सिंगारदान / शमोएल अहमद

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दंगे में रंडियां भी लूटी गईं थीं

बृजमोहन को नसीम जान का सिंगारदान हाथ लगा था। सिंगारदान का फ्रेम हाथीदांत का था जिसमें आदमकद आईना जडा हुआ था और ब्रजमोहन की लडक़ियां बारी - बारी से शीशे में अपना अक्स देखा करती थीं। फ्रेम में जगह जगह तेल, नाखून पॉलिश और लिपस्टिक के धब्बे थे जिससे उसका रंग मटमैला हो गया था और ब्रजमोहन हैरान था कि इन दिनों उसकी बेटियों के लच्छन

ये लच्छन पहले नहीं थे। पहले भी वे बालकनी में खडी रहती थीं लेकिन अन्दाज यह नहीं होता था अब तो छोटी भी उसी तरह पाउडर थोपती थी और होंठों पर गाढी लिपस्टिक जमा कर बालकनी में ठठा करती थी।

आज भी तीनों की तीनों बालकनी में खडी आपस में उसी तरह चुहलें कर रही थीं और बृजमोहन चुपचाप सडक़ पर खडा उनके हाव भाव देख रहा था।

यकायक बडी ने एक भरपूर अंगडाई ली उसके जोबन का उभार नुमायां हो गया। मंझली ने झांक कर नीचे देखा और हाथ पीछे करके पीठ खुजाई। पान की दुकान के निकट खडे एक युवक ने मुसकुरा कर बालकनी की तरफ देखा तो छोटी ने मंझली को कोहनी से ठोका दिया और फिर तीनों की तीनों हंसने लगीं और ब्रजमोहन का दिल एक अनजाने डर से कांपने लगा। आखिर वही हुआ जिस बात का डर था यह डर ब्रजमोहन के दिल में उसी दिन घर कर गया था जिस दिन उसने नसीम जान का सिंगारदान लूटा था। जब बलवाई रंडीपाडे में घुसे थे तो कोहराम मच गया था। बृजमोहन और उसके साथी दनदनाते हुए नसीमजान के कोठे पर चढ ग़ये थ। नसीमजान खूब चीखी - चिल्लाई थी। बृजमोहन जब सिंगारदान लेकर उतरने लगा था उसके पांव से लिपट कर गिडग़िडाने लगी थी - भैया, यह पुश्तैनी सिंगारदान है इसको छोड दो भैया।

लेकिन बृजमोहन ने अपने पांव को जोर का झटका दिया था। चल हट रंडी और वह चारों खाने चित्त गिरी थी। उसकी साडी क़मर तक उठ गई थी। लेकिन फिर उसने तुरन्त ही खुद को संभाला और एक बार फिर बृजमोहन से लिपट गई थी - भैया यह मेरी नानी की निशानै है भैया

इस बार बृजमोहन ने उसकी कमर पर जोर की लात मारी। नसीमजान जमीन पर दोहरी हो गई। उसके ब्लाउज क़े बटन खुल गये और । बृजमोहन ने छुरा चमकाया - काट लूंगा नसीमजान सहम गई और दोनों हाथों से छातियों को ढंकती हुई कोने में दुबक गई।बृजमोहन सिंगारदान लिये नीचे उतर गया।

बृजमोहन जब सीढियां उतर रहा था यह सोच कर उसको लिज्जत मिली कि सिंगारदान लूट कर उसने नसीमजान को गोया उसकी पुश्तैनी सम्पदा से महरूम कर दिया है। यकीनन यह मूरूसी सिंगारदान था जिसमें उसकी परनानी अपना अक्स देखती होगी, फिर नानी और उसकी मां भी इसी सिंगारदान के सामने बन - ठन कर ग्राहकों से आंखें लडाती होगी। बृजमोहन यह सोच कर खुश होने लगा कि भले ही नसीमजान इससे अच्छा सिंगारदान खरीद ले लेकिन यह पुश्तैनी चीज तो अब उसको मिलने से रही। तब एक पल के लिये बृजमोहन को लगा कि आहाजनी और लूटमार में लिप्त दूसरे दंगाई भी भावना की इसी तरंग से गुजर रहे होंगे कि एक समुदाय को उसकी विवशता से जान - माल से मरहूम दें। ठीक वैसे ही जैसे षडयन्त्र में वह पेश है।

बृजमोहन जब घर पहुंचा तो उसकी पत्नी को सिंगारदान भा गया। शीशा उसको धुंधला मालूम हुआ तो वह भीगे कपडे से पौंछने लगी। शीशे में जगह - जगह तेल के गर्द आलूद धब्बे थे। साफ होने पर शीशा झलझल कर उठा और बृजमोहन की पत्नी खुश हो गयी। उसने घूम घूम कर अपने को आईने में देखा। फिर लडक़ियां भी बारी - बारी से अपना अक्स देखने लगीं।

बृजमोहन ने भी सिंगारदान में झांका तो उसे अपना अक्स मुकम्मल और आकर्षक लगा। उसको लगा सिंगारदान में वाकई एक खास बात है। उसके जी में आया कि कुछ और देर अपने आपको देखे लेकिन यकायक नसीमजान बिलखती नजर आई - भैया सिंगारदान छोड दो चल हट रंडी बृजमोहन ने सिर को गुस्से में दो तीन झटके दिये और सामने से हट गया।

बृजमोहन ने सिंगारदान अपने बेडरूम में रखा। अब कोई पुराने सिंगारदान को पूछता नहीं था। नया सिंगारदान जैसे सब का महबूब बन गया था। घर का हर व्यक्ति खामखां भी आईने के सामने खडा रहता। बृजमोहन अकसर सोचता कि रंडी के सिंगारदान में आखिर क्या भेद छिपा है कि देखने वाला आईने से चिपक - सा जाता है? लडक़ियां जल्दी हटने का नाम नहीं लेती हैं और पत्नी भी रह रह कर खुद को हर कोण से घूरती रहती है यहां तक कि खुद वह भी लेकिन उसके लिये देर तक आईने का सामना करना मुश्किल होता तुरन्त ही नसीमजान रोने लगती थी और बृजमोहन के दिलो - दिमाग पर धुआं सा छाने लगता था।

बृजमोहन ने महसूस किया कि धीरे - धीरे घर में सबके रंग - ढंग बदलने लगे हैं। पत्नी अब कूल्हे मटका कर चलती थी और दांतों में मिस्सी भी लगाती थी। लडक़ियां पांव में पायल भी बांधने लगी थीं और नित नये ढंग से बनाव - सिंगार में लगी रहतीं। टीका, लिपस्टिक और काजल के साथ वह गालों पर तिल भी बनातीं। घर में एक पानदान भी था गया था और हर शाम फूल और गजरे भी आने लगे थे। बृजमोहन की पत्नी शाम से ही पानदान खोलकर बैठ जाती। छालियां कुतरती और सबके संग ठिठोलियां करती और बृजमोहन तमाशाई बना सब कुछ देखता रहता। उसको हैरत थी कि उसकी जुबान क्यों बन्द हो गई है वह कुछ बोलता क्यों नहीं  ? उन्हें फटकारता क्यों नहीं?

एक दिन बृजमोहन अपने कमरे में मौजूद था कि बडी सिंगारदान के सामने आकर खडी हो गई। कुछ देर उसने अपने आपको दाएं - बाएं देखा और चोली के बन्द ढीले करने लगी। फिर बायां बाजू ऊपर उठाया और दूसरे हाथ की उंगलियों से बगलों को छूकर देखा फिर सिंगारदान की दराज से लोशन निकाल कर मलने लगी। बृजमोहन मानो सकते में था। वह चुपचाप बेटी की करतूत देख रहा था। इतने में मंझली भी आ गई और उसके पीछे - पीछे छोटी भी। दीदी! लोशन मुझे भी दो क्या करेगी? बडी ऌतराई। दीदी! यह बाथरूम में लगाएगी। चल हट! मंझली ने छोटी के गालों में चुटकी ली और तीनों की तीनों हंसने लगीं।

बृज मोहान का दिल आशंका से धडक़ने लगा। इन लडक़ियों के तो सिंगार ही बदलने लगे हैं। इनको कमरे में अपने बाप की उपस्थिति का भी ध्यान नहीं है। तब बृजमोहन अपनी जगह से हटकर इस तरह खडा हो गया कि उसका अक्स सिंगारदान में दिखन लगो। लेकिन लडक़ियों के रवैय्ये में कोई फर्क नहीं आया। बडी उसी तरह लोशन मलने में व्यस्त रही और दोनों अगल बगल खडी मटकती रहीं।

बृजमोहन को लगा अब घर में उसका वजूद नहीं है। तब अचानक नसीमजान शीशे में मुस्कुराई। घर में अब मेरा वजूद है। और बृजमोहन हैरान रह गया। उसको लगा वाकइ नसीमजान शीशे में बन्द होकर चली आई है और एक दिन निकलेगी और घर के चप्पे - चप्पे पर फैल जायेगी।


बृजमोहन ने कमरे से निकलना चाहा लेकिन उसके पांव मानो जमीन में गड ग़ये थे। वह अपनी जगह से हिल नहीं सका वह खामोश सिंगारदान को ताकता रहा और लडक़ियां हंसती रहीं। सहसा बृजमोहन को महसूस हुआ ेक इस तरह ठट्ठा करती लडक़ियों के दरम्यान कमरे इस वक्त इनका बाप नहीं एक

बृजमोहन को अब सिंगारदान से खौफ मालूम होने लगा और नसीमजान अब शीशे में हंसने लगी। बडी चूडियां खनकाती तो वह हंसती। छोटी पायल बजाती तो वह हंसती बृजमोहन को अब

आज भी जब वे बालकनी में खडी हंस रही थीं तो वह तामाशाई बना सब कुछ देख रहा था और उसका दिल किसी अनजाने डर से धडक़ रहा था।

बृजमोहन ने महसूस किया कि राहगीर भी रुक - रुक कर बालकनी की तरफ देखने लगे हैं। यकायक पान की दुकान के निकट खडे एक नवयुवक ने इशारा किया। जवाब में लडक़ियों ने भी इशारे किये तो युवक मुस्कुराने लगा।

बृजमोहन के मन में आया कि युवक का नाम पूछे। वह दुकान की ओर बढा, लेकिन नजदीक पहुंच कर चुप हो गया। सहसा उसे महसूस हुआ कि युवक में वह उसी तरह दिलचस्पी ले रहा है जिस तरह लडक़ियां ले रही हैं। तब यह सोच कर हैरत हुई कि वह उसका नाम क्यों पूछना चाह रहा है? आखिर उसके इरादे क्या हैं? क्या वह उसको अपनी लडक़ियों के बीच ले जायेगा? बृजमोहन के होंठों पर पल भर के लिये एक रहस्यमयी मुस्कान रैंग गयी। उसने पान का बीडा कल्ले में दबाया और जेब से कंघी निकाल कर दुकान के शीशे में बाल सोंटने लगा। इस तरह बालों में कंघी करते हुए उसको एक तरह की राहत का अहसास हुआ। उसने एक बार कनखियों से युवक को देखा। वह एक रिक्शा वाले से आहिस्ता - आहिस्ता बातें कर रहा था और बीच - बीच में बालकनी की तरफ भी देख रहा था। जेब में कंघी रखते हुए बृजमोहन ने महसूस किया कि वाकई उसकी युवक में किसी हद तक दिलचस्पी जरूर है यानी खुद उसके संस्कार भी उंह संस्कार - वंस्कार से क्या होता है? यह उसका कैसा संस्कार था कि उसने एक रंडी को लूटा एक रंडी कोकिस तरह रोती थी भैया भैया मेरे और फिर बृजमोहन के कानों में नसीमजान के रोने - बिलखने की आवाजें ग़ूंजने लगीं बृजमोहन ने गुस्से में दो तीन झटके सिर को दिये। एक नजर बालकनी की तरफ देखा, पान के पैसे अदा किये और सडक़ पार कर घर में दाखिल हुआ।

अपने कमरे में आकर वह सिंगारदान के सामने खडा हो गया। उसको अपना रंग रूप बदला हुआ नज़र आया। चेहरे पर जगह - जगह झांइयां पड ग़ईं थीं और आंखों में कासनी रंग घुला हुआ था। एक बार उसने धोती की गांठ खोल कर बांधी और चेहरे की झांइयाें पर हाथ फेरने लगा। उसके जी में आया कि आंखों में सुरमा लगाये और गले में लाल रूमाल बांध ले कुछ देर तक वह अपने आपको इसी तरह घूरता रहा। फिर उसकी पत्नी भी आ गई। सिंगारदान के सामने वह खडी हुई तो उसका आंचल ढलक गया। वह बडी अदा से मुस्कुराई और आंखों के इशारे से उसने बृजमोहन को चोली के बन्द लगाने के लिए कहा।

बृजमोहन ने एक बार शीशे की तरफ देखा। अंगिया में फंसी हुई छातियों का बिम्ब उसे सुहावना लगा। बन्द लगाते हुए उसके हाथ छातियों की ओर रेंग गये। उई दइया बृजमोहन की पत्नी बल खा गई और बृजमोहन को अजीब कैफियत हो गयी उसने छातियों को जोर से दबा दिया। हाय राजा उसकी पत्नी कसमसाई और बृजमोहन की रगों में रक्तचाप बढ ग़या। उसने एक झटके में अंगिया नोंच कर फेंक दी और उसको पलंग पर खींच लिया। वह उससे लिपटी हुई पलंग पर गिरी और हंसने लगी।

बृजमोहन ने एक नजर शीशे की तरफ देखा। पत्नी के नंगे बदन का अक्स देखकर उसकी रगों में शोला सा भडक़ उठा उसने यकायक खुद को एकदम निर्वस्त्र कर दिया तब बृजमोहन की पत्नी उसके कानों में धीरे से फुसफुसाई - हाय राजा लूट लो भरतपूर.....

बृजमोहन ने अपनी पत्नी के मुंह से कभी उई दइया और हाय राजा जैसे शब्द नहीं सुने थे। उसे लगा ये शब्द नहीं सारंगी के सुर हैं जो नसीमजान के कोठे पर गूंज रहे हैं और तब।

और तब फिजा कासनी हो गयी थी। शीशा धुंधला गया था और सारंगी के सुर गूंजने लगे थे...

बृजमोहन बिस्तर से उठा, सिंगारदान की दराज से सुरमेदानी निकाली, आंखों में सुरमा लगाया, कलाई पर गजरा लपेटा और गले में लाल रूमाल बांध कर नीचे उतर गया और सीढियों के नीचे दीवाल से लग कर बीडी क़े लम्बे - लम्बे कश लेने लगा।