सितारों की प्रतिस्पर्द्धा और फिल्मकार की योग्यता / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :21 फरवरी 2017
सितारों की आपसी प्रतिस्पर्द्धा से मीडिया को मसाला मिल जाता है और अवाम भी चटखारे लेकर इन खबरों का मजा लेता है। किसी दौर में दिलीप कुमार बनाम राज कपूर की प्रतिस्पर्द्धा मसालेदार थी परंतु अपने यथार्थ जीवन में दोनों गहरे मित्र होते हुए भी एक-दूसरे से बेहतर काम के लिए जुटे रहते थे। बाद के दौर में धर्मेंद्र बनाम अमिताभ बच्चन के बीच प्रतिस्पर्द्धा ने खबरों को जन्म दिया और विगत दो दशकों से तीनों खानों के बीच आपसी प्रतिस्पर्द्धा से सुर्खियां बनती हैं। आमिर खान ने 2000 में 'लगान' बनाकर सबको अचंभित कर दिया। आमिर खान ने 2008 में 'गज़नी,' 2009 में 'थ्री इडियट्स,' 2013 में 'धूम,' 2014 में 'पीके' अौर विगत वर्ष 'दंगल' देकर दर्शकों की प्रशंसा पाकर बॉक्स ऑफिस पर आय के कीर्तिमान बनाए। आय कमाने के मामले में सलमान खान 'बजरंगी भाईजान' के साथ दूसरे नंबर पर हैं परंतु शाहरुख खान अभी इन दोनों से बहुत पीछे हैं । उसकी 'दिल वाले दुल्हनिया' और 'डर' इत्यादि के दौर में सिनेमा के टिकिट सस्ते थे और विदेश क्षेत्र जहां वे लोकप्रियता के शिखर पर थे, भी इतना विस्तार नहीं पा सका था, जितने विगत दस वर्षों में प्रतिवर्ष बढ़ता जा रहा है। अत: वे अपने समकालीन सितारों से बहुत पीछे हैं गोयाकि इस बॉक्स ऑफिस बादशाह का खजाना पूरी तरह से भरा हुआ नहीं है। वे प्रतिस्पर्द्धा को अधिक गंभीरता से लेते हैं, अत: उनके दिल में मलाल तो होगा।
वर्ष 1961 में राष्ट्रीय पुरस्कार समारोह से राज कपूर और ऋषिकेश मुखर्जी लौट रहे थे। मुखर्जी महोदय को 'अनुराधा' के लिए स्वर्ण पदक मिला था और राज कपूर की 'जिस देश में गंगा बहती है' को हिंदी भाषा की फिल्मों की श्रेणी में पुरस्कार मिला था। राज कपूर ने मुखर्जी मोशाय को बधाई दी तो उन्होंने कहा कि यह पुरस्कार आप ले लें और इसके बदले मुझे अपनी फिल्म के किसी भी एक सिनेमाघर से प्राप्त रकम दे दें। सिनेमा क्षेत्र में बॉक्स ऑफिस से प्राप्त आय का महत्व सबसे अधिक है। एक बार 'माया मेम साहब' और अपनी अन्य सार्थक फिल्मों के लिए प्रसिद्ध केतन मेहता के घर खाकसार दोपहर भोज के लिए आमंत्रित था। उनके कक्ष में 'गंगा जमुना,' 'मुगल-ए-आजम,' और 'आवारा' के पोस्टर लगे ते। अपनी सोद्द्ैश्य कला फिल्मों के लिए प्रसिद्ध फिल्मकार के घर व्यावसायिक फिल्मों के पोस्टर देखकर विस्मय हुआ तो केतन मेहता ने कहा कि ये फिल्में उनका आदर्श हैं परंतु इतनी भव्य आय वाली सार्थक फिल्में बनाना उनके लिए संभव नहीं है। वे अपनी 'मिर्च मसाला,' 'भवनी भवई' और 'माया मेम साहब' से ही प्रसन्न है, क्योंकि उन्हें इसी तरह की फिल्में बनाना आता है और वे जानते हैं कि वे कभी 'मदर इंडिया,' 'गंगा जमना' या 'आवारा' जैसी सामाजिक प्रतिबद्धता के साथ बॉक्स ऑफिस पर रिकॉर्ड बनाने वाली भव्य फिल्म नहीं बना पाएंगे। सारांश यह कि केतन मेहता अपनी कलात्मकता और उसकी सीमित आय के दायरे में ही रह सकते थे और वे मुतमइन भी थे। यह बात केतन मेहता ने अपने कटु अनुभव से सीखी थी। सुपर सितारे शाहरुख खान के साथ उन्होंने प्रयास किया था परंतु उस फिल्म को ना सार्थक फिल्म के रूप में स्वीकार किया गया और न ही वह बॉक्स ऑफिस पर कामयाब हुई।
यह ठीक है कि अपनी योग्यता के दायरे में ही सक्रिय रहना चाहिए परंतु मनुष्य अपनी महत्वाकांक्षा के घोड़े पर सवार अनजान क्षेत्रों को खोजने अवश्य जाता है और अगर यह भावना नहीं होती तो आज भी हम पाषाण युग में होते और शिकार आधारित जीवन जीते। अपने जन्म और हालात के ऊपर उठने का जज़्बा ही प्रगति का आधार स्तंभ होता है। इसी तरह निष्णात निर्देशक अपनी फिल्म को अपनी पटकथा से भी ऊपर ले जाने का प्रयास करते हैं। मसलन रमेश सिप्पी की 'शोले' की पटकथा में अमिताभ का भैंसे पर सवार होने का दृश्य नहीं लिखा था। इसी तरह अमिताभ बच्चन रात में माउथ आर्गन बजा रहे हैं और ठाकुर की हवेली की खिड़कियों में बारी-बारी से रोशनी बुझाई जा रही है और एक खिड़की में जया खड़ी है। ऐसा आभास होता है मानो खिड़की ी फ्रेम में कोई तस्वीर जड़ी है।
'संगम' की पटकथा के परे एक दृश्य व संवाद की रचना लोकेशन पर ही की गई। राज कपूर और वैजयंतीमाला विवाह के बाद हनीमून यूरोप में मना रहे हैं। राज कपूर के बार-बार इसरार करने पर उनके परम मित्र राजेंद्र कुमार बड़े संकोच के साथ वहां आते हैं। एकांत में वैजयंतीमाला उन्हें वहां आने के लिए उनकी आलोचना करती है। ज्ञातव्य है कि विवाह पूर्व वे एक-दूसरे से प्रेम करते थे। एक संवाद है कि 'विवाहित स्त्री का जीवन रंगों की लकीर (इंद्रधनुष) की तरह होता है, जो खेले तो तूफान में और मिटे तो जैसी थी ही नहीं।' इस संवाद के बोले जाने के समय दृश्य में एक इंद्रधनुष का प्रतिबिंब जलप्रपात पर नज़र आता है।
सारांश यह कि सिनेमा निर्देशक का माध्यम है और फ्रांस के समालोचक निर्देशक को ही फिल्म का लेखक भी मानते हैं। इसे सिनेमा शास्त्र की किताबों में 'अतियर (ऑथर) थ्योरी' कहते हैं। इस प्रकरण में गौरतलब यह है कि भारत के महान फिल्मकार शांताराम, मेहबूब खान और राज कपूर ने पारम्परिक शिक्षा नाम-मात्र की ही पाई थी परंतु अपने माध्यम सिनेमा में वे पारंगत थे। इसका यह अर्थ कतई नहीं कि शास्त्र का पारम्परिक अध्ययन करना ही नहीं चाहिए। सिनेमा और अभिनय पढ़ाए नहीं जा सकते परंतु पढ़े जा सकते हैं।