सिक्के का भभूत / अनीता चमोली 'अनु'
चंपकवन में कल्लू लोमड़ की ठगी बढ़ती ही जा रही थी। वह भोले-भाले जानवरों को आए दिन ठगता रहता था। एक दिन की बात है। चैपाल लगी थी। किसी ने मंहगाई की चर्चा शुरू की तो पूसी बिल्ली ने कहा-”मंहगाई बहुत बढ़ गई है। इससे बचने का कोई उपाय किसी के पास भी नहीं है।”
हाथी दादा बोले-”उपाय है। खर्च कम करो। पाई-पाई बचाओ। आज की बचत कल की सुरक्षा।”
बस फिर क्या था। कल्लू लोमड़ को ठगी सूझ गई। वह बोला-”हाथी दादा। मेरे पास भभूत है। मैं सिक्के से भभूत बना कर पूसी को मंहगाई से छुटकारा दिला सकता हूं।’ हाथी दादा को हंसी आ गई। वह बोले-”पगले। कितनी सरकारें आ गईं और चली भी गईं। लेकिन मंहगाई पर रोक नहीं लगा पाई। तेरी भभूत क्या काम करेगी।”
लेकिन पूसी बिल्ली कल्लू लोमड़ की बात सुनकर चौंक गई थी। वह कहने लगी-” कल्लू भाई। पैसे से भभूत ! सवाल ही नहीं होता। भला सिक्के से भभूत कैसे बन सकती है। जरा बताना तों “
कल्लू लोमड़ उछल कर बैठ गया। उसने कहा-”लगी पांच सौ-पांच सौ रुपये की शर्त ! हाथी दादा ये लो मेरे पांच सौ रुपए। यदि मैं सिक्के से भभूत नहीं निकाल पाया तो पांच सौ रुपए पूसी के हुए। अन्यथा पूसी मुझे पांच सौ रुपए देगी।”
पूसी कल्लू की मूर्खता पर जैसे हंस रही थी। उसने झट से पांच सौ रुपए निकाल कर हाथी दादा को दे दिए। हाथी दादा को भी मामला रोचक लगा। भूरी भैंस ने कहा-”मैं ध्यान से देखूंगी। कहीं कोई गड़बड़ न होने पाए।”
कल्लू लोमड़ ने जेब से बीस पैसे का सिक्का निकाला। आंखें बंद करते हुए अंगूठे और अंगुलियों से सिक्के को रगड़ने लगा। उसने सिक्के को मुट्ठी में कस कर जकड़ लिया था। थोड़ी देर बाद कल्लू लोमड़ कांपने का नाटक करने लगा। वह जोर-जोर से चिल्लाने लगा-”पूसी रे। ले भभूति। माथे पर लगा ले। तुझ पर मंहगाई की मार खत्म। पर हां। हाथी दादा को दिये तेरे पांच सौ रुपये मेरे हुए।”
हर कोई हैरान था कि कल्लू के हाथ में रखे सिक्के से राख चिपकी हुई थी और जो कुरेदने से निकलती ही जा रही थी। हाथी दादा ने कहा-”पूसी बिल्ली। मुझे दुख के साथ कहना पड़ रहा है कि तुम्हारे पांच सौ रुपये अब मुझे कल्लू को देने पड़ेंगे। वाकई। सिक्के से राख जैसी भभूत तो हम सभी ने देखी है।”
“ठहरो। ये पांच सौ रुपये पूसी के हैं और पूसी के ही रहेंगे। ठग विद्या से किसी की गाढ़ी कमाई छीनने का हक किसी को नहीं है।” पेड़ से फुदकती हुई सानी गिलहरी ने नीचे छलांग लगाते हुए कहा। यह सुनते ही कल्लू लोमड़ गुर्राया-”पिद्दी भर की सानी। एक ही वार में तेरा काम तमाम कर दूंगा मैं। तू मुझे ठग कह रही है।”
सनी गिलहरी हाथी दादा के कंधे पर जा चढ़ी। चिल्लाते हुए बोली-”तो ये ले। मेरे पास ये पांच रुपये का नया सिक्का है। अगर हिम्मत है तो इस सिक्के से भी भभूत निकाल कर दिखा। मैं पांच सौ रुपये दूंगी। नहीं तो तू एक हजार रुपये मुझे देगा। ये पकड़ पांच रुपये का सिक्का।” यह सुनकर कल्लू चुप हो गया। उसने नजरें झुका ली। हाथी दादा समझ गए कि कुछ गड़बड़ है। हाथी दादा ने कल्लू लोमड़ को अपनी सूंड में लपेट लिया। हवा में उछालते हुए कहा-”कल्लू सच-सच बता कि माजरा क्या है। नहीं तो मैं तेरी पसलियों का कचूमर निकालने वाला हूं।”
कल्लू कांपते हुए बोला-”बताता हूं दादा बताता हूं। सच-सच बताता हूं। पर पहले मुझे जमीन पर तो उतारो।” हाथी दादा ने कल्लू को जमीन पर ऐसे छोड़ा जैसे पका हुआ फल पेड़ से टपकता है।
कल्लू कराहता हुआ बोला-”मैंने पहले से ही उंगली पर मरक्यूरिक क्लोराइड का थोड़ा सा पावडर लगा रखा था। एल्यूमिनियम का सिक्का जेब से निकाला और पावडर उस पर रगड़ दिया। यह कोई जादू-मंत्र नहीं था। यह तो विज्ञान की एक रासायनिक क्रिया थी। मेरी बंद मुट्ठी हवा के न मिलने से गरम हो गई। एल्यूमिनियम और मरक्यूरिक क्लोराइड की प्रतिक्रिया से एल्यूमिनियम आक्साइड नामक पदार्थ बनता है। जिसे मैं भभूति का नाम देना चाहता था। लेकिन सानी ने मेरा सारा खेल बिगाड़ दिया। ये बात सही है कि सिक्का एल्यूमिनियम का ही होना चाहिए। हाय ! मुझे पांच सौ रुपए की चपत भी लग गई।”
यह सुनकर सब तालियां बजाने लगे। सानी ने हंसते हुए कहा-”तुम्हारे पांच सौ रुपए तुम्हें मुबारक हो। लेकिन आज के बाद किसी के साथ ठगी नहीं करोगे।” कल्लू कान पकड़ कर खड़ा हो गया। हर कोई सानी गिलहरी के लिए तालियां बजा रहा था।