सितारा छवि छीन लेती है मनुष्य की सहज बुद्धि / जयप्रकाश चौकसे

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
सितारा छवि छीन लेती है मनुष्य की सहज बुद्धि
प्रकाशन तिथि : 10 मई 2018


अपनी प्रारंभिक फिल्मों की असफलता के बाद प्रकाश मेहरा की सलीम जावेद द्वारा लिखी फिल्म 'जंजीर' अमिताभ बच्चन को केवल इसलिए मिली, क्योंकि उस भूमिका को कई सितारों ने अस्वीकार कर दिया था। देव आनंद का कहना था कि नायक एक भी गीत नहीं गाता, सनक के सम्राट अभिनेता राजकुमार को पटकथा बहुत अच्छी लगी परंतु फिल्मकार प्रकाश मेहरा अपने बालों में चमेली का तेल लगाते थे, जो राजकुमार को सख्त नापसंद था। सलीम-जावेद को अमिताभ बच्चन की आंखों में क्रोध का भाव दिखा, जो संभवत: असफलता के कारण जन्मा था। बहरहाल, 'जंजीर' की सफलता ने अमिताभ बच्चन को सितारा बना दिया और अपने अनुशासन एवं परिश्रम से उन्होंने अनेक सफल फिल्मों में अभिनय किया और आज भी वे महत्वपूर्ण भूमिकाएं प्रभावोत्पादक ढंग से अभिनीत कर रहे हैं।

एक टीवी चैनल में अर्नब गोस्वामी ने उसी आक्रोश की छवि को अपनाकर बड़े-बड़े नेताओं को परेशान कर दिया। वे कभी निष्पक्ष नहीं थे और राहुल गांधी की छवि को खराब करने में उनका भी हाथ रहा है और इसके पीछे कुछ स्वयं राहुल का बचपना भी रहा है। अर्नब गोस्वामी को सितारा हैसियत मिल गई। सफलता के घोड़े पर सवार वे सरपट भागे जा रहे थे कि घोड़े ने ही उन्हें पटखनी दे दी। चक्र के भीतर चक्र घूमे और वे बाहर हो गए। अर्नब ने 'रिपब्लिक' नामक चैनल की स्थापना की परंतु वे पुराना जादू जगा नहीं पाए।

एक दौर में मुंबई के अखबार मिड-डे में 'बिजी बी' का कॉलम अत्यंत लोकप्रिय था। लेखक बहराम कॉन्ट्रेक्टर को सितारा हैसियत मिल गई। कालांतर में मिड-डे के संपादक से उनका मतभेद हुआ और उन्होंने इस्तीफा देकर अपना एक अखबार प्रारंभ किया, जो सफल नहीं हो पाया। मंच के महत्व को नकारते हुए सितारा छवि मनुष्य से उनकी सहज बुद्धि छीन लेती है। अर्नब गोस्वामी और बहराम कॉन्ट्रेक्टर के साथ भी यही त्रासदी घटित हुई। व्यक्तिगत प्रतिभा एक परम्परा से प्रेरणा लेकर अपने योगदान से उस परम्परा को ही सशक्त करते हुए आगे बढ़ती है। अध्यात्म की तलाश में ध्यान लगाने के लिए माला उंगलियों में घुमाई जाती है परंतु माला में गूंथा गया कोई मनका अहंकार में आकर माला से अलग हो जाए तो उसका कोई महत्व नहीं रह जाता। इसी तरह माला के सौ मनकों में एक मेरुमणी भी होता है, जो घुमाया जाता है पर उसे गिनती में शुमार नहीं किया जाता। गिनती में शुमार नहीं होने वाला मणी मेरुमणी कहलाता है, 'हम ब आलम बर किनार कुफनाद अम, चूं इमामे सबह बैरूं अज शुमार उफनद अम।' आज की निर्मम व्यवस्था में आम आदमी भी मेरुमणी की तरह हो गया है।

बहरहाल, 'जंजीर' का नायक अपने सपने में एक घुड़सवार देखता है। 'जंजीर' की प्रेरणा सलीम-जावेद को अंग्रेजी फिल्म 'डेथ राइड्स ए हॉर्स' से मिली थी और उसी को आदर देने के लिए यह दृश्य रखा गया था। यह भी मुमकिन है कि फिल्में देखने के शौकीन सलीम साहब को पुरानी फिल्म 'बाबुल' की याद आती रही, जिसके अंतिम दृश्य में एक घुड़सवार पेड़ से गिरकर मर जाने वाली हताश प्रेमिका को घोड़े पर बैठाकर अंतरिक्ष की ओर चला जाता है। पटकथा का घोंसला अलग-अलग जगहों से तिनके लाकर बनाया जाता है। यह फिल्म की व्याख्या करने वाले का काम है कि वह तिनकों की यात्रा से पाठक व दर्शकों को अवगत कराए परंतु इन भीतरी जानकारियों के न होने पर भी फिल्म सिर्फ इसलिए भी देखी जा सकती है कि वह मनोरंजक है।

ताज़ा खबर यह है कि अर्नब गोस्वामी के खिलाफ मामला दायर हुआ है। एक स्टूडियो का निर्माण किया गया, जिसके डिज़ाइनर को 83 लाख रुपए का भुगतान नहीं किया गया और उसने आत्महत्या कर ली। मृत्यु पूर्व एक कागज पर उसने अपनी आत्महत्या का कारण यही बताया है कि उसका भुगतान नहीं किया गया। रायगढ़ के पुलिस अधिकारी का कथन है कि आत्महत्या के पूर्व लिखे कागज में उसकी जायज राशि का भुगतान नहीं हो पाने का कारण उसने यह कदम उठाया है। आत्महत्या के समय लिखे पत्र में अर्नब गोस्वामी का नाम भी है। रिपब्लिक संस्था का कहना है कि सभी भुगतान किए जा चुके हैं। अर्नब की यात्रा के तीन पड़ाव रहे हैं। पहले में वे जंगल के शेर की तरह रहे, दूसरे में सरकस के शेर की तरह और तीसरे में बूढ़े शेर के सामने कैद होने का खतरा है।