सितारे, विज्ञापन फिल्में और नैतिकता? / जयप्रकाश चौकसे

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सितारे, विज्ञापन फिल्में और नैतिकता ?
प्रकाशन तिथि : 02 जुलाई 2014


खबर है कि एक तमाखूहीन पान मसाले के विज्ञापन के लिए शाहरुख खान ने 20 करोड़ रुपए का अनुबंध किया है और रणवीर सिंह ने 3 करोड़ रुपए एक कंडोम के विज्ञापन के लिए प्राप्त किए। उधर कंगना रनावत ने एक शादी में नृत्य के लिए तीन करोड़ रुपए के प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया है। विज्ञापन सितारों की कमाई का ऐसा जरिया है जिसमें उन्हें मात्र एक या दो दिन की शूटिंग करनी पड़ती है और फिल्म के लिए पचास दिन परिश्रम करना पड़ता है। अत: विज्ञापन फिल्मों में अपेक्षाकृत अधिक लाभ है परंतु विज्ञापन फिल्में उसी समय तक मिलती हैं जब तक सितारों की फिल्में लोकप्रिय हैं। फिल्म सितारों का विज्ञापन संसार में प्रवेश बलदेवराज चोपड़ा ने कराया जब उन्होंने अपनी सभी नायिकाओं से एक साबुन का विज्ञापन कराया परंतु वह मासूमियत का दौर था और नायिकाओं ने उनसे मेहनताना भी नहीं मांगा परंतु आज विज्ञापन अत्यंत सशक्त है और सितारों के बिजनेस मैनेजर निरंतर प्रयास करते रहते हैं क्योंकि उन्हें भी कमीशन मिलता है।

एक जमाने में स्वयं मैंने नैतिक मूल्यों के आधार पर सितारों के विज्ञापन फिल्मों में आने का विरोध किया था और हमारे दौर के राजकपूर, दिलीप कुमार तथा देव आनंद ने इस तरह के प्रस्तावों को अस्वीकार किया था। विदेशों के मर्लिन ब्रेंडो और सर लारेंस ऑलिवर ने उन शराब और सिगार के विज्ञापन प्रस्ताव अस्वीकृत किए थे जिनका सेवन वे करते थे। सितारों की सामाजिक जवाबदारी के आदर्श पर इनकी आलोचना की थी परंतु आज लगता है कि किसी भी व्यक्ति को अन्य किसी के नैतिक मूल्य या प्राथमिकताओं पर बात करने का अधिकार नहीं है और व्यक्ति की स्वतंत्रता के आदर्श के मानदंड पर भी यह उचित नहीं है। शाहरुख खान का कहना है कि फिल्म में अपने मेहनताने के लिए उन्होंने कभी कोई जिद नहीं की, केवल पटकथा और उसमें अपने अवसर के आधार पर निर्णय लिए तथा विज्ञापन फिल्मों की आय से उनका घर खर्च चलता रहा है। वे शादियों में भी धन के लिए नाचे हैं। कोई आश्चर्य नहीं कि वह संसार में दूसरे नंबर का धनाढ्य सितारा बन गया है। उसने विशेष प्रभाव इत्यादि सिनेमा से जुड़ी चीजों के लिए विशाल स्टूडियो खोला है तथा आधुनिकतम टेक्नोलॉजी का आयात किया है।

कंगना रनावत ने अपने अभिनय को नया आयाम देने के लिए राकेश रोशन की 'कृष तीन' में खलनायिका भूमिका की परंतु शादी में नाचने से उसके अभिनय में निखार नहीं आता, इसलिए उसने चंद घंटों में तीन करोड़ रुपए की आय को ठुकरा दिया और इसी कंगना ने बिहार के पासवान के पुत्र के साथ यह जानते हुए फिल्म अभिनीत की कि इसका कुछ नहीं होगा परंतु उसे तीन करोड़ रुपए का मेहनताना मिला जब उसे अन्य निर्माता पचास लाख से अधिक नहीं दे रहे थे। उस समय उसके लिए एक बड़ा फ्लैट खरीदना जरूरी था। सारांश यह कि जीवन में बदलते हालात में व्यक्ति अपने हित के लिए कुछ निर्णय बेमन से लेता है और किसी अन्य को इसकी आलोचना का अधिकार नहीं है। शाहरुख खान कैसे कितना धन कमाते हैं, इस पर एकमात्र उनका अधिकार है क्योंकि किसी भी तरह अर्जित धन से वे अय्याशी तो नहीं करते। आज इतनी बीमारियों के बावजूद अमिताभ बच्चन फिल्मों के साथ विज्ञापन करते हैं, सीरियल बनाते हैं- यह सब उनके अपने निर्णय के दायरे में आता है और किसी थोथे आदर्श की टेकडी़ पर खड़े रहकर यह फतवा जारी करने का किसी को अधिकार नहीं है कि इतना महान कलाकार सर मालिश का तेल बेच रहा है।

जब दशकों पूर्व शम्मी कपूर ने एक पान मसाले का विज्ञापन किया तब ज्येष्ठ भ्राता राजकपूर ने उन्हें आड़े हाथों लिया। शम्मी कपूर का कहना था कि उनका एक परिचित बीमार था और उसकी सहायता के लिए उन्होंने वह पान मसाले का विज्ञापन किया। शम्मी कपूर इतने अमीर थे कि बिना विज्ञापन किए भी अपने मित्र की सहायता कर सकते थे परंतु इस तरह के निर्णय व्यक्ति पर ही छोड़ देना चाहिए। काजोल ने अभी फरमाया कि सही और गलत से ज्यादा महत्वपूर्ण है मनुष्य का दया भाव। अनेक निर्णय मानवीय करुणा के आधार पर लिए जाते है परंतु रोजमर्रा के जीवन में लोग अपनी सुविधा की तराजू पर विकल्प तोलते हैं। अब यह बाजार की चतुराई है कि सुविधा को उन्होंने नैतिकता के पर्याय के रूप में खड़ा किया है।