सिद्धू-कान्हू / प्रदीप प्रभात
सिद्धु-कान्हू रोॅ साथेॅ चांद-भैरव के नाम जुड़लोॅ होलोॅ छै। साथेॅ-साथ दू बहिन भी छेलै। बहिन के नाम छेलै फूलोॅ आरो झानोॅ।
सिद्धू के जन्म 1815 ई. कान्हू रोॅ जन्म 1820 ई. चांद भायरों के जन्म 1825 आरो 1835 र्द। मानलोॅ जाय छै। हिनकोॅ बाबू के नाम चुनू मुर्मू छेलै।
हिनकोॅ घोॅर वर्Ÿामान साहेबगंज जिला के बरहेट प्रखण्ड अन्तर्गत भोनाडीह गाँव में छै। ई चारोॅ भाय नेॅ अंग्रेजोॅ के जुलुम देखलेॅ छेलै। अत्याचार शोषण सेॅ त्रस्त संथालोॅ सीनी केॅ देखी-देखी केॅ हिनका सीनी रोॅ सहन शक्ति टुटें लागलोॅ छेलै। 1793 ई. मेॅ लार्ड कार्नवालिस नेॅ ई क्षेत्रों मेॅ स्थाई बन्दोबस्ती लागू करलेॅ छेलै। हेकरा सेॅ एक नया जमींदार वर्ग खाड़ोॅ होय गेलोॅ छेलै। माल गुजारी मेॅ थोड़ोॅ-सा भी अनियमितता होला पेॅ जमीन नीलामी करी लेलोॅ जाय छेलै। सिद्धू ऊ समय चालीस सालों रोॅ छेलै। संथालोॅ रोॅ शोषण असहनीय होय गेलै तेॅ हिन्हीं सबकेॅ एक जुट करना शुरु करी देलकै। हुनीं साल पŸाा रोॅ टहनी भेजी केॅ घरे-घर संदेश देना शुरु करलकै कि आबेॅ आबुआ राज स्थापित करै के समय आबी गेलोॅ छै। हमरा ' जाहेर एरा" आरो मरांड बुरु के दर्शन होलोॅ छै हुनियें ऐन्होॅ कहलोॅ छै। ई अंग्रेजों केॅ मारी केॅ भगाना छै।
30 जून 1855 पूर्णिमा के आधी राती रोॅ समय बरहेट भोगनाडीह मेॅ लगभग चार सौ गाँवों सेॅ 20 हजार संतालोॅ के भीड़ जौरोॅ होय गेलोॅ छेलै। यही भीड़ोॅ मेॅ सिद्धू नेॅ शेरोॅ जुंगा गरजी केॅ कहलेॅ छेलै "मरी मिटना छै, अंग्रेजों केॅ मारी भगाना" छै। ऊ समय मेॅ डलहौजी भारत के गवर्नर जेनरल छेलै।
अठारह सौ पचपन ईस्वी के
छेकै ई बात।
संतालोॅ के जमलोॅ छेलै,
वहाँ बड़ोॅ जमात।
गवाही छै भोगनीडीह गाँव,
नै मिललै अंग्रेजोॅ केॅ छॉव।
संगठन खातिर सिद्धू-कान्हू,
फूलों-झानों भी साथ रहैं।
हिरणपुर, लिट्टीपाड़ा, बरहेट, बोरियो,
गोड्डा, दुमका हाट सरैया घुमै।
संथालेॅ नेॅ सिद्धू-कान्हू चांद-भायरोॅ मेॅ सेॅ सिद्धू केॅ राजा कान्हू केॅ मंत्री, चांद केॅ प्रशासक आरो भायरोॅ केॅ सेनापति चुनलेॅ छेलै। वीरभूम के रांगा ठाकुर आरो खेतौरी सरदार वीर सिंह रोॅ पूरा समर्थन सिद्धू-कान्हू के प्रति छेलै। हिनी सीनी अंग्रेजोॅ केॅ खबर भेजी देलकै कि यहाँ करोॅ लोगेॅ सरकार द्वारा निर्धारित कर (ज्मग) नि´ दियेॅ पारतौं।
हेकरें साथ शुरु होय गेलै दामिन-ई कोह केॅ अंग्रेजों द्वारा आपनोॅ कब्जा में लै केॅ साजिश रोॅ विरोध। नीलहा गोरा, रेल ठेकेदार, महाजन, पुलिस, जमींदार सरकारी कर्मचारी सीनी केॅ मारी केॅ भगावै रोॅ विद्रोह शुरु होय गेलै। 20 हजार संथालें नेॅ अम्बर परगना रोॅ राजमहल पर हमला करि केॅ होकरा आपनोॅ कब्जा में करी लेलकै। आस-पास रोॅ गाँवोॅ में आगिन लगाय देलोॅ गेलै। फुदनीपुर, कदमसार, प्यालापुर सें अंग्रेजोॅ केॅ मारी केॅ भगाय देलकै। नीलहे साहब सीनी रोॅ कोठी सीनी पेॅ कब्जा करी लेलोॅ गेलै। मिस्टर चार्ल्स के इंडिगो फैक्ट्री में आगिन लगाय देलोॅ गेलै। मतर कि अंग्रेजों द्वारा करलोॅ गेलोॅ विरोध भी कमजोर न´ छेलै।
मिस्टर टोगुड के अगुआयी में 400 सौ जबान सीनी नेॅ 11 जुलाई 1855 केॅ मार्च करलकै आरो 13 जुलाई केॅ क दमसार पहुचलै। बाहीं जबेॅ संथालोॅ नेॅ महेशपुर के राजा पेॅ आक्रमण करलकै तेॅ 7 वीं नेटिव इन्फैंसी नेॅ 3 हजार संथालोॅ सीनी केॅ भगाय देलेॅ छेलै। ई अवसरों पेॅ स्वयं चांद-भायरों आरो सिद्धू-कान्हू मौजूद छेलै। मतर कि सब बची निकललोॅ छेलै। 200 सौ संथाल सीनी मारलोॅ गेलोॅ छेलै। यहेॅ रं पश्चिमी पाकुड़ के तोरई नदी किनारा पेॅ 200 जबान सीनी नेॅ आन्दोलनकारी सीनी केॅ पराजित करलेॅ छेलै। रघुनाथपुर में भी संथालोॅ सीनी केॅ हराय देलेॅ रहैं आरो काटी देलेॅ छेलै। हेकरा सें सिद्धू-कांहू के गुस्सा आरो ज़्यादा बढ़ी गेलोॅ छेलै। ऐन्होॅ स्थिति में सौसें भागलपुर कमिश्नरी में मार्शल लॉ लागू करि देलोॅ गेलोॅ छेलै। सिद्धू-कान्हू केॅ पकड़ै खातिर ईनाम के घोषना करलोॅ गेलोॅ छेलै। बरहेट के लड़ाय में चांद-भायरों शहीद होय गेलोॅ छेलै।
सिद्धू-कान्हू आबेॅ दू भाय ही बचलोॅ छेलै। जेकरा पकड़ै लेली सरकार के पूरा तंत्र लागलोॅ होलोॅ छेलै। हिनकोॅ विश्वासी साथी नेॅ ही पैसा के लोभ लालचोॅ में आबी केॅ कान्हू केॅ पकड़वाबै में मदद करलेॅ छेलै। कान्हू ऊपर बन्दा गाँव में गिरफ्तार (पकड़ी) लेलोॅ गेलै।
दून्हू भाय केॅ जहाँ पकड़लोॅ गेलोॅ छेलै वाही तत्काल फाँसी दै देलोॅ गेलोॅ छेलै। 6 जुलाई 1855 केॅ खुलेआम सिद्धू केॅ बरहेट में फाँसी दै देलोॅ गेलै तेॅ वहीं दिनां कान्हू केॅ भी भोगनाडीह में फाँसी दै देलेॅ छेलै।
जोॅन जग्घा पेॅ कान्हू केॅ फाँसी देलोॅ गेलै वहीं जग्घा पेॅ दिग्धी के दारोगा महेशलाल दŸा रोॅ सिर काटलोॅ गेलों छेलै। कहलोॅ जाय छै कि सौसें बिद्रोह रोॅ समय सिद्धू के पत्नी 'सूमी' रोॅ भूमिका बहुतें सराहनीय रहलोॅ छेलै। वें डेगोॅ-डेगोॅ पेॅ आन्दोलन कारी सीनी रोॅ मदद करै छेलै।
सिद्धू-कान्हू केॅ संथाल बिद्रोह रोॅ महानायक कहलोॅ जाय छै। एक्केॅ परिवार रोॅ छः सात आदमी आन्दोलन में कुदी पड़बोॅ कोय साधारण परिवार के कहानी न´ हूवेॅ सकेॅ। आय भी हर साल 11 अप्रील केॅ शहीदों के जयन्ति आरो 30 जून केॅ हूल दिवस के रूपोॅ में मनैलोॅ जाय छै।
संथाल बिद्रोह व्यर्थ न´ छेलै। हेकरेॅ परिणाम स्वरूप 22 दिसम्बर 1856 केॅ विधिवत् संथाल परगना जिला रोॅ स्थापना होलै आरो ई जिला के पहिलोॅ जिलाधीश एशली इडेन केॅ बनैलोॅ गेलोॅ छेलै।