सितारा आत्मकथाओं का फंडा / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :21 नवम्बर 2015
सुर्खियों में है कि ऋषि कपूर की 'आत्म कथा' लिखी जा चुकी है और अगले वर्ष प्रकाशित होगी। इस बाबत ऋषि कपूर से बात हुई तो उन्होंने कहा कि इस किताब को आत्म-कथा नहीं कहा जा सकता, क्योंकि इसमें उन्होंने अपने कॅरिअर,अनुभव और विविध फिल्मकारों के साथ काम करने के बारे में तथा परिवार के सभी सदस्यों के साथ बिताए वक्त के संस्मरण इत्यादि प्रस्तुत किए हैं। यह किताब यकीनन नसीरुद्दीन शाह की आत्म-कथा की तरह नहीं है, जिसमें नसीर ने बिना किसी बेहोशी की दवा के अपने अवचेतन की निर्मम चीरफाड़ की है। नसीर की आत्म-कथा सचमुच में आत्म-कथा है और वह अपने प्रति अत्यंत निर्मम रहे हैं। लेखन में आत्म-कथा लिखना अत्यंत कठिन काम है। प्राय: इस क्षेत्र में व्यक्ति अपनी उस छवि की कथा कहता है, जो स्वयं उसने सामाजिक व्यवहार के लिए गढ़ी है। यह बात सितारों की छवि के बारे में नहीं की जा रही है वरन् हर आम आदमी के बारे में कही जा रही है, क्योंकि छवियां सभी गढ़ते हैं, जिसके लिए निदा फाज़ली ने कुछ इस आशय की बात कही है कि हर एक में दस आदमी होते हैं गोयाकि व्यक्ति अलग परिस्थितियों में अलग-अलग लोगों के बीच अलग-अलग ढंग से स्वयं को प्रस्तुत करता है। रावण के दस सिरों की बात कही गई थी, उसके दस विधाओं का ज्ञानी होने के कारण। वह भविष्य भी पढ़ता था, रसायन में भी विशेषज्ञ था और मंत्र-तंत्र भी जानता था। इसमें निदा फाज़ली वाली बात भी लागू होती है।
यह गौरतलब हो सकता है कि भविष्य जानने वाले रावण ने सीता का अपहरण कर अपनी मृत्यु को क्यों न्योता दिया? इस बात को समझने के लिए हमें अमृतलाल नागर की 'मानस का हंस' की ओर ध्यान देना चाहिए। सर्वविदित है कि अपनी पत्नी से अत्यधिक मोह होने और पत्नी द्वारा यह कहे जाने पर कि इतना मोह राम के प्रति हो तो जीवन का कल्याण हो जाए, तुलसीदास पत्नी को छोड़कर चले गए। अनेक दशकों बाद अपनी मरणासन्न पत्नी से मिलने आए और उसे स्पष्ट कहा कि अपने कालखंड के प्रवीण भविष्यफल पढ़ने वाले दो लोग थे- एक वे स्वयं अौर दूसरी उनकी पत्नी। उनकी पत्नी ने तुलसीदास की कुंडली में स्पष्ट पढ़ा होगा कि यह व्यक्ति पत्नी को तन्हा छोड़कर चला जाएगा। फिर भी उसने विवाह किया, क्योंकि वह यह भी जान गई थी कि तुलसीदास सर्वकालीन महाकाव्य लिखेंगे और उनके अमरत्व का हिस्सा बनकर वह भी सदा याद रखी जाएगी। आज भी हम तुलसीदास का स्मरण करते ही उनकी विदुषी पत्नी रत्नावली को भी याद करते हैं। क्या इसी तरह सबकुछ जानकर भी रावण ने श्रीराम के हाथों मरने के लिए सीता का अपहरण किया और आज श्रीराम कथा का अविभाज्य अंग है रावण। किस नियत से कौन-सा काम किया जा रहा है, यह बताना कठिन होता है।
महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, चर्चिल इत्यादि अनेक नेताओं की आत्म-कथा में उस कालखंड का वर्णन बहुत विशद हुआ है। अत: ये आत्म-कथाएं इतिहास पढ़ने की तरह भी है। लेखिका प्रभा खेतान, मन्नू भंडारी, मैत्रेयी पुष्पा इत्यादि ने भी आत्म-कथाएं लिखी हैं और कुछ फूहड़ और अल्पज्ञानी आलोचकों ने उनके साहस से आतंकित होकर उन आत्म-कथाओं की आलोचना की है और एक तथाकथित प्रसिद्ध व्यक्ति ने उन्हें 'तवायफें' तक कहने की बेअदबी की है। सच्चाई यह है कि पुरुष किसी भी स्त्री के अवचेतन के सत्य से बचना चाहता है, क्योंकि उस दर्पण में उसे अपनी घिनौनी तस्वीर नज़र आती है। सदियों से पुरुष अपनी पैदाइशी कमतरी को छिपाता आया है। इससे मिलते-जुलते ब्रिजित बारदोत के आत्महत्या प्रयास पर सिनोन द ब्वॉ ने लिखा था कि जब कोई स्त्री बुर्जुआ प्रसाधनों को त्याग अपने स्वाभाविक सौंदर्य को बिना किसी आवरण के प्रकट करती है तो पुरुषों के अपनी कमतरी के भय विराट हो जाते हैं। बहरहाल आत्म-कथा लिखने का मतलब है स्वयं को सार्वजनिक मंच पर बिना आवरण के प्रस्तुत करना है। हरिवंश राय बच्चन भविष्य में संभवत: अपने काव्य के लिए नहीं वरन् अपनी आत्म-कथा 'क्या भूलूं क्या याद करूं,निर्णय का निर्माण फिर' के लिए जाने जाएंगे। सुना है कि इन किताबों के अंग्रेजी अनुवाद से कर्कल प्रकरण हटा दिया गया है। यह काम शायद भयभीत पुत्र ने किया है।