती है।

हर संकट के समय उसके उद्गम की खोज का प्रयास किया जाता है। रोग की जड़ तक पहुंचना आवश्यक है। खबर यह है कि स्पेन और इटली में चीन से उपकरण मंगाए गए हैं। एक चश्मा पहने से संक्रमित व्यक्ति को चीन्हा जाकर उससे दूरी बनाई जा सकती है। गौरतलब है कि इतनी जल्दी चीन ने ऐसे उपकरण इतनी अधिक मात्रा में कैसे बना लिए? क्या चीन को पूर्वानुमान था कि ऐसा होगा और उसने भारी मात्रा में उपकरण बना लिए थे? बहरहाल, वे सारे उपकरण घटिया साबित हुए और स्पेन तथा इटली को भारी आर्थिक नुकसान भी हो गया। चीन के पारंपरिक प्रतिद्वंद्वी देश अमेरिका में अनगिनत लोग पीड़ित हैं और उन्हें भी उपकरण आयात करने होंगे। धन्य हैं वे अर्थशास्त्री जिन्होंने 2022 में वैश्विक आर्थिक मंदी की भविष्यवाणी की थी। कोरोना महामारी को हम उस आने वाली त्रासदी का अग्रदूत मान सकते हैं।

ज्ञातव्य है कि चूहों के माध्यम से ही प्लेग रोग फैलता है। एक कहावत यह भी है कि संकट का अनुमान चूहों को सबसे पहले होता है और वे भाग जाते हैं। स्मरण आता है ‘टाइटैनिक’ का दृश्य जिसमें प्रस्तुुत किया गया है कि दुर्घटना के पूर्व ही जहाज से चूहे भागने का प्रयास करते हैं। दरअसल, पशु-पक्षी खतरा सूंघ लेते हैं। यह उनके डिफेंस मैकेनिज्म का हिस्सा है। जिस घर में मृत्यु होने वाली होती है, उस घर के आसपास कुत्ते रोने लगते हैं। मनुष्य को मृत्यु की पदचाप बहुत देर से सुनाई देती है। मनुष्य अपनी वाणी पर ही मंत्रमुग्ध रहता है, इसलिए उसे पदचाप सुनाई नहीं देती।