साहित्य जगत में शोक की लहर / श्रीलाल शुक्ल
लखनवी कथा परंपरा की आखिरी कड़ी का अवसान
साहित्य जगत में शोक की लहर
(संवाददाता/लखनऊ)
मोहनलाल गंज से चार किमी दूर अतरौली गांव में सन् 1925 को जन्मे श्रीलाल शुक्ल वर्तमान समय में लखनऊ के इंदिरा नगर के सेक्टर ‘बी’ के मकान नं. 2251 में रहते थे। 28 अक्टूबर को जब उनकी मृत्यु की खबर फैली, तो उनके आवास पर उन्हें चाहने वालों का तांता लग गया। हर आंख नम थी। साहित्य जगत की जानी-मानी हस्तियों की भी आंखों से आंसू बह रहे थे। हमेशा कुछ न कुछ बोलने वाले इन लोगों के मुंह से आज बोल नहीं फूट रहे थे। सभी लोग डबडबाई आंखों से फूल मालाओं से लदे श्री शुक्ल को अंतिम बार देख रहे थे, क्योंकि ‘लखनऊ का लाल’ आज उनसे काफी दूर चला गया था। सबके चहेते श्री शुक्ल के घर का कोना-कोना लोगों से खचाखच भरा था, फिर भी सांय-सांय हो रहा था। इस सन्नाटे को कभी किसी गाड़ी की आवाज या फिर किसी के मोबाइल की रिंगटोन ही भंग करती थी। कुछ ऐसे ही गमगीन माहौल में श्री शुक्ल का पार्थिव शरीर यहां के भैसाकुंड श्मशान घाट पर पंचतत्व में विलीन कर दिया गया।
श्रीलाल शुक्ल जी के निधन पर जनसंस्कृति मंच ने गहरा दु:ख प्रकट किया है। मंच ने कहा है कि यह हमारे लिए अत्यंत आहत कर देने वाली घटना है। जनसंस्कृति मंच, लखनऊ के संयोजक कौशल किशोर, कवि भगवान स्वरूप कटियार, कवि व आलोचक चंद्रेश्वर, कथाकार सुभाष चंद्र कुशवाहा, नाटककार राजेश कुमार, कवि वीरेंद्र सारंग व अशोक चंद्र आदि लेखकों व रचनाकारों ने शोक संदेश दिया है। संदेश में कहा है कि श्रीलाल शुक्ल ने अपने साहित्य से समाज में जो मशाल जलाई है, वह हमेशा हमें और आने वाली पीढ़ियों को राह दिखाती रहेगी। वे लखनऊ में कथा साहित्य की समृद्ध व प्रगतिशील परंपरा की आखिरी कड़ी थे। यह परम्परा प्रेमचंद, यशपाल, अमृतलाल नागर, भगवती चरण वर्मा से होकर आगे बढ़ी। यही नहीं, देश की आजादी के साथ जिस पीढ़ी ने साहित्य में प्रवेश किया, उसमें श्रीलाल शुक्ल अग्रणी थे। इसलिए उनका निधन साहित्य के उस युग के महत्वपूर्ण स्तंभ तथा लखनऊ की कथा परंपरा की आखिरी कड़ी का अवसान है। जनसंस्कृति मंच ने अपने बयान में कहा गया कि श्रीलाल शुक्ल को बहुत सारे पुरस्कारों सें सम्मानित किया गया। अभी हाल में ज्ञानपीठ पुरस्कार भी उन्हें प्रदान किया गया, लेकिन वे इन पुरस्कारों से बहुत ऊपर रहे हैं। आजादी के बाद जिस तरह पूंजीवाद का विकास हुआ, समाज में सामंती जकड़न बढ़ती गई, उससे आजादी से जुडे जनता के सपने टूटते गए। सामाजिक विसंगतियों की मार से समाज के गरीब-गुरबा का जीवन शोषित दमित होता गया। श्रीलालजी का साहित्य इस यथार्थ का सजीव दस्तावेज है। श्रीलालजी की विशेषता उनकी व्यंग्यात्मक शैली भी है, जो पाठकों पर गहरा असर छोड़ती है।
- मुझसे कभी गुस्सा नहीं हुए
मैंने बहुत मनमानी की, राजनीति में रहा। विद्यार्थी आंदोलन में जेल गया। ये सब किया, लेकिन कभी भी उन्होंने अपनी तरफ से कोई गुस्सा या उसकी भर्त्सना या उसके विरुद्ध कोई बात नहीं कही।
-भवानी शंकर शुक्ल, श्रीलाल जी के छोटे भाई, साहित्यकार और अधिकारी
- ज्ञानपीठ अकादमी को पश्चात्ताप करना होगा
'राग दरबारी' जैसे उपन्यास के लेखक श्रीलाल शुक्ल को इतनी देर से ज्ञानपीठ पुरस्कार देने के लिए ज्ञानपीठ अकादमी को पश्चात्ताप करना होगा। ज्ञानपीठ पुरस्कार इसी पश्चात्ताप की हकदार है।
-नामवर सिंह, हिंदी के प्रख्यात आलोचक
- हिंदी साहित्य ऋणी रहेगा
श्रीलाल शुक्ल ने गांव के पूरे विद्रूप को उभारा, विडंबना और यथार्थ को पकड़ा। उनका लेखन अपनी अलग जगह रखता है। हिंदी साहित्य उनका हमेशा ऋणी रहेगा। समाजशास्त्रीय अध्ययन के लिए भी उनका साहित्य जरूरी है।
-कुंअर नारायण सिंह, साहित्यकार
- हिंदी साहित्य की क्षति है
यह केवल मेरी व्यक्तिगत क्षति नहीं, बल्कि हिंदी साहित्य की बहुत बड़ी क्षति है।
-गोपाल चतुर्वेदी, उत्तर प्रदेश भाषा संस्थान के अध्यक्ष और श्रीलाल शुक्ल के बालसखा
- शोषकों पर प्रहार है ‘राग दरबार’
श्रीलाल शुक्ल का न रहना पूरे हिंदी जगत के लिए एक अपूरणीय क्षति है। गोदान के बाद ‘राग दरबारी’ हिंदी की दूसरी सबसे लोकिप्रय पुस्तक है। हिंदी के नए रचनाकारों के लिए उनका साहित्य सदैव प्रेरणा का स्त्रोत रहेगा। ‘विश्रामपुर का संत तक’ आते-आते व प्रेमचंद की परंपरा के सबसे सशक्त और समर्थ उत्तराधिकारी हो गए थे। आजादी के बाद भारत के गांवों में जो तब्दीली आ रही थी। शासक-प्रशासक और जनसेवकों की जिस तरह शक्लें बिगड़ रही थीं, उसका जीता-जागता दस्तावेज ‘राग दरबारी’ है।
-डॉ. विजय राय, संपादक ‘लमही’
- साहित्य के बड़े आलोचक थे
श्रीलाल शुक्ल से मेरी जान-पहचान पहले से थी, लेकिन जब मैं इंदिरा नगर स्थित आवास पर रहने आया, तो उनसे निकटता बढ़ गई। वह हमसे उम्र में बडे थे, इसलिए मैं उनको भाई साहब ही कहकर बुलाता था। फिल्मों में संवाद लिखने के लिए उन्होंने ही मुझे प्रेरित किया। श्री शुक्ल ने फिल्म फाइनेंस कमेटी के चेयरमैन रहते हुए हिंदी सेवियों को पर्याप्त प्रोत्साहन दिया। ढाई महीने पहले उनके घर पर हुई आखिरी मुलाकात में उन्होंने मुझसे काफी देर तक बात की। वह साहित्य जगत के बड़े आलोचकों में से एक थे।
-पद्मश्री के.पी.सक्सेना, व्यंग्यकार
- साहित्य को क्षति
श्रीलालजी अपने साथियों के बीच हमेशा सहज होकर बैठते थे और उनकी चर्चा का अंदाज भी सहज ही रहता था। उनके निधन से हिंदी ही नहीं, पूरी साहित्य बिरादरी ने एक विराट प्रतिभा खो दिया है, जिसे भरना पूरे साहित्य जगत के लिए एक दुष्कर कार्य होगा।
-अखिलेश जी, साहित्यकार
- चालीस से पहले करो
शुक्ल जी की बातों को याद करते हुए कहते हैं कि उन्होंने मुझसे कहा था कि आपको जो कुछ भी करना है, वह चालीस-पंैतालीस की उम्र तक ही कर डालो, क्योंकि इसके बाद शरीर साथ नहीं देता है। ज्ञानपीठ पुरस्कार मिलने के चार-पांच दिनों बाद अस्पताल में उनसे मेरी मुलाकात हुई। काफी तकलीफ में होने के बाद भी इशारों से उन्होंने बताया कि वह उन्हें पहचान रहे हैं, क्योंकि उनकी आवाज बंद थी, इसलिए वह इशारे में ही या लिख कर बात करते थे।
-शिवमूर्ति, साहित्यकार
- संस्कृत-उर्दू के भी थे जानकार
हम लोग श्रीलाल शुक्ल जी से मिलने और उनके साथ बैठकर चर्चा करने का मौका तलाशा करते थे, क्योंकि उनके साथ बैठना कुछ नया सीखने के लिए एक मौका होता था। उनके ज्ञान के भंडार से कुछ पाने के लिए हम लोग लालायित रहते थे। वह हिंदी के साथ उर्दू व संस्कृत के भी जानकार थे।
-शकील सिद्दीकी, साहित्यकार
- समस्या का निदान
श्रीशुक्ल की रचनाएं न केवल समसामायिक समस्याओं को उठाती हैं, बल्किउनके कारणों की ओर भी पाठकों का ध्यान ले जाती हैं। साथ ही, उसका निदान भी प्रस्तुत करती हैं। इसलिए वह पाठकों के प्रिय लेखक हैं।
-मुद्राराक्षस, साहित्यकार
- नई पीढ़ी के लिए सहजता
श्रीशुक्ल से हमारा संपर्कलंबे समय से रहा है। समूची एक पीढ़ी का अंतराल होने के बावजूद उनके मन में हमारी पीढ़ी के लिए जो सहजता, सहृदयता और आत्मीयता का भाव रहा है। वह बड़े लेखक तो थे ही, साथ ही अच्छे इंसान भी थे। उनका जाना समूचे हिंदी जगत के लिए बड़ा आघात है। उनकी कमी हमेशा महसूस होती रहेगी।
-वीरेंद्र यादव, साहित्यकार
- अद्भुत रचयिता
शुक्ल से मेरा गहरा नाता था। पहले जब वह लखनऊ आते थे, तो मेरे घर रु कते थे। उनका कवियों के साथ भी गहरा लगाव था। ‘राग दरबारी’ की भले ही मिसाल दी जाती हो, लेकिन उनकी अन्य कृतियां भी अद्भुत हैं। उनका जाना भारतीय साहित्य जगत के लिए अपूरणीय क्षति है।
-नरेश सक्सेना, वरिष्ठ कवि
- व्यक्ति नहीं, संस्था थे
श्रीलाल शुक्ल व्यक्ति नहीं, बल्किएक संस्था थे। उनकी प्रेरणा से मेरे जैसे न जाने कितने लोग लेखक बन गए। उनका नए रचनाकारों के प्रति मित्रवत् व्यवहार होता था। ज्ञानी होते हुए भी उन्होंने कभी अपने ज्ञान का बखान नहीं किया।
हरिचरण प्रकाश, कथाकार
- गहरा आघात
श्रीलाल शुक्ल संग लेखकों की चर्चा को मैं दूरदर्शन के लिए रिकॉर्ड करवाना चाहता था, लेकिन वह इसके लिए तैयार नहीं हुए। उनकी रचनाओं में उत्तर भारत की समस्याओं की उठाया गया है। उनके निधन से साहित्य जगत को गहरा आघात पहुंचा है।
-शशांक, डिप्टी डायरेक्टर, दूरदर्शन, लखनऊ