सिद्धांतों की लड़ाई / कुबेर
दोनों परस्पर विरोधी, प्रतिगामी और तथाकथित सिद्धांतवादी हैं। पहलाराजपथ का राही ’राजपंथी’ है तो दूसरा जनपथ का यात्री ’जनपंथी’। रास्ते दोहैं। (अनेक भी हो सकते हैं।) परंतु लक्ष्य एक ही है।
कुछ लोग अपनी सुविधा और अवसर के अनुसार इन्हीं दोनों में से किसी एकमार्ग का चयन और अनुसरण करते हैं, बदलते रहते हैं। अवसर पथ पर चलने वालेतीसरे प्रकार के ये लोग अवसरपंथी कहलाते हैं। इन्हें तरकारी और चटनीदोनों के ही स्वाद उपलब्ध होते हैं।
शेष वे हैं जिन्हें सिध्दान्तों और पंथों पर विश्वास नहीं है। ये किसीमार्ग पर नहीं चलते अतः इन्हें अमार्गी या अपंथी कह सकते हैं। कुमार्गीया कुपंथी कहने का मुझमें साहस नहीं। इन्हें किसी पंथ का अनुसरण करने कीजरूरत ही क्यों हो जबकि जनपंथी और राजपंथी सहित अन्य नानापंथी स्वतः हाथजोड़े और नानाविधि सौगात लिए इनकी सेवा में सदैव तत्पर रहते हैं। चारों ओरइन्हीं की पूजा-अर्चना हो रही है।
राजपंथी और जनपंथी, दोनों चिर-प्रतिद्वंद्वी हैं। दोनों ही युद्ध क्षेत्रमें शक्ति परीक्षण हेतु सदैव सन्नद्य रहते हैं। तर्क-कुतर्क रूपीअस्त्र-शस्त्र और तथाकथित सिद्धांत रूपी वज्रास्त्र से संघर्ष जारी है।नैतिकता, मानवता और सच्चाई जैसे पारंपरिक अस्त्र-शस्त्र इन आधुनिक आयुधोंद्वारा प्रतिस्थापित हो चुके हैं।
एक बहुत पुराना आयुध है जिससे गरीबी मिटाई जाती थी। इसका नाम ही है’गरीबी मिटाओ’ अस्त्र। यह एक दिव्यास्त्र है। इस अदृश्य अस्त्र की मारकक्षमता अचूक होती है। इसे त्यागने की गलती भला कौन कर सकता है। यह अलगबात है कि इसका प्रयोग अब गरीबी नहीं बल्कि गरीबों को मिटाने में होनेलगा है। दोनों पक्ष की सेना और सेनापति इसका खुलकर प्रयोग करते हैं।
दोनों ओर की सेना भी दिव्य हैं। ये देवलोक के जीव हैं। इनकी शक्तियाँ औरइनके कृत्य भी दिव्य होते हैं। इस लोक के कानून इन पर लागू नहीं होते।यहाँ की कानून-व्यवस्था इनकी दासी होती है। जनता को भी ये अपना दास हीसमझते हैं। जनता की कमाई और धन पर इनका एकाधिकार होता है। इनकी इच्छा हीकानून है। अपने कानून ये स्वयं बनाते और तोड़ते हैं।
जनता भ्रम वश प्रसन्न है कि ये शूरमा उनके लिए मर-खप रहे हैं। पर जाननेवाले जानते हैं कि इनकी लड़ाई महज सिद्धान्तों की लड़ाई है। ये सिर्फसिद्धांतों के लिए ही लड़ रहे हैं। इस लड़ाई में अनगिनत तर्क-कुतर्क रूपीअस्त्र-शस्त्र और सिद्धांत रूपी वज्रास्त्र टूटते रहते हैं। इन आयुधों केटूटने से जो प्रबल युद्धाग्नि प्रगट होती है उसकी ज्वाला में नित करोड़ोंनिरीह जनता झुलस कर मर जाती है, करोड़ों लोग विकलांग जीवन जीने के लिएविवश हो जाते है।
सभी पंथियों और शूरमाओं के सद्धिांत और लक्ष्य एक ही है, राजसत्ता का अक्षय सुख प्राप्त करना।