सितारों का रहस्य और नेताओं का झूठ / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 12 अक्टूबर 2018
जिन देशों में फिल्में बनती हैं, उन देशों के राजनीतिक विश्वास अलग-अलग होते हुए भी एक बात समान है कि सितारों की लोकप्रियता अवाम में जुनून जगाती है। फिल्में बनाने का फॉर्मूला हो सकता है परंतु किसी का सितारा होना रहस्यमय बना रहता है। नेताओं की लोकप्रियता जुगाड़ और तिकड़म से रची जाती है। उनके दल के लोग मुफ्त भोजन और नकद देकर भीड़ जुटाते हैं। मध्य प्रदेश की स्कूली बसों में लोभ-लालच देकर लोग बुलाए। उन बसों का भाड़ा दिया गया या नहीं, इससे भी अधिक भयावह बात यह है कि बच्चों की पढ़ाई का नुकसान हुआ। बोफोर्स सरकार गिरा देता है, व्यापमं सरकार को मजबूत बना देता है। अजब-गजब अवाम कुछ भी कर सकता है।
साम्यवादी चीन में फिल्म सितारा बिंगबिंग उस रहवासी क्षेत्र में रही हैं जहां केवल शिखर नेताओं के भव्य बंगले हैं और उनकी फिल्मों में एक भी दृश्य ऐसा नहीं होता, जिसमें उनके शरीर का कोई अंग खुला नज़र आए। चीनी व्यक्तियों की नाक की तरह चीनी नायिकाओं के वक्ष को सपाट दिखाना अनिवार्य है। वक्ष दिखाने से राष्ट्रीय नाक कट सकती है और नाक कट जाने को चीन में भारतीय कहावत की नाक कटने की तरह नहीं माना जाता। एक दौर में बिंगबिंग लंबे समय के लिए किसी अनजान जगह चली गईं। उनके इस वनवास के बारे में तरह-तरह की अफवाहें हैं। भारतीय कलाकार मंदाकिनी भी 'राम तेरी गंगा मैली’ की सफलता के बाद कुछ समय के लिए आवाम को नज़र नहीं आई। अफवाह यह उड़ी कि संगठित अपराध सरगना दाऊद ने उन्हें अपने हरम में शामिल कर लिया था। कुछ समय पश्चात मंदाकिनी को बेंगलुरू में देखा गया परंतु इसकी पुष्टि नहीं हो पाई।
राजेश खन्ना ने अपने शिखर दिनों में अपनी पत्रकार देवयानी चौबल से कहा कि वे अभिनय से संन्यास लेने का विचार कर रहे हैं। जब उनके मन में इस तरह का विचार आया तब संभवत: वहां मौजूदा अदृश्य यक्ष ने कह दिया 'तथास्तु’ और धूमकेतु की तरह उदित होने वाले राजेश खन्ना की फिल्में लगातार असफल होने लगीं और उनका संन्यासी विचार सत्य सिद्ध हो गया। फिल्म कलाकार की सितारा हैसियत जाते ही वह स्वयं को निर्वस्त्र सा दिखने लगता है और गुमनामी के अंधेरे उसे लील लेते हैं। नेताओं और अभिनेताओं की खुराक होती है तालियां और तालियां नहीं बजे तो उन्हें लगता है कि वनवास काट रहे हैं। बिंग-बिंग ने एक साक्षात्कार में कहा था कि उसके माता-पिता भी अभिनय करना चाहते थे परंतु उनके सितारा स्वप्न माओ की सांस्कृतिक आंधी में तिनके की तरह उड़ गए। राजनैतिक वैचारिक आंधियां कुछ निर्माण करती हैं परंतु बहुत कुछ नष्ट भी कर देती हैं। याद आती है दुष्यंत कुमार की पंक्तियां 'चीड़ वनों में आंधियों की बात मत कर, दरख्तों के बहुत नाजुक तने हैं। बाढ़ की संभावनाएं सामने हैं और नदियों के किनारे घर बने हैं' अगला आम चुनाव भी एक प्रायोजित आंधी की तरह होगा, अवाम के घर हमेशा एक काल्पनिक नदी के किनारे बने होते है। विगत आम चुनाव में प्रचार का खर्च पांच हज़ार करोड़ कहा जाता है। इस बार यह 15 हज़ार करोड़ तक जाने की संभावना है। मास कम्यूनिकेशन पाठ्यक्रम पढ़ाने वाली संस्थाओं में प्रवेश के लिए छात्रों की लंबी कतारें लगी हैं। हवाई जहाज में उड़ते हुए इन कतारों को देखें तो लगता है कि रहस्यमय इबारत है। जाने समय किस पटल, किस ब्लैक बोर्ड पर क्या लिखता है। हमारी प्रियंका चोपड़ा की तरह बिंगबिंग ने भी कुछ हॉलीवुड फिल्मों में अभिनय किया है। हॉलीवुड पूरी दुनिया में लोकप्रिय सितारों पर नज़र रखता है। वहां के स्टूडियो में इस काम के लिए एक विभाग होता है। अमेरिका में भारतीय मूल के अनेक लोग बसे हैं। अतः हॉलीवुड फिल्मकार भारतीय सितारे का चारा डालता है। सिनेमाई सफलता साधना एक व्यवस्थित विज्ञान बन चुका है। यह भी गौरतलब है कि बिंगबिंग का टेलीविजन सीरियल 'एम्प्रेस ऑफ चाइना’ अत्यंत लोकप्रिय हुआ था। चीन और भारत के इतिहास में एक समानता यह है कि दोनों जगह आपसी द्वंद्व बहुत हुए हैं। चीन ने अपने सामंतवादी इतिहास से मुक्त होकर वामपंथ को अपनाया और भारत ने अंग्रेजी दासता से मुक्ति पाकर गणतांत्रिक व्यवस्था को चुना परंतु हमारे गणतंत्र में आज भी सामंतवादी व्यवस्था नज़र आती है जैसे चीन ने साम्यवादी तौर-तरीकों से पूंजीवाद को साधना पसंद किया। सितारों के लिए अपने इर्द-गिर्द रहस्य का भरम बनाए रखना आवश्यक होता है। हमारी सुचित्रा सेन ने अपने को खूब रहस्यमय में बनाए रखा। जब उन्हें दादासाहब फालके पुरस्कार देने की घोषणा हुई तब भी उन्होंने दिल्ली आकर पुरस्कार लेने से इंकार कर दिया। हॉलीवुड की इनग्रिड बर्गमन ने भी अपने जीवन को रहस्यमय बनाए रखा। राजनेता सारा समय अभिनय करते हैं। अतः सारे देश के लोकप्रिय कलाकारों को एक राजनीतिक दल बनाना चाहिए। बिंगबिंग, टॉम अल्टर, प्रियंका, आमिर इत्यादि सभी साथ हो जाए और मानवता को बचाने का प्रयास करें।