सितारा पत्नियों के संकट / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :25 अप्रैल 2016
रीवा रियासत के अाला पुलिस अधिकारी करतार सिंह ने दो विवाह किए और उन्हें ग्यारह संतान प्राप्त हुईं। उनकी इस टीम ने जिंदगी के खेल को, उसमें पूरी तरह रमकर जिया और खेल भावना का निर्वाह ही उनकी यादगार ट्रॉफी रही। पहली पत्नी से उन्हें प्रेमनाथ, कृष्णा कपूर और राजेंद्रनाथ प्राप्त हुए और वे फिल्मों से जुड़े। दूसरी पत्नी से जन्मी पुत्री उमा प्रेम चोपड़ा की पत्नी हैं और पुत्र नरेन्द्रनाथ ने कुछ फिल्मों में खलनायक की भूमिका अभिनीत की। कृष्णा का जन्म 1 जनवरी 1930 को हुआ। कपूर और नाथ परिवार जिस धुरी पर घूमते हैं वह कृष्णा कपूर हैं। उनकी करुणा, दया और प्रेम ने परिवार के हर सदस्य को उसके संकट के समय सहारा दिया है।
मसलन, शम्मी कपूर अपनी पहली पत्नी गीता बाली के चेचक से असमय निधन के बाद बेइंतहा शराब पीकर दिशाहीन हो रहे थे। उस संकट में कृष्णा ने उन्हें सहारा दिया और उनका विवाह नीला देवी से कराया, जो सामंत वंश की कन्या है। नीला देवी ने अपने पति की पहली पत्नी गीता बाली की संतानों को अपनी संतान की तरह पाला और सौतेली मां से जुड़ी कहानियों को झूठा सिद्ध किया। प्राय: परिवारों की शक्ति स्तंभ महिलाएं हुई हैं। हमें मंदिर पर लहराते ध्वज तो दिखाई देते हैं परंतु आधारशिला देखना कठिन होता है। कृष्णा, सलमा सलीम खान और नीला देवी की तरह विरल महिलाओं का फरमा शायद ऊपरवाले ने उन्हें बनाकर तोड़ दिया है।
आम सद्गृहिणी महिला और सितारा पत्नियों की समस्याएं अलग-अलग होती हैं। आम गृहिणी की चिंता, महंगाई है और अपने बजट में पौष्टिक आहारयुक्त भोजन बनाना, बच्चों की पढ़ाई पर ध्यान देना प्रमुख हैं। पाठ्यक्रम इतने जटिल कर दिए गए हैं कि छात्र का होमवर्क माता-पिता को करना पड़ रहा है। छात्र को दिए गए प्रोजेक्ट माता-पिता बनाते हैं और वार्षिक फीस के बराबर ही खर्च इन प्रोजेक्ट के निर्माण में लग जाता है। इस तरह के अनावश्यक ताम-झाम में ऊर्जा का अवव्यय हो रहा है। सितारा पत्नियां इस तरह के कार्य से मुक्त हैं। सितारा पत्नी को अपने पति और उसकी नायिका के बीच चल रहा प्रेम प्रसंग बहुत दु:ख देता है। मीडिया भी इन्हें खूब उछालता है। सितारा संतान को भी स्कूल में इस तरह के प्रेम प्रसंग के कारण बहुत ताने-सुनना पड़ते हैं। गुरुदत्त की 'कागज के फूल' में नायक की बेटी इसी समस्या से त्रस्त है। फिल्म की त्रासदी इसी तनाव से जन्म लेती है। इस तरह के संकट में सितारा पत्नी के लिए यह आसान होता है कि वह संतान को अपने पति के खिलाफ खड़ा कर दे। कृष्णा कपूर ने यह नहीं किया और संतान को अपनी लड़ाई में शस्त्र नहीं बनाया वरन् संतान को पिता के सृजन कार्य पर गर्व करना सिखाया। उन्होंने 'राम-लखन' की मां की तरह अपने पुत्रों को शस्त्र के रूप में नहीं ढाला। राज कपूर के घर और स्टूडियो में बमुश्किल दो किलोमीटर का फासला है परंतु कृष्णा कपूर ने इन्हें दो अलग द्वीपों की तरह रखा। अपने घर को स्टूडियो नहीं बनने दिया और स्टूडियो को घर के अहाते में नहीं आने दिया। उन्होंने अपने घर-आंगन की तुलसी को अक्षुण्ण रखा और स्टूडियो में लगे वृक्ष के फल घर में नहीं आने दिए। यह उनके व्यक्तित्व का ही इस्पात था, जिसने राज कपूर को यह सुविधाजनक बयान देने का अधिकार दिया कि कृष्णा उनके बच्चों की मां और नरगिस उनकी फिल्मों की मां हैं।
राज कपूर तो नरगिस, पद्मिनी और वैजयंतीमाला से अलग होने के बाद भी फिल्में बनाते रहे। उनका पहला और एकमात्र प्रेम अपने काम से था और जीवन में घटे प्रेम-प्रसंग के अनुभवों और अनुभूति से उन्होंने अपनी फिल्मों को संवारा। मसलन, उनकी नरगिस से पहली मुलाकात को ही उन्होंने 'बॉबी' में पात्रों से अभिनीत कराया। 'जोकर' की तीन नायिकाएं उनके अपने जीवन के तीन प्रेम-प्रसंग हैं। उन्होंने अपनी सुविधा से तीन अंतर ये किए कि उनके अपने प्रेम-प्रसंगों में किसी ने उन्हें तजा नहीं। नरगिस के सुनील दत्त को लिखे एक पत्र की घटना को उन्होंने 'संगम' में इस्तेमाल किया। संभवत: सारे सृजन में आत्म-कथात्मक तत्व शामिल होते हैं। इनमें यथार्थ को कल्पना के तड़के के साथ प्रस्तुत किया जाता है।
हर कलाकार की सृजन प्रक्रिया प्याज की तरह होती है और आप उन पर पड़े प्रभावों के छिल्के उतारते जाइएऔर अंत में प्याज ही गायब हो जाता है। प्याज का सार छीलके वाले की उंगलियों को साबून से धो दें तो प्याज की गंध आपके विचार में समा जाती है। कोई गंध कभी पूरी तरह नष्ट नहीं होती। अौर टैल्कम पावडर की बौछार के बाद भी कायम रहती है। कुछ लोगों की गंध मादक होती है। मनुष्य भी हिरण की तरह अपनी नाभि से आती गंध की खोज में न जाने कहां-कहां भटकता है।