सितारा मेहनताना और कुंडली-योग / जयप्रकाश चौकसे

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सितारा मेहनताना और कुंडली-योग
प्रकाशन तिथि : 07 दिसम्बर 2018

अमेरिका की फोर्ब्स पत्रिका दुनिया भर के अमीर व्यक्तियों की वार्षिक कमाई के आंकड़े प्रकाशित करते हुए उनके क्रम को तय करती है। भारत के सलमान खान ने विगत वर्ष लगभग ढाई सौ करोड़ रुपए कमाए और विराट कोहली ने सवा दो सौ। भारत में लोगों को फिल्म और क्रिकेट का जुनून है और इन दो क्षेत्रों के शिखर व्यक्ति कमाई के मामले में भाई-भाई हैं। क्रिकेट और जीवन को भाग्य का क्षेत्र करार दिया गया है। यह हमारी असाधारण प्रतिभा है कि हमने इंसानी हौंसलों और प्रयासों को महत्वहीन करार देकर अपने पैदाइशी आलस्य और नल्लेपन को गरिमामय बना दिया है। बेचारे शैलेन्द्र आर्तनाद करते हैं कि 'आदमी है आदमी की जीत में यकीन कर, अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला जमीन पर'।

भाग्यवादी इसी अवधारणा पर गरीबी की चिट्‌ठी भी फाड़ देते हैं। जबकि गरीबी एक 'उत्पाद' है जिसे सुनियोजित ढंग से गढ़ा गया है। अमीरों की सेवा के लिए गरीबों का होना आवश्यकता है-बाजार में इस 'प्रोडक्ट' की भी बहुत मांग है। भाग्यवादी अवधारणा के आने से लोगों को रोजी-रोटी मिल गई। उन्होंने दावा किया कि वे भाग्य पढ़ सकते हैं, जबकि शैलेन्द्र कहते रहे 'चिठिया हो तो हर कोई बांचे, भाग ना बांचे कोय'। प्राय: भाग्य पढ़ने के विशेषज्ञ मनुष्य के भाग्य में कष्ट बताकर कुछ विधियों को बताते हैं। यह एक फलता-फूलता व्यवसाय रहा है। इसमें कई बार परोक्ष धमकियां भी शामिल की जाती हैं। दिल्ली रहने वाली समालोचक त्रिशा गुप्ता ने लिखा है कि राज कपूर की फिल्म 'बूट पॉलिश' में भिक्षा मांगने वाली धमकी देती है कि उसे भिक्षा नहीं दोगे तो तुम्हारा पिता बीमार हो जाएगा, अस्पताल के चक्कर लगाओगे, महंगी दवाई खानी होगी, तेरी नानी मर जाएगी, तुझे श्राद्ध पर खर्च करना होगा इत्यादि। एक लोकप्रिय कथा में धमकी है कि यह नहीं कराने पर उसके पति का जहाज डूब जाएगा इत्यादि। सारांश यह है कि धमकी देकर डरे हुए आम आदमी की मेहनत की कमाई को इस तरह लूटा जाता है।

आजकल इस्लाम से उदाहरण देना वर्जित कर दिया गया है परंतु ज्ञान व इल्म का धर्म से रिश्ता नहीं है। सतत पढ़ते रहना और विचार करते रहना मनुष्य का स्वाभाविक कार्य है। बहरहाल एक दौर में इस्लाम के अनुयायी भी भाग्य के पढ़ने का कार्य करते थे और प्रश्न कुंडली से समाधान करना भी बड़ा लोकप्रिय था। किवदंती यह है कि ग्रेब्रिल नामक पहुंचे हुए व्यक्ति ने एक बालक से पूछा कि ग्रेब्रिल कहां रहते हैं? वे उसकी परीक्षा ले रहे थे। बालक ने रेत पर ही प्रश्न कुंडली बनाई और कहा कि प्रश्न पूछने वाला ही ग्रेब्रिल है। इन तथ्यों के बावजूद इस्लाम में भाग्य बाचे जाने को प्रतिबंधित इस आधार पर किया गया है कि नजूमी (भाग्य बचने वाला) के काम में बहुत से अज्ञानी व धोखेबाज घुस आएंगे और आवाम ठगा जाएगा। अतः इसे प्रतिबंधित किया जाता है।

बहरहाल जमकर कमाई करने वालों की फेहरिस्त में नायिकाएं पुरुष सितारों से पीछे हैं। पुरुष केंद्रित व्यवस्था में यह तो होना ही था। वर्तमान की शिखर सितारा दीपिका पादुकोण और प्रियंका चोपड़ा अपने क्षेत्र में अग्रणी रहने के बाद भी पुरुष सितारों से कम आय अर्जित करती हैं जबकि छठे दशक में नरगिस और मीना कुमारी को अपने नायकों के बराबर पारिश्रमिक मिलता था। कभी वे नायक से अधिक मेहनताना भी प्राप्त करती थीं। 'मदर इंडिया' के प्रदर्शन के बाद दक्षिण भारत के एक निर्माता ने नरगिस को प्रस्ताव दिया है कि फिल्म निर्माण में व्यय होने वाले धन के बराबर ही उनका पारिश्रमिक होगा परंतु नरगिस अपने अभिनय नहीं करने के संकल्प पर डटी रहीं।

छठे और सातवें दशक में संगीतकार शंकर जयकिशन सितारों से अधिक पारिश्रमिक प्राप्त करते थे। रामानंद सागर 'आरजूalt39 फिल्म के लिए राजेंद्र कुमार के साधना को लेना चाहते थे। रामानंद सागर और राजेंद्र कुमार, साधना से मिले तो उसने यह मांग रखी कि उसे वही रकम दी जाए जो शंकर जयकिशन को दी जा रही है। रामानंद सागर को लगा कि नायक, नायिका और संगीतकार को 15 लाख रुपए देने पर उनका निर्माण बजट गड़बड़ा जाएगा। राजेंद्र कुमार ने अपना मेहनताना स्वयं ही घटाया ताकि निर्माता साधना की मांग पूरी करें। इस तरह 'आरजू' बनी और सफल भी रही। सलीम खान को भी कुंडली पर विश्वास है और वे स्वयं भी कुंडली पढ़ना जानते हैं। उनका कहना है कि हर मनुष्य का भाग्य निरंतर बदलता रहता है और सातवें वर्ष अवश्य ही परिवर्तन आता है परंतु शंकर जयकिशन की सफलता वाली कुंडली 21 वर्ष तक जारी रही है। उन्होंने 1949 में प्रदर्शित 'बरसात' से 1970 में प्रदर्शित 'मेरा नाम जोकर' तक सतत माधुर्य रचा।