सिंदूरी / अन्तरा करवड़े

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"सिंड़ी ऽऽ..."


"जस्ट कमिंग!"


"सिंदूरी! उस लड़की ने किसी सिंड़ी को आवाज लगाई है । तुम क्यों इतनी फुर्ती दिखा रही हो?" मीता ने मुस्कुराते हुए पूछा।


"मम्मी! मेरा नाम वैसे भी आऊट ऑफ डेट है और तुम्हें क्या लगता है? "द" कहकर मेरे फ्रेंड़स अपनी एक्सेंट नहीं खराब कर सकते।"


और फिर वह अजीब सी तंग और छोटी पोषाख पहने बाहर आई और अपना ऑक्टोपॅड उठाकर चल दी। मीता उससे कहते कहते रह गई कि कहीं वह कुछ पहनना भूल तो नहीं गई है लेकिन बेकार। अपनी स्पोर्टस बाईक पर टाँग ड़ाले वह चौदह वर्ष की किशोरी स्वयं को बीस की दिखाती हुई अपनी ऐसी ही तीन सहेलियों के साथ चल दी।


मीता को एकदम से स्वयं के आऊट डेटेड हो जाने का एहसास होने लगा था। कितनी उमंगों के साथ उसने और शेखर ने उसके जन्म पर¸ सूरज की लालिमा से दमकते मुखमंड़ल को देख इसका नाम सिंदूरी रखना तय किया था। बड़ी प्रशंसा मिली थी दोनों को उसके नामकरण पर।


वही बेटी आज अपने नाम पर ही खुश नहीं है। उसने पिछले दिनों फोन पर होती उसकी बातचीत से यह अंदाजा लगाया था कि उनके स्कूल के क्लब में कोई पॉप कन्सर्ट होनी है जिसके लिये इसे ऑक्टोपॅड बजाना है। शायद आज वही कन्सर्ट होगा। यह कुछ भी तो बताती नहीं है आजकल।


मीता का सिर दर्द करने लगा । हमेशा की तरह अपनी पसंदीदा शास्त्रीय गायन की सीडी लगाकर वह बालकनी में कॉफी पीती खड़ी रही। वैसे भी सिंदूरी को ये सब कभी समझ में नहीं आता। कार्टून देखकर बचपन बिताया उसने और अब ब्रिटनी स्पीयर्स के साथ बड़ी हो रही है। काश कि उसे भारतीय संगीत की शिक्षा दी होती । कम से कम उसका व्यवहार तो सुधर जाता! लेकिन उसपर कोई दबाव नहीं डाला था मीता ने। अपनी रूचि के अनुसार ही स्वयं के निर्णय लेने दिये थे।


इस सोच में जाने कब दो घण्टे बीत गए मालूम ही नहीं पड़ा। सिंदूरी वापिस आ गई थी। शायद शास्त्रीय संगीत का ही असर था कि घर पर आते ही खाने और टीवी के लिये तूफान मचाने वाली लड़की आज शांति से अपने कमरे में चली गई।


थक गई होगी। मीता ने सोचा। फिर वह कपड़े बदलकर बाहर आई। मीता के पास शांत बैठ गई। धीरे धीरे उसकी आँखों से आँसू बहने लगे। मीता ने आश्चर्य के साथ उसका सिर गोदी में लिया। उसे सहलाते हुए प्यार से पीठ पर हाथ फेरा।


"मम्मी! इसे कोई हक नहीं है मेरा आईडियल बनने का।" कहकर उसने अपने गले में पहना हुआ अपने पसंदीदा पॉप स्टार का लॉकेट तोड़ फेंका।


"ये लोग हम इण्डियन्स को समझते क्या है मम्मी?" हम लोगों ने कितनी मेहनत के साथ अपने बैंड का परफॉर्मंस वहाँ भेजा था लेकिन उनका जवाब आया है कि वे इण्डियन्स को कितनी भी अच्छी टैलेंट के बावजूद मौका नहीं देंगे। ऐसा क्यों मम्मी!" सिंदूरी रूआँसी हो गई थी।


"तुम लोग जब उन्हीं की नकल करते हुए इस संगीत की कला को सीखते हो तब यह व्यवहार भी क्यों नहीं सीख लेते उनसे?" मीता का आवाज कड़वा हो चला था। तिहाई के साथ शास्त्रीय गायन का राग समाप्त हो चुका था।


मीता ने सिंदूरी को गुस्से से देखा।


"जब वे लोग ये देखते है कि तुम अपने देश की कला को हिकारत से देखते हो¸ तब विदेशी संगीत को क्या अपनाओगे? जिस ने अपने माँ बाप की कद्र नहीं की¸ उसकी पूजा कौन से देव स्वीकारेंगे?" मीता ने सिंदूरी को देखा¸ वह स्वयं को कटघरे में जरूर पा रही थी।


"मेरे ख्याल से उन्होने कोई गलती नहीं की है।" मीता ने अपने हाथ में एक चाबी ली और उसे सिंदूरी के हाथ में रखते हुए बोली¸ "और यदि तुम अपनी गलती सुधारना चाहती हो तो ये लो।"


उसने सामने के एक बड़े से खड़े बक्से की ओर इशारा किया। सिंदूरी ने उसे खोला और हठात्‌ उसके हाथ जुड़ गए। उस बक्से में था¸ उसकी दादी की संगीत साधना का जीवंत प्रतीक और साक्षी¸ एक तानपूरा।


और हाँ आजकल उसे स्वयं को सिंदूरी बुलाए जाने पर कोई आपत्ति नहीं है।