सितारों केे प्रशंसकों का छाया युद्ध / जयप्रकाश चौकसे

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सितारों केे प्रशंसकों का छाया युद्ध
प्रकाशन तिथि :13 जून 2015


सलमान खान ने अपने प्रशंसकों से कहा है अगर वे शाहरुख, आमिर या अन्य किसी के खिलाफ गुटबाजी करेंगे और उनके 'तथाकथित शत्रुओं' के खिलाफ इंटरनेट पर युद्ध छेड़ेंगे तो वे इस क्षेत्र से दूर चले जाएंगे। टेक्नोलॉजी द्वारा रचे वैकल्पिक छाया संसार प्रशंसकों के गुट अपने प्रिय सितारे के प्रशंसकों के फर्जी आंकड़े प्रस्तुत करके कुछ इस तरह पेश आ रहें हैं मानो फर्जी आंकड़ों के हथियारों से युद्ध करने जा रहे हैं।

मौजूदा प्रकरण इस तरह शुरू हुआ कि सलमान की नई फिल्म 'बजरंगी भाईजान' के ट्रेलर को अधिकतम लोगों ने सराहा, इस पर शाहरुख व अामिर के प्रशंसकों ने आंकड़ों से जवाबी हमला किया। यथार्थ यह है कि स्वयं शाहरुख एवं आमिर ने सर्वप्रथम इस ट्रेलर की प्रशंसा की है। एक पुरानी कहावत है कि तवायफ सुधरना भी चाहे तो दलाल उसे ऐसा नहीं करने देते। यहां इन भव्य सितारों को तवायफ नहीं कहा जा रहा है अन्यथा इस अनावश्यक युद्ध की दिशा मेरी ओर हो जाएगी। कुछ दिन पहले ही अपने कॉलम 'भव्य सितारे एक ही फिल्म में काम क्यों नही करते', में मैंने प्रशंसकों की खेमेबाजी की बात लिखी थी।

एक सरल बात यह है कि आप किसी एक की प्रशंसा करते हुए भी दूसरे के शत्रु नहीं हो जाते। प्रशंसा जैसे भाव पर युद्ध करने की आवश्यकता नहीं है। दुश्मन का दुश्मन हमारा दोस्त होता है, यह बात ही गलत है। आप किसी मित्रता का मानदंड ऐसे नहीं बना सकते। इजरायल इस्लामिक देशों का दुश्मन है, इसलिए उससे मित्रता करने का कोई खास अर्थ नहीं है। इजरायल की अन्यायपूर्ण स्थापना से ही आतंकवाद का प्रारंभ हुआ है, जो अब विराट स्वरूप ले चुका है, क्योंकि वह बिना शोर मचाएं ही एक सुगठित व्यवसाय में बदल चुका है।

गुटबाजी में जातिवाद मिलकर खौफ और खाप बन जाता है। दरअसल, हर क्षेत्र में गुटबाजी है और खेमे बन गए हैं। यह प्रवृत्ति मनुष्य को भेड़ों का झुं़ड बनाने के वृहद षड्‌यंत्र का ही एक हिस्सा है। जंगल में भी कमजोर जानवर और पक्षी हमेशा सुरक्षा की खातिर झुंड में घूमते हैं। शक्तिशाली शेर कभी झुंड में नहीं विचरण करता। दो शेर मिलकर शिकार नहीं करते। राजनीति के शेरों की ताकत उनके झुंड बनाने की क्षमता पर निर्भर करती है। अपने अनुशासन के लिए प्रसिद्ध दल में भी अनेक गुट हैं और गुटबाजी हमेशा सतह के नीचे प्रवाहित रहती है। यह कितना विचित्र सत्य है कि इतने आधुनिक होने के बाद भी समाज में भय है और इसी कारण गुट बनते हैं।

इस सर्वव्यापी भय के खतरों से अवगत कराने के लिए गांधी ने प्रयास किए और रवींद्रनाथ टैगोर ने अनेक कविताएं लिखी हैं। भय ही अनेक व्याधियों को जन्म देता है। तानाशाह हमेशा अपना भय पहले स्थापित करता है। राजकुमार संतोषी की 'घातक' में खलनायक कहता है कि कितने जतन से उसने अपने भय बनाया था और नायक इसी भय के भ्रम को तोड़ रहा है। इस फिल्म के क्लाइमैक्स में नायक पराजित खलनायक का वध एक नन्हे शिशु से कराता है, जो प्रारंभिक रील में बिल्ली से डरता था।

यह विचारणीय है कि किसी काम के लिए परस्पर सहयोग करना उत्तम बात है और परस्पर सहयोग तथा खेमेबाजी दो परस्पर विरोधी बाते हैं। गुटबाजी विचारहीनता का परिणाम हैं और परस्पर सहयोग एक सृजनकारी भाव है। परस्पर सहयोग की भावना पर बहुत से गीत फिल्मों से आए है जैसे 'साथी हाथ बढ़ाना' इत्यादि। गुलजार की पहली फिल्म 'मेरे अपने' जो तपन सिन्हा की 'अपन जन' से प्रेरित थी, में भी दो युवा हिंसक गुटों को बूढ़ी तन्हा मीना कुमारी अपने स्नेह से सहयोगी बना देती हैं।