सिद्धपीठ माता योगिनी थान / धनन्जय मिश्र
आदमी रोॅ मनों में दू तरह रोॅ भावना पैलो जाय छै। कोमल भावना यदि प्रबल होय छै तॉ होकरो मोॅन, वचन आरोॅ कर्म केकरो लेली हमददी्र सें तुरत भरी जाय छै आरोॅ करुणा रोॅ भाव प्रगट होय लागै छै, आरोॅ यदि केकरोॅ प्रति विष्णुता होय छै तॉ होकरो लेली रोष, जलन, ईर्ष्या पैदा होय छै, फेरू मोॅन अवसाद सें भरी जाय छै। यहा तरह रोॅ भावो में मोॅन उलझलो ही छेलै कि तखनिये फोन घनघनाय उठलै। फोन पर डॉ॰ अनिरुद्ध प्रसाद विमल जी छेलै। हलो सर, प्रणाम-प्रणाम भाय। अभिवादन स्वीकार करी केॅ डॉ॰ विमल जी बोललै-धन×जय बाबू एक खुब्बे नीको स्थानों पर जाना छै। है नीको स्थान रोॅ लेली एक नीको विचार ऐतै ही बिना कोनो सोच-विचारै सें हम्मे वहाँ जाय लेली हामीं भरी देलियै। विमल जी रोॅ उत्साह बढ़लै आरोॅ यात्र लेली जानकारी मिललै। यही क्रम में हम्मे है जानलियै कि विमल जी एक लोक गाथा उपन्यास 'रानी लचिका' लिखै रोॅ मोॅन बनाय रहलो छै। यही विषय लेली आरु कत्ते सिनी सच्चाई जानै लेली हौ स्थान जाय ला चाहै छै आरू आभीं ताँय बचलो वहाँ करो शेष भागोॅ रोॅ चित्र भी कैमरा में कैद करैला चाहै छै। हौ स्थान बारकोप राज्य रोॅ पुरानो खंडहरनुमा हवेली छेकै। यहा बारकोप राज्य में पथरगामा रोॅ समीप माता योगनी रोॅ थान (मंदिर) छै। गोड्डा (झारखंड) जिला रोॅ है स्थान एक जाग्रित सिद्धपीठ छेकै। है जानी के कि जोगनी माता थान भी जाना छै, मोॅन चहकै लागलै। कैन्हे कि कत्ते दिनोॅ सें माता योगनी थान जाय लेली सोची रहलो छेलियै, मतुर मौका नै मिलै छेलै। आय मौका कॉ हाथ सें जाय ला नै दैल चाहलियै। यहाँ सप्ताह में दू दिन मंगलवार आरो शनिवार कॉ विशेष मेला लागै छै, जै में दूर-दूर सें भक्तजन आवी कॉ आपनोॅ मनोकामना पूरा करै छै।
जाय रोॅ कार्यक्रम अगला दिन यानी मंगलवार सुबह रोॅ छः बजे पुनसिया आवै रोॅ निर्धारित होलै। हम्मे निर्धारित समय पर पुनसिया पहुँचलियै। विमल जी सें मुलाकात होलै। आखोॅ-ही-आखोॅ में शुक्रगुजारी रोॅ बात होलै, आरोॅ बिना देरी रोॅ हमरा सिनी मोटरसाइकिल पर सवार होयके आनन्ददायी शुभ यात्र रोॅ शुरूआत होलै। सड़क नीको रहै रोॅ लेली भोरे मोटरसाइकिल सें यात्र रोॅ सफर में कुच्छू ठंडो रोॅ आभाष होतै, पास रोॅ गमछा सें दोनों आपनो-आपनो कानों के ढकी के आगू रोॅ यात्र होलै। साढ़े छह बजे सुबह हमरा दोनों पंजवारा बाज़ार में छेलियै। विमल जी के चाय रोॅ तलब होलै। एक दुकान पर चाय-पान खाय के फेरू यात्र शुरू होलै। अगलका पड़ाव आवे गोड्डा में डॉ॰ कयुम अंसारी रोॅ घरोॅ पर निर्धारित छेलै।
डॉ॰ कयुम जी बोरियो (गोड्डा) महाविद्यालय रोॅ प्रिंसिपल छेकै आरोॅ हमरा सिनी रोॅ साहित्यिक सफर रोॅ साथी भी। हुनका घरोॅ में आरो साहित्यकार सिनी रोॅ जमावड़ा भी निर्धारित छेलै। डॉ॰ प्रदीप प्रभात जी विमल जी रोॅ शिष्य छेकै आरोॅ डॉ॰ कयुम अंसारी रोॅ महाविद्यालय में भूगोल विषय रोॅ विभागाध्यक्ष भी। हिनी अंगिका आरोॅ हिन्दी रोॅ एक सशक्त हस्ताक्षर भी छेकै। हुनको साथे पथरगामा महाविद्यालय रोॅ हिन्दी विभाग रोॅ अध्यक्ष श्री विहंगम जी आरोॅ गोड्डा रोॅ साहित्यकार श्री ब्रह्मदेव जी भी साथ रहै। सब हुनकोॅ घरोॅ में बड्डी आत्मीयता से मिली केॅ योगनी माता थान दर्शन रोॅ कार्यक्रम वाही निर्धारित होलै। यही बीचोॅ में चाय-नाश्ता रोॅ आयोजन भी पूरा होलै। हम्में चाय में तॉ शरीक छेलियै मतुर नाश्ता में पूजा लेली शरीक नै भेलियै। सुबह रोॅ ९ बजे डॉ॰ कयुम रोॅ घरोॅ में विमल जी रोॅ साथ प्रदीप प्रभात जे योगनी माता क्षेत्र सें बेसी जानकारी राखै छेलै, मोटरसाइकिल पर सवार होय कॉ पहिने गाइड रुपो में निक्कलै। हम्में प्रिंसिपल साहेब, श्री विहंगम जी, श्री ब्रह्मदेव जी, प्रिंसिपल जी रोॅ कार से यात्र शुरू करलियै। यात्र रोॅ क्रम में विभिन्न विषयों पर सामयिक चर्चा रोॅ बीचों में जबे कार गाँधी ग्राम पहुँचलै ते प्रिंसिपल जी रोॅ पिता श्री रोॅ औषधालय के देखते हुए यात्र जारी रहलै। आवे हमरा सिनी बंदनवार, लखन पहाड़ी, रोॅ प्राकृतिक मनोहारी दृश्यों रोॅ आनंद लेते हुवे कार गाड़ी योगिनी माता रोॅ प्रांगण में प्रवेश करलकै। आवै के बात तेॅ डॉ। अमरेन्द्र के भी छेलै, मतुर हुनी नै आवै पारलै। यै पर सभ्भैं अफसोस व्यक्त करी रहलोॅ छेलै।
विमलजी रोॅ साथे प्रदीप प्रभात कुच्छू देर पहिने ही वहाँ पहुँची गेलो छेलै। हुनका सें भेंट होलै आरोॅ आगु रोॅ कार्यक्रम पर चर्चा होलै। योगनी माता मंदिर रोॅ दर्शन के पहिलो अनुभूति रोमांच सें भरलोॅ छेलै, जेकरा शब्दों में बयान करना असंभव छै। योगनी माता प्रांगण सें सटले ही पथरगामा महाविद्यालय छै, जहाँ श्री विहंगम जी हिन्दी रोॅ व्याख्याता छै। चूंकि हम्में आरोॅ विमल जी स्नान नै करने छेलियै, यही ला बगलोॅ रोॅ चापाकलों से श्री विहंगम जी रोॅ सहयोग से स्नान से निवृत होलियै। आबे जोन दोकानी पर हमरा सिनी रोॅ समान राखलो गेलो छेलै, वही दोकानी सें पूजा लेली सब समान लैके हमरा सिनी योगिनी माता मंदिर में विधि-विधान सें पूजा-अर्चना पुजारी रोॅ सहयोग से करलियै।
माता मंदिर में मैया रोॅ मूर्ति बाहर सें दिखाय नै पड़ै छै। हुनको समूचा भाग एक आकर्षक लाल चुनरी सें ढकलो रहै छै। यही प्रांगण में एक विशाल वट वृक्ष रोॅ डाली सें कत्ते सिनी ईंटो रोॅ टुकड़ा बाँंधलो दिखाय पड़लै। पंडा जी सें पूछले पर है मालूम होलै कि यहाँ भक्तो रोॅ द्वारा सच्चा मनोॅ सें मनौती माँगला पर हौ मनौती ज़रूरे पूरा होय छै। हेकरे लेली साक्ष मानी के हौ गाछी रोॅ डाली सें ईंटो बाँधलो जाय छै आरोॅ फेरु जबे मनौती पूरा होय जाय छै ते बादो में आबी के हौ ईंटो कॉ खोलैला भी पड़ै छै। है यहाँ भक्तो रोॅ बीचो में विश्वास छै। है विश्वास के हमरो सिनी पूरा करलियै। आबे हमरा सिनी माता रोॅ गर्भगृह में प्रवेश लेली आगू बढ़लियै। गर्भगृह रोॅ बारे में एकटा नीको रं प्रसंग जुड़लो छै, जेकरा सें भक्तो रोॅ विश्वास माता लेली आरोॅ बढ़ी जाय छै।
कथा है रं शुरु होय छै-प्राचीन काल में राजा दक्ष एक बार अश्वमेघ यज्ञ करी रहलो छेलै। यज्ञ के सफल बनावै लेली स्वर्ग रोॅ सम्भे देवी-देवता केॅ यज्ञ में निमंत्रण देने छेलै। मतुर दक्ष ने आपनो जमाता भगवान शंकर जी के निमंत्रित नै करनै छेलै। निमंत्रित नै करने रोॅ कारणों पर हम्मे नै जाय ला चाहै छियै, मतुर हुनको पत्नी माता सती जी आपनो पिता दक्ष रोॅ यज्ञ में जाय ला चाहै छेली। शंकर जी रोॅ लाख मना करला पर भी माता सती पिता रोॅ यज्ञ में चल्ली गेलै। दक्ष रोॅ द्वारा शंकर जी रोॅ लेली कहलो गेलै अपमान वचन के सुनी के माता सती अपराध बोध आरोॅ क्रोध के नै पचाय पारलको रोॅ चलते पिता रोॅ यज्ञ के असफल करै लेली वही यज्ञ रोॅ हवन कुंड में कूदी के जली मरलै। है दुखद समाचार सुनी के शंकर जी खुब्बे क्रोधित होयके जललो सती रोॅ शव आपनो कंधा पर उठाय के तांडव नृत्य करै लागलै। है तांडव नृत्य रोॅ प्रभाव सें तीनों लोको में हाहाकार मची गेलै। सृष्टि नष्ट होय के कगार पर पहुँची गेलै। हुनको क्रोध ज्वाला रोॅ सामने कोनो देवता रोॅ जाय के साहस नै छेलै। सभ्भे देव, नर, मुनि किंकर्त्तव्यविमूढ़ छेलै। तबेॅ सभ्भे देवता मिली के सृष्टि के विनाश सें बचाय आरो हेकरो निदान लेली भगवान विष्णु जी रोॅ प्रार्थना करै लागलै। तबे देवता रोॅ आर्द्र चित्कार सुनी केॅ तीनो लोको के बचाय लेली विष्णु जी ने एक निदान है बतैलकै कि तोरा सिनी सभ्भे मिली के आपनो-आपनो पुण्यो रोॅ अंश माता सती रोॅ मृत शरीर में प्रवेश करावो जेकरा सें सती रोॅ शरीर गली-गली के खतम होतै। तवे शरीर के नै रहला पर ही शंकर जी रोॅ क्रोध खतम होतै। यही होलै। वही क्रम में माता सती रोॅ एक अंग गर्भाशय गली के यही अंग क्षेत्र वारकोप राज्य रोॅ पहाड़ी पर गिरलो छेलै। जेकरा सें वहा समय सें है क्षेत्र सिद्धपीठ योगिनी माता (सती माता) थान कहलाय लागलै आरोॅ है गर्भगृह रोॅ महत्त्व आय तक बनलो छै। हुनको दर्शन करी के भक्तगण आपनो जीवन के धन्य बनाय छै।
गर्भगृह स्थान योगिनी पहाड़ी पर एक दुरुह संकीर्ण गली मार्ग में स्थित छै। हौ स्थान पर जाय लेली नीचे से सीमेंट रोॅ सीढ़ी रेलिंग रोॅ साथ भक्तगण के आराम पहुँचावै छै। बीचो-बीचो में सीढ़ी रोॅ मध्य भाग में विश्राम स्थल गोलाकार छतरीनुमा संरचना भक्तगण के धूप आरोॅ वर्षा से बचावै लेली बनैलो गेलो छै। हमरा सिनी तीन भक्त २३७ (दू सौ सैंतीस) सीढ़ी पार करी के गर्भगृह रोॅ प्रवेश द्वार पर पहुँचलियै। कुच्छू भक्तगण पहिनै सें गर्भगृह में प्रवेश लेली प्रतीक्षारत छेलै। चूंकि गर्भगृह रोॅ जाय लेली रस्ता ऐतै तंग आरोॅ कठिन छै कि हेकरोॅ कुच्छू नियम के मानलै पर ही यात्र निरापद होय ला सकै छै, नै तेॅ भक्तगण बीचे में फसेॅ सकै छै। जेना कि जबे एक दल रोॅ भक्तगण (छह से आठ संख्या) गर्भगृह में प्रवेश करै छै तबे दोसरो दल हौकरो निकलै रोॅ प्रतीक्षा तब तांय करते रहै छै, जब तांय पहिलो दल पूजा-अर्चना करी के बाहर नै निकली जाय छै। है क्रम शाम तक चलते रहै छै। हमरा सिनी भी प्रवेश लेली प्रतीक्षारत छेलियै। यहाँ एक बात आरो सामयिक है छै कि जेना माता वैष्णो देवी रोॅ दर्शनोपरांत काल भैरव रोॅ दर्शन नै हुए तब तक दर्शन यात्र अधूरा छै, ठीक वहाँ रं यहाँ भी माता योगिनी रोॅ गर्भगृह रोॅ दर्शन भी ज़रूरी छै, नै तॉ है दर्शन यात्र भी अधूरा मानलो जाय छै। एन्हो विश्वास छै।
आबे हमरा सिनी रोॅ भी बारी ऐलै। प्रवेश करै रोॅ पहिनै माता पर विश्वास आरोॅ कुच्छू सावधानी ही हौ कठिन दर्शन मार्ग के सफल बनावै छै। अस्तु! माता रोॅ जयकारे रोॅ बीच पहिने प्रदीप-प्रभात जी गुफा में प्रवेश करलकै। हुनको बाद विमल जी आरोॅ हम्मे प्रवेश करलियै। गुफा रोॅ दिवाल सें सटले तिरछो (एकोशी) होय केॅ सिर केॅ आगू करी केॅ शरीर केॅ प्रवेश कराय केॅ पैर केॅ स्थिर करलियै। सिर के प्रवेश रोॅ साथ ही वही ठियाँ ऊपरी छतो से एकठो भालानुमा नुकीला पत्थर रोॅ आकृति लागलो छै। असावधानी आरोॅ छटपटाहट सें सिर घायल भी होयला पारै छै।
गुफा मार्ग में अंधकार रहै छै। आवेॅ प्रवेश रोॅ बाद वही तंग गुफा में छह-सात फुट ऊपर उठना छै। वहाँ भीतर में कोय केकरौह देखैला नै पारै छै। सबकुछ अपने आप करैला लागै छै। दायां-बायां पैर केॅ संतुलित करी केॅ आपनो शरीर केॅ पलटी केॅ ऊपर उठै रोॅ बाद फेरु पाँच-छह फुट नीचे आबैला पड़ै छै। नीचेॅ ऐला रोॅ बाद एक समतल जग्घो दिखाय पड़ै छै। जहाँ सात-आठ आदमी खाड़ो रहैला पारेॅ। यहाँ रोशनी भी दिखाय पड़ै छै। लागै छै कि दू बड़ो चट्टानोॅ रोॅ दरारी से हौ रोशनी आबै छै। यही माता रोॅ गर्भगृह (स्थल) छेकै। यहाँ माता रोॅ तीन पिंड स्वरूप संरचना दिखाय पड़ै छै, जे आकर्षक लाल चुनरी सें ढकलो छेलै। हमरा सिनी नीको सें पूजा-अर्चना करलियै।
विमल जी आपनो साथे कैमरा भी लानने छेलै जेकरा से गर्भगृह रोॅ भीतरी भागो के चित्र भी लेलो गेलै। वहाँ एक-दो मिनटो सें बेसी भक्तगण केॅ रूकैैला नै मिलै छै। गर्भगृह रोॅ भीतरी भागो में एकाध जगह भक्त रोॅ मदद लेली एकाध गाइड भी रहै छै। आवे वहाँ सें फेरु वही प्रक्रिया से गुजरी केॅ माता रोॅ नाम लेते बाहर होलियै।
पहाड़ी रोॅ नीचे समतल भूमि पर ऐला रोॅ बाद आगू रोॅ कार्यक्रम तय होलै। चूंकि विहंगम जी यहा कर्म क्षेत्र रोॅ साहित्यकार व्याख्याता छै, यही लेली हुनी एक दोकानी पर ही बैठलो रहलै। साथ में ऐलो प्रिंसिपल जी आपनो साथ रोॅ साथी साथे आपनो गाँव रानीपुर जे बगले में स्थित छेलै, घूमैला निकली गेलो छेलै। आबे हमरा तीनो धनसुख्खा पहाड़ी जे बगलै में स्थित छै वै पर शिवजी रोॅ भव्य मंदिरो छै। हुनको दर्शन लेली बिना धूप रोॅ परवाह कैने हौ ऊँची पहाड़ी पर लगभग आधो घंटा में पहुँची गेलियै। तिरछी सीढ़ीयो रोॅ बीच-बीच में भक्तो रोॅ आराम लेली सुंदर विश्रामालय बनैलो गेलौ छै, जेकरा सें है धनसुख्खा पहाड़ी रोॅ सुंदरता आरोॅ बढ़ी जाय छै। वहाँ सृष्टि संहारक भगवान शंकर जी रोॅ पूजा-अर्चना करी केॅ एक योगिन भक्त मैया सें हमरा तीनों ने आशीर्वाद लेलियै आरो मंदिर रोॅ दानपेटी में कुच्छू सिक्का दानकरी केॅ बगलो रोॅ स्थित एक बड़का शिलाखंड पर वृक्षों रोॅ छाया में बैठी केॅ आराम करलियै।
वहाँ सें प्राकृति दृश्यो रोॅ अनुपम छटा रोॅ बीच बारकोप गाँव साफ-साफ दिखाय पडै़ छै, जे हमरा सिनी रोॅ अगला पड़ाव छेकै। बारकोप राज्य आबे सिमटी केॅ समय रोॅ परिवर्तन साथें एक छोटो टा गाँव बनी गेलो छै। जे कहियौव आपनो शान-शौकत सें अंग प्रदेश रोॅ सिरमौर छेलै। धनसुख्खा पहाड़ी नाम रोॅ बारे में कूच्छू एन्हो जानकारी मिललै कि है पहाड़ी प्राचीनकाल में धनवर्षा रोॅ नाम सें जानलो जाय छेलै। है पहाड़ी सें अमूल्य वनस्पतियों रोॅ प्राप्ति होय छेलै, आरोॅ कत्ते रं रोॅ धनस्त्रोतों रोॅ गवाह भी छेलै जे स्थानीय राजा केॅ राजस्व प्राप्ति रोॅ एक बड़का केन्द्र भी छेलै। मतुर समय केॅ परिवर्तन रोॅ साथ धीरे-धीरे राजस्व प्राप्ति रोॅ स्रोत सुखी जाय रोॅ लेली ही हय पहाड़ी धनसुख्खा रोॅ नाम सें आय तक चर्चित छै।
बारकोप राज्य केॅ नामाकरण रोॅ पीछू धारणा इतिहासकारोॅ रोॅ नजरो में शायद है छैलै कि बारकोप राज्य रोॅ चारो बगल करीब बारह सौ (१२ॉॉ) कुआँ रोॅ श्रृंखलित कूप छेलै। है कूप बड़ो-बड़ो आरोॅ गहराई रोॅ साथ अगम पानी से भरलो रहै छेलै। है सब कुआं राजा रोॅ द्वारा बहुउद्देशीय सोचोॅ रोॅ तहत बनबैलो गेलो छेलै। राज्य रोॅ सुरक्षा आरो फसल रोॅ सिंचाई प्रमुख छेलै। कैन्हे कि राज्य रोॅ चारोॅ तरफ घना जंगल आरोॅ जंगलों रोॅ घेरा में विषम कुँआ रोॅ जाल बाहरी दुश्मनो रोॅ आक्रमण रोॅ ढाल बनै छेलै। है सब कुआँ सालो भर पानी सें भरलो रहे छेलै, कैन्हे कि कुआँ रोॅ स्रोत कत्ते नि अगल-बगल रोॅ नदियों से जुड़लो छेलै। यही लेली शायद हेकरो नाम बारकोप पड़लो होतै। है बातो रोॅ साक्ष्य आज भी एक-दू कुआँ हेकरो गवाह छै। खैर जे भी हुए वहाँ पर भी कुच्छू मनोरंजक दृश्यों के कैमरा में कैद करलो गेलै।
आबे धूप बढ़ी रहलो छेलै आरो पेटोॅ में चूहा भी दौड़ी रहलो छेलै। हमरा सिनी वहाँ से तेजी से उतरी केॅ वही दुकान पर सभ्भै सें मिललियै। तब तांय प्रिंसिपल साहेब अन्य साथियो रोॅ साथ आपनो गाँव से लौटी चुकलो छेलै। योगिनी माता दर्शन लेली घरोॅ सें आवै रोॅ समय पत्नी रोॅ आग्रह छेलै कि माता मंदिर रोॅ भस्म ज़रूरे लेने आभियो। हौ भस्म के लै लेली हमरा सिनी सभ्भे साहित्यकार मित्र मंदिर रोॅ प्रधान पुजारी श्री आशुतोष सिंह जी से मिली के मंत्र पूरित भस्म प्राप्त करलियै। यही क्रम में आशुतोष जी सें बारकोप राज्य रोॅ योगिनी माता सम्बंधित कत्ते नी प्रश्नों पर चर्चा होलै। शंका समाधान होलै आरोॅ सब तरह सें संतुष्ट होयके हुनका से आशीर्वाद लैके मंदिर प्रांगण सें बाहर होलियै। आबेॅ दोपहर दू बजी रहलो छेलै। पिं्रसिपल जी रोॅ तरफो सें होटल में भोजन रोॅ व्यवस्था छेलै।
भोजनोपरांत अगलका कार्यक्रम बारकोप स्थित हवेली रोॅ खंडहर देखै केॅ छेलै। हमरा सिनी रोॅ काफिला कार सें बारकोप लेली चललै। विमल जी रोॅ मोटरसाइकिल पर प्रदीप प्रभात जी आगू-आगू चली रहलो छेलै। लगभग डेढ़-दू किलोमीटर रोॅ दूरी पार करी केॅ है काफिला बारकोप गाँव पहुँचलै। गाँव रोॅ बीचो-बीच देवी दुर्गा माँ रोॅ कत्ते नी पुरानो भव्य मंदिर छै। है राजवंश कुल रोॅ देवी माता छेकै। यही मंदिर रोॅ सामने खतौरी राजवंश रोॅ नौवीं पीढ़ी में राजा प्रीतम सिंह छेलै। हिनके ही अनिन्द सुंदरी पत्नी रानी लचिका छेलै। हिनके अपहरण लखीमापुर (लक्ष्मीपुर) रोॅ राजा ने करी लेने छेलै। वही राजवंश केॅ राजमहल रोॅ भग्नावशेषों के बीच अनकहे तत्वों रोॅ तलाश करना छेलै।
हमरा सिनी सभ्भे हौ खंडहर महलो रोॅ बीच कुच्छू महत्त्वपूर्ण तथ्य प्राप्त करै लेली हिन्हे-हुन्हे देखी रहलो छेलियै। कुच्छू ज़रूरी तथ्यों के विमल जी आपनो कैमरा में कैदो करी रहलो छेलै। एतना संजीदगी आरोॅ भव्यता सें तसवीरोॅ लै रहलो छेलै कि खंडहर रोॅ समीप रहै वाला कत्ते नी लोग उत्सुकतावश हमरा सिनी रोॅ टीमों सें मिलै लेली आवी गेलो छेलै। राजवंश आरोॅ रानी लचिका रोॅ सम्बंधित कत्ते नी जानकारी हिनका सिनी से प्राप्त होलै। हुनका सिनी सें मिली केॅ आरो है जानी केॅ आरोॅ खुशी होलै कि राजवंश रोॅ अंतिम चिराग आय भी जिन्दा छै।
वहाँ से हमरा सिनी पीर मजार आरोॅ राजकचहरी देखै लेली चललियै। है राज कचहरी राज दरबार सेॅ लगभग डेढ़ किलोमीटर दायरा में फैललो छै। पीर मजार में दोनों संप्रदाय रोॅ लोग माथो झुकाय लेली आवै छै। है जग्घो सांप्रदायिक सद्भाव रोॅ एक बेजोड़ निशानी छेलै। हौ मजार रोॅ चित्र भी लेलो गेलै। आवे हमरा सिनी रोॅ टीम राज कचहरी पहुँचलै। वहाँ भी कत्ते सिनी भग्नावशेष आपनोॅ वैभवता रोॅ कहानी कही रहलो छेलै। वहाँ भी कत्ते सिनी तथ्य रोॅ जानकारी होलै आरोॅ कुच्छू जीवंत दृश्य कैमरा में कैद करी केॅ लगभग दोपहर रोॅ तीन बजे हमरा सिनी वही दोकानी पर पहुँचलियै, जहाँ सें चल्लो छेलियै।
आबे यात्र रोॅ अंतिम पड़ाव सामने छेलै आरोॅ विदाई रोॅ बेलौ छेलै, मतुर हमरा सिनी बिछुरैलॉ नै चाहै छेलियै। मतुर जाना तॅ छेलै ही। भारी मनोॅ सें फेरु मिलै रोॅ वादा करी केॅ डा॰ कयुम जी, श्री विहंगम जी आरोॅ सिनी मित्र हौ कार सें बोरियो कॉलेज लेली प्रस्थान करी के विदा होलै। बादो में विमल जी आरोॅ हम्मे बाज़ार सें माता रोॅ तस्वीर प्रसाद रोॅ साथ खरीदी केॅ हमरा तीनों विमल जी रोॅ मोटरसाइकिल सें माता के अंतिम विदाई दै केॅ गोड्डा लेली प्रस्थान करलियै।
गोड्डा पहुँचला पर हमरा सिनी वरिष्ठ साहित्यकार आरोॅ विद्वान डॉ॰ श्यामसुंदर घोष जी रोॅ ऋतुम्बरा निवास पर जाय के हुनका सें भेंट करलियै। हमरो हुनका से पहिलो ही परिचय छेलै। मतुर खतोॅ सेॅ संपर्क पुरानोॅ छेलै। हुनि आय-कल कुच्छू अस्वस्थ चली रहलो छेलै। मतुर फेरु भी हुनि सभ्भै से बड्डी ही आत्मीयता सें बात करलकै। हम्मे आपनो दू-तीन रचना रोॅ किताबोॅ हुनका देलियै। हुनि बड्डी ही खुशमिजाज इंसान छै। हुनका सें विदा लैके एक आरु साहित्यकार मित्र श्री ब्रह्मदेव झा जी रोॅ डेरा पर गेलियै। बड्डी आत्मीयता रोॅ साथ हुनि हमरा सिनी रोॅ खातिरदारी करलकै। वहाँ पर हमरा सिनी रोॅ साथ कुच्छू साहित्यिक चर्चा भी होलै।
आवे शाम रोॅ साढ़े चार बजी रहलो छेलै। वहाँ से आबै रोॅ क्रम में गोड्डा बस पड़ाव रोॅ सामने एक अप्रत्याशित घटना घटी गेलै। होलै हय कि एक साइकिल सवार अचानके मोटरसाइकिल रोॅ आगू पर आबी गेलै। हौ सवार केॅ बचाय लेली मोटरसाइकिल रोॅ संतुलन बिगड़लै आरो हेकरोॅ परिणाम है होलै कि हमरा तीनों केॅ लेते हुए रोड रोॅ किनारे खाड़ो एक ठेला सें मोटरसाइकिल टकराय गेलै। विमल जी रोॅ पैरो में तनिटा चोट लागलै आरु पीछू बैठलो हमरा दोनों माता रोॅ कृपा सें बाल-बाल बची गेलियै। ठेला वाला केॅ कुच्छू क्षति-पूर्ति देकै एक पेट्रोल पंप पर आबी केॅ पेट्रोल लेलियै। प्रदीप प्रभात जी गोड्डा में ही रहै छै, यै लॉ हुनी याही रुकी गेलै। आबे हमरा दोनों घरोॅ लेली एक यादगार यात्र केॅ पूरा करी के वहाँ से प्रस्थान करलियै। पुनसिया ऐते-ऐते शाम घना होय रहलो छेलै। आवे विमल जी रोॅ पैरो में कुच्छू दर्दो रोॅ अहसास रोॅ बावजूद भी पान दोकानदार श्री रामावतार केशरी रोॅ दोकानी सें पान खैलिये। है तरह सें माता योगिनी शक्ति पीठ रोॅ सफल यात्र खट्टा-मिट्ठोॅ अनुभवो रोॅ साया में पूर्ण होलै।
बोलोॅ जय माता योगिनी थान की जय....