सितारों का मेहनताना और मेहनतकश का फजीता / जयप्रकाश चौकसे

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सितारों का मेहनताना और मेहनतकश का फजीता
प्रकाशन तिथि : 18 जुलाई 2018

पचास पार के तीनों खान के साथ ही पचास के निकट पहुंच रहे अजय देवगन और अक्षय कुमार सिनेमाघरों में भीड़ जुटाने वाले सितारे हैं,जबकि भारत की जनसंख्या में युवा वर्ग पचास प्रतिशत के करीब है। इसका कारण यह है कि सिनेमा के परदे पर दर्शक मनोरंजन चाहता है। उसे इस बात से कोई लेना-देना नहीं है कि उसे मनोरंजन देने वाले की आयु क्या है। आप भोजन करने बैठते हैं तो भोजन परोसने वाले की उम्र नहीं देखते। आपकी इच्छा स्वादिष्ट भोजन करने की है। आजकल भोजन में पौष्टिक तत्व के प्रति भी लोग जागरूक हैं। भोजन के प्रति दो दृष्टिकोण हैं। कुछ लोग ढेर-सा भोजन भकोसना चाहते हैं और अपने पेट को गोदाम समझते हैं। इनमें कुछ पेट को गैरेज या अटाला भी समझते हैं। दूसरा दृष्टिकोण है स्वाद चखने वालो का। ये लोग थोड़ी-सी मात्रा में सभी चीजें चखना चाहते हैं। स्वाद हमेशा केंद्र रहा है। इसी तरह दर्शक भी दो वर्ग में बंटे हैं। फिल्में भकोसने वाले और फिल्में चखने वाले वर्ग होते हैं। फिल्मों का स्वाद होता है, मीठी, तीखी और चटपटी। फिल्मों की उंगलियां भी होती हैं और वे दर्शक को गुदगुदी करती हैं। 'चलती का नाम गाड़ी,' 'पड़ोसन' व 'अंगूर' दर्शक को आज तक गुदगुदा रही है।

फिल्मों का वर्गीकरण बहुत कठिन है, क्योंकि कुछ फिल्में दर्शक के सोचने के ढंग को ही बदल देती हैं। कुछ अवचेतन में हमेशा के लिए चस्पा हो जाती हैं। इस बात को समझने में ये पंक्तियां मदद कर सकती हैं, 'लकड़ी जल कोयला भई, गोयला जल राख हुआ मैं ऐसी जली कि न कोयला बनी न राख।' कुछ फिल्मों की सिगड़ी दर्शक के अवचेतन में हमेशा धधकती रहती है। फिल्म को नशा भी माना जा सकता है और कुछ नशे ऐसे होते हैं कि हैंगओवर कभी उतरता ही नहीं।

बहरहाल, अजय देवगन 'तानाजी' 'चाणक्य' और फुटबॉल कोच सैयद अब्दुल रहीम का बायोपिक बनाने जा रहे हैं। तानाजी शिवाजी महाराज के साथी थे और बहुत साहसी योद्धा थे। इसके साथ ही अजय देवगन 'चाणक्य' भी अभिनीत कर रहे हैं। ज्ञातव्य है कि राजनीति ‌विषय पर चाणक्य की लिखी किताब का नाम 'अर्थशास्त्र' है। अर्थशास्त्र हमेशा राजनीति की दिशा तय करता रहा है। वर्तमान में तो बाजार ही निर्णायक है। सारे युद्ध बाजार की ताकतों ने ही कराए हैं। आज के बाजार ने तय किया है कि कोई युद्ध नहीं कराए और शत्रु देश को मंडी में पटखनी दें। चीन की बनाई वस्तुएं सभी देशों में खरीदी जा रही है। चतुर व्यापारी 'मेड इन चाइना' का लेबल निकालकर 'मेड इन इंडिया' का लेबल लगा देता है। चीन में बहुत-सी वस्तुओं पर अब उन्होंने लेबल लगाना ही बंद कर दिया है। चीन के वर्तमान शासकों ने सबसे बड़ा उलटफेर यह किया है कि माओ वादी साधनों का इस्तेमाल करके पूंजीवाद को लक्ष्य बना दिया है। यह भी मुमकिन है कि पूंजीवादी लक्ष्य भी महज एक लेबल ही हो, क्योंकि लाल रंग से लोग भय खाते हैं। मनुष्य भी कमाल है कि लहू के रंग से राजनीति में खौफ खाने लगता है। अमेरिका के 'व्हाइट हाउस' में रहने वाले का खून भी लाल रंग का ही और कहने वाले तो यह भी कहते हैं कि अमेरिका में हुए चुनाव को रूस ने प्रभावित किया है। मतदान के समय प्रचार हुआ कि हिलेरी क्लिंटन को रूस से सहायता प्राप्त हो रही है, जो बाद में सफेद झूठ साबित हुआ। वर्तमान में तमाम हुक्मरानों पर लेबल कुछ लगा है और माल कुछ और है। करेले भी शहद में पकाए जा रहे हैं और कीमे वाले डोसे भी बिक रहे हैं। परतदार पराठे हमेशा ही बनाए जाते रहे हैं।

मनोरंजन जगत में भी खलनायक का बायोपिक जमकर व्यवसाय कर रहा है। यह दौर ही सच्चे झूठ और झूठे सच का है। एक सरकारी दफ्तर में चपरासी के पद के लिए आवेदन करने वालों में अनेक स्नातक और एमए पास लोग भी थे। बेरोजगारी पर भी नया लेबल चस्पा किया जा सकता है। मनोरंजन क्षेत्र में पचास पार और पचास के अनकरीब नायक निरंतर सफलता साध रहे हैं। कहावत भी है कि मर्द की उम्र नहीं उसकी कमाई देखी जाती है परंतु औरत की हमेशा उम्र ही जाने क्यों देखी जाती है। यह भी काबिले गौर है कि दीपिका पादुकोण, प्रियंका चोपड़ा और कैटरीना कैफ भी कमसिन नहीं है और आज तो वे भी पुरुष सितारों की तरह मेहनताने के नाम पर फिल्म की कमाई का हिस्सा मांग रही हैं। इस तरह इस अजब दौर में निर्माता का लाभांश ही सबसे कम हो गया है। इसी तरह मेहनतकश मजदूर और बैलों की तरह जुते किसान अल्पतम धन पा रहे हैं। कहीं ऐसा न हो कि जीवन और पृथ्वी जिस धुरी पर घूम रही है, वही करवट बदल ले।