सितारों का भी तो सामाजिक उत्तरदायित्व होता है... / जयप्रकाश चौकसे

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सितारों का भी तो सामाजिक उत्तरदायित्व होता है...
प्रकाशन तिथि :26 फरवरी 2018


प्रियंका चोपड़ा ने नीरव मोदी की हीरा जवाहरात की कंपनी के विदेशों में प्रचार का प्रतिनिधित्व का काम छोड़ दिया है। यह कार्य उन्होंने नीरव मोदी द्वारा भारत सरकार और जनता को करोड़ों का चूना लगाने का कांड उजागर होने के नौ दिन बाद किया है। देरी का यह कारण है कि वे विगत दिनों निरंतर यात्रा कर रही थीं। क्या सितारे विज्ञापन करने के पहले उस वस्तु की प्रामाणिकता की जांच करते हैं? उन्हें यह जांच करनी चाहिए। ज्ञातव्य है कि दिलीप कुमार, राज कपूर, देव आनंद और उनके दौर के किसी भी सितारे ने विज्ञापन फिल्मों में काम नहीं किया। इंग्लैंड के कलाकार सर ऑलिवर ने तो उस चुरूट का विज्ञापन करने से इनकार किया, जिसका सेवन वे स्वयं करते थे और उस ब्रैंड की गुणवत्ता कई बार जांची परखी गई थी।

पहली प्रतिभा तिकड़ी की तरह धर्मेंद्र, मनोज कुमार और राजेन्द्र कुमार ने भी विज्ञापन फिल्मों में काम नहीं किया। मौजूदा दौर के शाहरुख खान का कहना है कि उन्होंने फिल्म अभिनय के मेहनताने की कभी परवाह नहीं की और घर खर्च केवल विज्ञापन से ही चलता रहा है। आमिर खान विज्ञापन फिल्मों से दूर रहने का प्रयास करते हैं। सितारों की लोकप्रियता के कारण वे युवा पीढ़ी को प्रभावित करते हैं और उनका अनुकरण भी किया जाता है। इस बाजार के दौर में विज्ञापन महत्वपूर्ण हो गए हैं। यहां तक कि हुक्मरान भी विज्ञापन द्वारा उस विकास के होने को सिद्ध कर रहे हैं, जिसने केवल हानि पहुंचाई है। जिस प्रांत में किसान मारे गए और परीक्षा घोटाले व्यापम ने छात्र जगत में भूकम्प ला दिया, वह प्रांत भी पांच पूरे पृष्ठों का विज्ञापन देता है। सारी संरचना ने एक वैकल्पिक संसार की रचना कर दी है। कहीं ऐसा न हो कि जिस वैकल्पिक संसार में हम जी रहे हैं, उसी में हमारी मौत भी हकीकत नहीं होकर एक अफसाना बन जाए।

इस अजीबोगरीब दौर में एक संस्थान गाय का इतना घी बेच रहा है, जितना गायें दूध नहीं देतीं। विज्ञापन द्वारा गंजे को कंघा और एस्किमो को बर्फ बेची जा सकती है। महानगरों में एक कंपनी बर्फ बेचती है और उसका दावा है कि पीने के पानी को वॉटर फिल्टर से निकालने के बाद उसे उबाला जाता है और फिर ठंडा करके उसकी बर्‌फ बनाई जाती है। श्रेष्ठि वर्ग के लोग अपनी शराब और पेय में यही 'यज्ञोपवीत बर्फ' का इस्तेमाल करते हैं ताकि उन्हें कोई रोग न लगे। इस तरह के तामझाम करने वाले लोक इस तथ्य से अनभिज्ञ हैं कि महानगरों में ही झोपड़पटि्टयां बसी हैं और किसी दिन कोई वायरल रोग इन स्थानों से निकलकर श्रेष्ठि वर्ग की संगमरमरी हवेलियों में घुस जाएगा। हवेलियों में तैनात सशस्त्र सुरक्षा दल बीमारियों को नहीं रोक सकता।

यह सितारों और श्रेष्ठि वर्ग के हित में है कि वे अपने असीमित खजानों और साधनों से समाज में स्वच्छता और समानता लाने का प्रयास करें। मौजूदा विराट आर्थिक खाई से न केवल अपराध जन्म लेते हैं वरन् बीमारियों के फैलने का भय भी बना रहता है। इस मुद्‌दे का एक पक्ष यह भी है कि एक रुपए निर्माण मूल्य की वस्तु के लुभावने पैकिंग पर भी उतना ही खर्च आता है। इस लागत में विज्ञापन व्यय बाद में जोड़ा जाता है।

इसके बाद वितरण व्यवस्था का खर्च जुड़ता है और एक रुपए लागत का माल बाजार में पंद्रह रुपए में ग्राहक को बेचा जाता है। चार आने मूल्य के नमक को सफेद बनाने की प्रक्रिया में न केवल खर्च आता है वरन् उसका पोषक तत्वों संबंधी मूल्य भी कुछ हद तक क्षतिग्रस्त होता है और चौदह रुपए में ग्राहक को नमक मिलता है। महात्मा गांधी ने नमक बनाने के अधिकार के लिए एक आंदोलन किया था। आज तो विज्ञापन जगत ही हुक्मरान का भी निर्माण करता है। क्या यह संभव है कि कोई साहसी निर्माता यह बयान दे कि वह अपने माल का विज्ञापन नहीं करेगा और आकर्षक पैकिंग के बदले सादगी अपनाकर वस्तु ही कम दामों में उपलब्ध कराएगा तो बाजार में क्रांति आ जाएगी? बाजार के कालखंड में क्रांति भी बाजार ही के रास्ते आ सकती है।