साहित्य क्षेत्र में अकाल / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 28 दिसम्बर 2021
साहित्यिक पत्रिकाओं का प्रकाशन अब नियमित नहीं रहा। जनता वाचनालय पहले ही बंद हो चुके हैं। किसी दौर में छोटे कस्बों में भी म्युनिसिपल कमेटी का वाचनालय होता था। गौरतलब है कि रूसी लेखक फ्योदोर दोस्तोवोस्की भी तमाम बाधाओं से दंडित हुए। उन्हें बर्फ से घिरे स्थानों में कई वर्ष बिताने पड़े। उन्होंने जीवन में अनेक कष्ट सहे परंतु ‘क्राइम एंड पनिशमेंट’ नामक उपन्यास लिखा और कई चर्चित रचनाएं भी कीं।
मुंशी प्रेमचंद के जीवन में भी कई तरह के कष्ट हुए हैं परंतु उनकी रचनाएं आज भी पढ़ी जा रही हैं। कुछ साहित्यकार तो अपने परिवार का पालन-पोषण अपनी लेखनी द्वारा कर ही पाए। उस दौर में प्रकाशक, लेखक को रॉयल्टी देते थे। आज यह सब सपना लगता है। अब केवल साहित्य आराधना से पेट नहीं भरता। प्रचारकों की विविध गाथाएं बिक रही हैं। यह बिक्री प्रायोजित लगती है। एक दौर में इतने कम लोग पढ़ना-लिखना जानते थे कि दूसरों के पत्र लिखकर भी पेट भरा जाता था। ऐसे ही एक पात्र पर श्याम बेनेगल की फिल्म बनी थी। फिल्म में पति अन्य शहर में नौकरी करता है। पत्र लेखक अपनी कल्पना से कुछ इबारत उसकी पत्नी के नाम भेजता है। सच्चे और काल्पनिक बातों से भरे पत्र लिखते हुए वह व्यक्ति सचमुच अच्छा लेखक हो गया। उस अनपढ़ स्त्री के पति ने शहर में विवाह कर लिया है। घटनाक्रम ऐसा चलता है कि पत्र लिखने वाले और अनपढ़ स्त्री का विवाह हो जाता है। डॉक्टर की हैंडराइटिंग केमिस्ट ही पढ़ पाता है। दरअसल, दवा का पर्चा लिखते-लिखते डॉक्टरों की हैंडराइटिंग बिगड़ जाती है परंतु इस क्षेत्र में संकेत मात्र से सब समझ लिया जाता है।
एक दौर में टेलीग्राम द्वारा संदेश भेजा जाता था। हर शब्द के पैसे लगते थे। अब तो वाक्य से क्रिया हटा दी गई है। बहरहाल, एक प्रसिद्ध और प्रशिक्षित डॉक्टर थे परंतु उन्हें साहित्य, रचना पसंद था। उनका कथन है कि लेखन मेरे लिए प्रेमिका की तरह है और डॉक्टरी पत्नी की तरह है। किसी ने पूछा कि आप अधिक प्रेम किससे करते हैं ? जवाब था कि जो उपलब्ध है। अत: सहूलियत सिद्धांत का छद्म वेश इस तरह धारण कर लेती है।
सत्यजीत राय अपनी पटकथा में रेखा चित्र बनाते थे। उन्हें कम से कम शब्द के संवाद की आवश्यकता होती थी, जो रेखा चित्र वाले पृष्ठ के नीचे फुट नोट की तरह होते थे।
किसी दौर में आपसी संवाद पतंगबाजी के माध्यम से अभिव्यक्त किए जाते थे। मेरे रिश्ते की बहन सप्ताह में एक दिन मौन व्रत रखती थीं। उनका कथन था कि एक शब्द बोलने में 5 कैलोरी खर्च होती है। एक दिन का मौन व्रत ऊर्जा एकत्रित करता है। महात्मा गांधी ने उपवास और मौन व्रत साधना करते हुए अहिंसा का आविष्कार कर लिया। तोपों से लेस घातक हथियार सब कुछ अहिंसा के आगे हार गए। अब दौर बदल गया है एक को मारो तो सौ गिर जाते हैं।
साहित्य पत्रिकाओं का प्रकाशन कम हो जाना पाठकों की संख्या का घट जाना वाचनालयों का लोप इत्यादि एक रुग्ण समाज के लक्षण हैं। फिल्मों में विज्ञान फंतासी की ओर युवा वर्ग का झुकाव तथा प्रेम कहानियों का अभाव यह सब गंभीर बीमारी के लक्षण मात्र हैं।
क्या समय चक्र हमें पुन: पाठक बना देगा? मौजूदा हालात में ऐसी कोई आशा नजर नहीं आती। जुगनू तक गायब हो चुके हैं। जंगल कट गए हैं। महामारी तक से हमने कोई सबक नहीं लिया। आंदोलन नियमित रूप से जारी हैं। विचार क्षेत्र का शून्य फैलता जा रहा है। आंखें चौंधिया देने वाले जगमग संसार में कहीं कोई अपना नजर नहीं आता।
कहते हैं कि चौंधियाई आंखें, अंधेरे में भी साफ देख लेती हैं। शरीर विज्ञान में हो रहीं नित नई खोज हमें निराशा से लड़ने की ताकत देती हैं।
अभी सब कुछ खत्म नहीं हुआ। अंधेरे के उस पार एक किरण परी अभी भी ज्योत के प्यासे की प्यास बुझा रही है। डगर-डगर गलियां जागेंगी।